प्रयागराज के कोतवाल लेटे हुए हनुमान मंदिर का तेज गति से हो रहा सौंदर्यीकरण

प्रयागराज, 21 अक्टूबर . महाकुंभ को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने तेज गति से काम शुरू कर रखा है. तमाम तैयारियों के बीच सीएम योगी ने संगम तट की शोभा और प्रयागराज के कोतवाल माने जाने वाले बड़े हनुमान मंदिर के जीर्णोद्धार पर विशेष ध्यान देने का निर्देश दिया है. मंदिर के सौंदर्यीकरण के साथ ही कॉरिडोर का निर्माण कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है.

सीएम योगी ने हाल ही में खुद आकर यहां चल रहे निर्माण कार्यों का जायजा लिया था. सीएम के आगमन के बाद महाकुंभ के पहले अब यहां श्रद्धालुओं की आमद में कई गुना इजाफा हो गया है. जो निर्माण कार्य चल रहे हैं, उसे देखते हुए स्पष्ट है कि इस महाकुंभ के दौरान बड़े हनुमान का यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए सबसे अधिक श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र होगा. महाकुंभ 2025 से पहले योगी सरकार प्रयागराज और यहां के धर्मस्थलों को सजाने संवारने में जुटी हुई है.

प्रयागराज के लेटे हनुमान मंदिर के स्वरूप में बदलाव के तहत सबसे पहले मंदिर के गर्भगृह को बड़ा किया जाएगा. इसी के साथ परिक्रमा पथ, दुकानें, पार्किंग, प्रवेश द्वार और रैन बसेरा व हवन कुंड आदि बनाए जा रहे हैं. महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं और जनता को पहली बार संगम स्नान के बाद बड़े हनुमान जी का मंदिर अभूतपूर्व ढंग से अपनी ओर आकर्षित करेगा. धार्मिक विशेषज्ञों के अनुसार प्रयागराज के कोतवाल माने जाने वाले लेटे हुए हनुमान मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए 24 घंटे काम चल रहा है. हनुमानजी की यह प्रतिमा दक्षिणाभिमुखी और 20 फीट लंबी है. यह धरातल से कम से कम 6 या 7 फीट नीचे है. इन्‍हें बड़े हनुमान जी, किले वाले हनुमान जी, लेटे हनुमान जी और बांध वाले हनुमान जी के नाम से भी जाना जाता है.

माना जाता है कि इनके दाएं पैर के नीचे अहिरावण दबा हुआ है. उनके दाएं हाथ में राम-लक्ष्‍मण और बाएं हाथ में गदा शोभित है. मान्यता के अनुसार बड़े हनुमान मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता है कि लंका पर जीत के बाद जब हनुमान जी सेना के साथ वापसी कर रहे थे, तो उन्हें थकान लगी. इसके बाद माता सीता के कहने पर वह यहीं पर संगम के तट पर लेट गए. इसी को ध्‍यान में रखते हुए लेटे हनुमान जी का मंदिर बन गया. ऐसा माना जाता है गंगा का पानी लेटे हनुमान जी की प्रतिमा को स्पर्श करता है, फिर नीचे उतर जाता है.

ऐतिहासिक तीर्थ नगरी में बड़े हनुमान मंदिर को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं. माना जाता है कि अपने कार्यकाल के दौरान अकबर बंगाल अवध के साथ मगध और पूर्वी भारत में होने वाले विद्रोह पर नियंत्रण करना चाहता था, जिसके लिए साल 1582 में मंदिर को अपने किले के घेरे में लेने की योजना बनाई. उसने इसके लिए 100 सैनिकों की फौज खड़ी कर दी, लेक‍िन वह हनुमान जी की मूर्ति को एक इंच भी न हिला सका. इसके बाद उसने किले की दीवार पीछे खिसका ली.

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