New Delhi, 13 अगस्त . जिस घर से बांग्लादेश की आजादी का ऐलान हुआ, वहीं एक दिन पूरी खामोशी के साथ वह आजादी की आवाज कुचल दी गई. 1975 में 15 अगस्त के उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन की शुरुआत, जब मस्जिदों से अजान की आवाज हवा में गूंज रही थी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि बांग्लादेश की राजधानी उस दिन इतिहास के सबसे खौफनाक अध्याय में दाखिल होने जा रही है. धानमंडी के 32 नंबर मकान में सब कुछ पहले की तरह शांत था, लेकिन कुछ ही पलों में वहां का हर कमरा, हर दीवार और हर कोना गोलियों की तड़तड़ाहट भरी आवाज और खून के छीटों से भर गया.
यह घर किसी आम नागरिक का नहीं था, यह बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान का घर था. लेकिन, 1975 की वह सुबह इस घर के इतिहास में सबसे काली सुबह बन गई. बंगबंधु का वह घर बांग्लादेश के संघर्ष, आंदोलन और स्वाधीनता का गवाह रहा था. उन्होंने 1949 में अवामी लीग की स्थापना की और पूर्वी Pakistan (अब बांग्लादेश) के लिए Political अधिकारों की लड़ाई शुरू की. 1970 के आम चुनावों में अवामी लीग को पूर्ण बहुमत मिला, लेकिन पश्चिमी Pakistan ने सत्ता हस्तांतरित नहीं की. इसके बाद शुरू हुई 1971 की मुक्ति संग्राम की लड़ाई, जिसमें India की मदद से Pakistan को हराकर बांग्लादेश ने स्वतंत्रता पाई.
जनवरी 1972 में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान देश के पहले Prime Minister बने. लेकिन 1975 तक आते-आते Political अस्थिरता, प्रशासनिक चुनौतियों और असंतोष के कारण हालात बिगड़ने लगे. उसी साल जनवरी में उन्होंने President पद संभाला. इसके बावजूद, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान किसी शाही महल में नहीं रहते थे. उनका साधारण दो मंजिला घर था, जैसे अन्य आम मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार का होता था, वह उसी में रहते थे. लेकिन President पद संभालने के सिर्फ 7 महीने बाद ही उन्हें अपनों ने धोखा दे दिया.
बांग्लादेश आवामी लीग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, बंगबंधु अक्सर कहा करते थे, “मेरी ताकत यह है कि मैं इंसानों से प्यार करता हूं. मेरी कमजोरी यह है कि मैं उन्हें बहुत ज्यादा प्यार करता हूं.”
शेख हसीना ने ‘अखबार ढाका टाइम्स’ को दिए एक इंटरव्यू में बताया, “मेरे पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान देशवासियों पर भरोसा करते थे. यह कभी नहीं सोचा कि कोई बंगाली उन्हें गोली मारेगा. वे इसी विश्वास के साथ जीते थे कि कोई बंगाली उन्हें कभी भी मारने या किसी तरह से नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं करेगा.”
31 अगस्त 2022 को 15 अगस्त के 1975 के नरसंहार के बारे में शेख हसीना ने अपनी बातों को एक सभा के दौरान दोहराया था और कहा, “उनके पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान कभी यह विश्वास नहीं कर सकते थे कि कोई बंगाली उनकी हत्या कर सकता है.”
हालांकि, सैन्य तख्तापलट के दौरान सिर्फ बंगबंधु ही नहीं, बल्कि उनके परिवार के 17 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. उनकी बेटी शेख हसीना और उनकी बहन शेख रेहाना उस समय जर्मनी में थीं, इसीलिए दोनों बच गईं.
कोई युद्ध नहीं छिड़ा था. कोई विदेशी हमला नहीं हुआ था. ये सब तो बंगबंधु के अपने लोग थे. वही लोग, जिनके लिए बंगबंधु ने जेल की यातनाएं सही थीं और जिनकी आजादी के लिए उन्होंने अपना जीवन लगाया था.
बांग्लादेश आवामी लीग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, ब्रिटिश पत्रकार साइरिल डन ने बंगबंधु के बारे में लिखा था, “उनका शारीरिक कद बहुत ऊंचा था. उनकी आवाज गरजती हुई बिजली जैसी थी. उनका करिश्मा लोगों पर जादू कर देता था. उनका साहस और आकर्षण उन्हें इस युग का एक अनोखा महापुरुष बनाता था.”
2004 के एक बीबीसी सर्वेक्षण में, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को सर्वकालिक महानतम बंगाली चुना गया था.
हालांकि, जहां India हर 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाता है तो बांग्लादेश में शोक का माहौल रहता है, क्योंकि उस देश में यह दिन राष्ट्रीय शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
–
डीसीएच/जीकेटी