Patna, 26 अगस्त . पूर्वी चंपारण जिले के पश्चिमी छोर पर स्थित सुगौली विधानसभा क्षेत्र बिहार की राजनीति में अपना खास महत्व रखता है. सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित यह सीट 1951 में अस्तित्व में आई और अब तक यहां 16 बार चुनाव हो चुके हैं. हालांकि, 1957 में यहां मतदान नहीं हुआ था.
यह सीट सुगौली और रामगढ़वा प्रखंडों को मिलाकर बनी है और संसदीय दृष्टि से यह पश्चिम चंपारण Lok Sabha क्षेत्र के तहत आती है. भौगोलिक रूप से देखें तो सुगौली, मोतिहारी (जिले के मुख्यालय) से लगभग 28 किलोमीटर पश्चिम और Patna से लगभग 190 किलोमीटर उत्तर में स्थित है.
इसके चारों ओर कई महत्वपूर्ण कस्बे और शहर बसे हुए हैं. इसके उत्तर में रक्सौल (35 किमी) और बेतिया (40 किमी), दक्षिण-पूर्व में अरेराज (22 किमी), जबकि दक्षिण-पश्चिम में मेहसी (60 किमी) है.
नेपाल की सीमा से नजदीकी इसे और खास बनाती है, क्योंकि बीरगंज और कलैया जैसे प्रमुख नेपाली शहर 45 और 60 किलोमीटर की दूरी पर हैं. यातायात की दृष्टि से भी यह अहम है, क्योंकि सुगौली जंक्शन रेलवे का प्रमुख स्टेशन है.
सुगौली का नाम इतिहास में दर्ज है. 1816 में ब्रिटिश शासन और नेपाल के बीच यहीं प्रसिद्ध ‘सुगौली संधि’ पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसने भारत-नेपाल सीमा की आधार-रेखा तय की. स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में भी यह इलाका सक्रिय रहा. महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए चंपारण सत्याग्रह में सुगौली की भूमिका उल्लेखनीय रही.
साहित्यिक दृष्टि से भी इसका जिक्र मिलता है. रुडयार्ड किपलिंग ने अपनी प्रसिद्ध कहानी ‘रिक्की-टिक्की-टैवी’ में इसे ‘सेगोवली’ के नाम से लिखा है.
सुगौली की राजनीतिक यात्रा उतार-चढ़ाव से भरी रही है. शुरुआती वर्षों में कांग्रेस ने यहां चार बार जीत दर्ज कर अपनी पकड़ बनाई. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने भी चार बार जीत हासिल की, जिसमें से एक जीत 1967 में उसके पूर्व स्वरूप जनसंघ के नाम से थी.
वामपंथी दलों का भी प्रभाव रहा और सीपीआई ने तीन बार यहां कब्जा जमाया. राजद ने दो बार, जबकि Samajwadi Party, कोसल पार्टी और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने एक-एक बार जीत हासिल की है. इस सीट से दो नेताओं ने खास पहचान बनाई. सीपीआई के रामाश्रय सिंह और भाजपा के रामचंद्र साहनी, दोनों ने तीन-तीन बार जीत दर्ज की.
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार शशि भूषण सिंह ने भाजपा समर्थित वीआईपी प्रत्याशी को 3,447 वोटों से हराया था. इस मुकाबले में लोजपा ने अलग से उम्मीदवार उतारकर 8.3 प्रतिशत वोट हासिल किए और वीआईपी की हार सुनिश्चित कर दी. उस समय यहां कुल मतदाता 2,87,461 थे, जिनमें 11.22 प्रतिशत अनुसूचित जाति और लगभग 23.40 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता थे.
2024 के Lok Sabha चुनाव तक मतदाताओं की संख्या थोड़ी बढ़कर 2,88,765 हो गई, हालांकि पलायन के चलते 2,529 मतदाताओं के नाम सूची से हट गए. मतदान का औसत प्रतिशत लगभग स्थिर रहा.
Lok Sabha चुनाव 2024 में भाजपा ने सुगौली खंड में 32,390 वोटों की बढ़त बनाई. इससे साफ होता है कि यहां एनडीए की पकड़ मजबूत बनी हुई है. खासकर इसलिए क्योंकि अब वीआईपी राजद गठबंधन में चली गई है और लोजपा वापस एनडीए के साथ आ गई है. ऐसे में 2025 विधानसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा के खुद उम्मीदवार उतारने की संभावना बहुत ज्यादा है.
विपक्षी गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर जारी खींचतान भाजपा को बढ़त दिला सकती है. एनडीए एकजुट होकर मैदान में उतरे तो 2020 की हार की भरपाई की पूरी संभावना है. वहीं, राजद को मुस्लिम और यादव मतों पर भरोसा है, लेकिन गठबंधन की दरारें उसके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं. इन सभी वजहों से सुगौली सीट 2025 में भी राजनीतिक रूप से बेहद रोचक मुकाबले की गवाह बनने वाली है.
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डीएससी/एबीएम