New Delhi, 2 अक्टूबर . जीवन में लक्ष्य स्पष्ट हो और कड़ी मेहनत करने का जज्बा हो, तो बड़ी से बड़ी बाधाएं भी सफलता को नहीं रोक पाती हैं. टोक्यो और पेरिस पैरालंपिक में देश को सिल्वर दिलाने वाले निषाद कुमार की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.
निषाद कुमार का जन्म Himachal Pradesh के ऊना जिले के बदायूं गांव में 3 अक्टूबर, 1999 को हुआ था. उनका परिवार खेती से जुड़ा है. 8 साल की उम्र में उनका बायां हाथ चारा काटने वाली मशीन में फंस गया. इस वजह से उस हाथ को काटना पड़ा. इतना बड़ा हादसा किसी भी इंसान के जीवन जीने की या कुछ करने की इच्छा को तोड़ सकता है, लेकिन निषाद कुमार उन लोगों में नहीं थे. निषाद ने ऊंची कूद में लंबी दूरी तय करने का निश्चय किया और उसके लिए कठोर मेहनत शुरू की.
निषाद को उनके माता-पिता का हमेशा समर्थन मिला. उन्होंने कभी निषाद को दिव्यांग महसूस नहीं होने दिया. उनके इसी समर्थन की वजह से निषाद के संकल्प और हौसले में चट्टानी ताकत आई. वह स्कूल और कॉलेज में सामान्य कैटेगरी के खिलाड़ियों के साथ खेलते थे.
शुरुआती पढ़ाई के दौरान ही ऊंची कूद का अभ्यास शुरू करने वाले निषाद ने 2019 में Dubai में हुई विश्व पैरा एथलेटिक्स में 2.05 मीटर छलांग लगाकर स्वर्ण जीतने के साथ ही टोक्यो पैरालंपिक का टिकट पक्का कर लिया था. इसके बाद टोक्यो 2020 पैरालंपिक में पुरुषों की ऊंची कूद टी47 में 2.06 मीटर की एशियाई रिकॉर्ड छलांग के साथ रजत पदक जीता. निषाद ने पेरिस पैरालंपिक के हाई जंप इवेंट में टी47 कैटेगरी की स्पर्धा में 2.04 मीटर की छलांग के साथ दूसरा स्थान हासिल किया था. वह गोल्ड जीतने से सिर्फ 0.4 मीटर से चूक गए थे.
लगातार दो पैरालंपिक में सिल्वर जीतकर निषाद ने इस बात को साबित किया है कि स्पष्ट लक्ष्य के पीछे हौसला, लगन और कड़ी मेहनत हो तो कुछ भी असंभव नहीं है. Prime Minister Narendra Modi भी कई बार निषाद की प्रशंसा कर चुके हैं.
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पीएके