बिहार विधानसभा चुनाव: गोपालगंज की ऐतिहासिक विरासत, सामाजिक चेतना और राजनीति का बदलता समीकरण

Patna, 9 अक्टूबर . बिहार का गोपालगंज उन विधानसभाओं में से एक है, जहां इतिहास, संस्कृति और राजनीति का अनोखा संगम है. बताया जाता है कि इस जिले का नाम भगवान श्रीकृष्ण (गोपाल) के नाम पर पड़ा है. यहां के मंदिर, मेले और लोक परंपराएं इसकी सांस्कृतिक पहचान को और गहराई देते हैं. धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ यह इलाका स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजाद India के सामाजिक-Political आंदोलनों तक हमेशा सक्रिय भूमिका निभाता रहा है.

इतिहासकारों के अनुसार, वैदिक युग में यहां राजा विदेह का शासन था. बाद में आर्य काल में वमन राजा चेरो ने इस क्षेत्र पर शासन किया. उनके काल में अनेक मंदिर और धार्मिक स्थल बने, जो आज भी गोपालगंज की पहचान हैं. थावे दुर्गा मंदिर, मांझा का किला, दिघवा दुबौली का वामन गांडेय तालाब, सिरिसिया, और कुचायकोट का राजा मलखान किला जैसे स्थल इसकी गौरवशाली ऐतिहासिक विरासत को जीवित रखते हैं. महाIndia काल में यह क्षेत्र राजा भूरी सर्वा के अधीन था, जबकि मध्यकाल में बंगाल के सुल्तान ग्यासुद्दीन अब्बास और बाद में मुगल शासक बाबर का शासन यहां रहा.

गोपालगंज के नागरिकों ने हमेशा राष्ट्रीय और सामाजिक आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाई है, चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम हो, जेपी आंदोलन हो या 1930 का कर-अवज्ञा आंदोलन, जिसमें बाबू गंगा विष्णु राय और बाबू सुंदर लाल जैसे नेताओं ने नेतृत्व किया. 1935 में पंडित Bhopal पांडेय ने स्वतंत्रता की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देकर इस मिट्टी को गौरवान्वित किया.

भोजपुरी यहां की प्रमुख भाषा है, जबकि हिन्दी और उर्दू भी बोली जाती हैं. यहां के लोगों का पारंपरिक भोजन लिट्टी-चोखा, चावल और गेहूं की रोटियां हैं. जिले में तीन शुगर मिलें, एथेनॉल प्लांट, चावल और आटा मिलें तथा डेयरी यूनिट्स मौजूद हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हैं. यही वजह है कि गोपालगंज प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार के शीर्ष 10 जिलों में गिना जाता है. छठ पूजा, दुर्गा पूजा, दीपावली, ईद, मुहर्रम और अन्य त्यौहार यहां धार्मिक सौहार्द के साथ मनाए जाते हैं. थावे प्रखंड का दुर्गा मंदिर तो इतना प्रसिद्ध है कि बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों से श्रद्धालु यहां देवी मां का दर्शन करने आते हैं.

बिहार की राजनीति में गोपालगंज सीट दिलचस्प रही है. यह राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव का गृह जिला होने के बावजूद, उनकी पार्टी यहां ज्यादा प्रभाव नहीं बना पाई. 1951 से अब तक 19 चुनाव (दो उपचुनाव सहित) हो चुके हैं. राजद यहां सिर्फ एक बार, 2000 में जीत दर्ज कर पाई है. शुरुआती वर्षों में कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसने 1950 से 1972 के बीच सात में से छह चुनाव जीते. 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने कांग्रेस के सिलसिले को तोड़ा.

इसके बाद, निर्दलीय उम्मीदवारों, जनता पार्टी, जनता दल और बहुजन समाज पार्टी ने भी एक-एक बार सफलता पाई. पिछले दो दशकों में भाजपा ने इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाई है. पूर्व मंत्री सुभाष सिंह ने लगातार चार बार जीत दर्ज की. 2022 में उनके निधन के बाद उनकी पत्नी कुसुम देवी ने उपचुनाव में महज 1,794 वोटों के अंतर से जीत हासिल की. भाजपा अब 2025 में इस सीट पर एक नए लेकिन सशक्त चेहरे को उतारने की तैयारी में है.

2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या 5,66,097 है, जिनमें 2,82,950 पुरुष और 2,83,147 महिलाएं शामिल हैं. वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 3,44,890 है. इनमें 1,73,929 पुरुष, 1,70,954 महिलाएं और 7 थर्ड जेंडर वोटर हैं.

पीएसके