New Delhi, 14 अगस्त . Supreme court ने Thursday को भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को बिहार में विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) के तहत हटाए गए 65 लाख से अधिक मतदाताओं की सूची को ऑनलाइन प्रकाशित करने का निर्देश दिया. इस कदम ने ईसीआई को एक राजनीतिक बहस के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है. हालांकि, जमीनी रिपोर्ट्स और आधिकारिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए आयोग के अधिकारियों का कहना है कि यह प्रक्रिया कुछ विपक्षी दलों के दावों के विपरीत पूरी तरह पारदर्शी और सहयोगात्मक रही है.
Supreme court ने ईसीआई के लिए निर्देश जारी करते हुए कहा कि हटाए जाने वाले मतदाताओं की पूरी सूची ऑनलाइन अपलोड करें, जिसमें प्रत्येक नाम के हटाने का कारण स्पष्ट हो, पहचान के लिए आधार कार्ड को स्वीकार करें (नागरिकता के लिए नहीं), इन सूचियों को पंचायत और बीडीओ कार्यालयों में प्रदर्शित करें.
ईसीआई का कहना है कि इनमें से अधिकांश कदम पहले से ही प्रक्रिया में शामिल थे और Supreme court के हस्तक्षेप से पहले ही इन्हें लागू किया जा रहा था.
चुनाव आयोग के अधिकारियों ने बताया कि बिहार में सभी राजनीतिक दलों को 20 जुलाई, 2025 से प्रस्तावित नाम हटाने की पूरी सूची उपलब्ध की गई थी. इस सूची में नाम, हटाने के कारण (जैसे मृत्यु, स्थायी रूप से स्थानांतरण, लापता होना या डुप्लीकेट) और आपत्ति दर्ज कराने की स्पष्ट प्रक्रिया भी शामिल है.
उदाहरण के तौर पर सीतामढ़ी जिले के बाजपट्टी विधानसभा क्षेत्र के बूथ नंबर 18 में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों (भाजपा, कांग्रेस, जद(यू), और जन सुराज) के बूथ लेवल एजेंट्स (बीएलए) के साथ एक विस्तृत बैठक आयोजित की गई.
अधिकारियों के अनुसार, बीएलओ ने नाम हटाने की प्रस्तावित सूची को साझा किया, इसे पढ़कर सुनाया, आपत्तियों को दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित किया और योग्य नए मतदाताओं के लिए फॉर्म-6 जमा करने का अनुरोध किया. साथ ही बैठक रजिस्टर में सभी राजनीतिक दलों के बीएलए की उपस्थिति और हस्ताक्षर भी दर्ज हैं.
इसी तरह, गोपालगंज जिले के नूरीचक गांव में भी बीएलओ ने मृत्यु, प्रवास, या दोहरी प्रविष्टियों के आधार पर नाम हटाए जाने वाले मतदाताओं की सूची पेश की और स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की. अधिकारियों ने एक दस्तावेज का हवाला देते हुए बताया कि एक मामले में 28 मतदाताओं के पास वैध दस्तावेज नहीं थे और उनके नाम स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ साझा किए गए, साथ ही आपत्तियां आमंत्रित की गईं.
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड हमेशा से इस संशोधन के दौरान पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है. एसआईआर के लिए उपयोग किए जाने वाले गणना फॉर्म में आधार नंबर को सहायक दस्तावेजों में से एक के रूप में शामिल किया गया है. Supreme court का आधार को अनुमति देने का निर्देश कोई नई आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह ईसीआई की मौजूदा प्रथा की पुष्टि करता है.
आयोग के अनुसार, विपक्ष के बहिष्कार और गोपनीयता के दावों में कोई आधार नहीं है. अब तक आरजेडी या कांग्रेस के किसी भी बीएलए ने बूथ स्तर पर प्रक्रिया के खिलाफ औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की है. सभी राजनीतिक दलों को नियमित रूप से हजारों बैठकों के माध्यम से शामिल किया गया था.
कई जिलों की रिपोर्ट्स से पता चलता है कि बूथ लेवल ऑफिसर्स (बीएलओ) ने घर-घर जाकर सावधानीपूर्वक सत्यापन किया. सराय हमीद और नूरीचक जैसे स्थानों पर बीएलओ ने पड़ोसियों, स्थानीय प्रतिनिधियों और परिवार के सदस्यों से संपर्क कर मृत मतदाताओं की सूची तैयार की. नामों को केवल सत्यापन और सहमति के बाद ही हटाया गया.
अधिकारियों ने बताया कि कई मतदान केंद्रों पर हटाए गए मतदाताओं की सूची प्रिंट कर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित की गई थी. यह सूचियां मतदान केंद्रों के बाहर भी चस्पा की गईं, ताकि स्थानीय लोगों को जानकारी मिल सके और वे सूची की समीक्षा कर सकें. साथ ही मतदाताओं और स्थानीय एजेंटों को प्रोत्साहित किया गया कि वे इन सूचियों को देखें और अगर आवश्यक हो तो दावा या आपत्ति दर्ज कराएं.
चुनाव आयोग के अधिकारियों ने बताया कि तय प्रक्रिया के अनुसार, फॉर्म 6, 7 और 8 (जो क्रमशः नाम जोड़ने, हटाने और सुधार के लिए इस्तेमाल होते हैं) को फिजिकल और डिजिटल दोनों फॉर्मेट में उपलब्ध कराया गया. इसके साथ ही, बीएलओ को मतदाताओं की सहायता करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया. आयोग ने दुरुपयोग रोकने के लिए प्रत्येक बीएलए द्वारा एक दिन में दावों की संख्या को भी सीमित किया.
अधिकारियों का कहना है कि Supreme court का निर्देश पारदर्शिता की भावना को और मजबूत करता है, लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि चुनाव आयोग ने न केवल कोर्ट के निर्देशों का पालन किया, बल्कि इसके कई सुझावों को पहले से ही लागू कर लिया था.
उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों की भागीदारी सुनिश्चित करने से लेकर घर-घर जाकर सत्यापन करने और पहचान-आधारित दावों को सुलभ बनाने तक, चुनाव आयोग ने पारदर्शिता और चुनावी ईमानदारी के सिद्धांतों को बरकरार रखा है.
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