![]()
New Delhi, 26 नवंबर . हिंदी कविता में हरिवंश राय ‘बच्चन’ के एटीट्यूड और फिलॉसफी का हर कोई कायल है. उन्होंने कविता से संवेदनाओं के साथ ही जिंदगी की सच्चाई से दुनिया को रूबरू कराया. उनका परिचय इतना ही है, ”मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षणभर जीवन मेरा परिचय.”
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था. उन्हें घरवाले प्यार से ‘बच्चन’ कहते थे. ‘मधुशाला’ में उन्होंने खुद की परवरिश के बारे में लिखा था, ”मैं कायस्थ कुलोदभव, मेरे पुरखों ने इतना ढाला, मेरे तन के लोहू में है, पचहत्तर प्रतिशत हाला, पुश्तैनी अधिकार मुझे है, मदिरालय के आंगन पर, मेरे दादों-परदादों के हाथ, बिकी थी मधुशाला.”
दरअसल, अपनी कविताओं और लेखनी से वो कम समय में ही दुनियाभर में जाना-पहचाना नाम बन गए थे. इलाहाबाद में रहते हुए उनकी लेखनी में मानवीय संवेदनाएं झलकने लगी थीं. आधी से ज्यादा जिंदगी किराए के मकान में गुजारने वाले ‘बच्चन’ लोगों की तकलीफों को अपने शब्दों में उतारते थे. 1929 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद एमए में एडमिशन लिया, लेकिन 1930 के असहयोग आंदोलन के चलते पढ़ाई बीच में छोड़ दी. 1938 में एमए करने के बाद कैम्ब्रिज चले गए.
पढ़ाई के दौरान ही उनकी शादी श्यामा से हो गई थी, लेकिन, दोनों का साथ कुछ वक्त के लिए ही रहा. श्यामा के निधन के बाद ‘बच्चन’ दुखी रहने लगे. जब श्यामा की सेहत खराब थी तो उन्होंने एक कविता लिखी, ”रात आधी खींचकर मेरी हथेली, एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने.” इस कविता ने ‘बच्चन’ को काफी शोहरत दिलाई.
मधुशाला भी उनकी लोकप्रियता बढ़ाने में पीछे नहीं हटी. 24 जनवरी 1942 को दूसरी बार हरिवंश राय ‘बच्चन’ ने तेजी सूरी से की.
‘बच्चन’ 1941-1952 तक इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रवक्ता के साथ ऑल इंडिया रेडियो से भी जुड़े रहे. उन्होंने India Government के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में भी काम किया.
अंग्रेजी के ज्ञाता हरिवंश राय ‘बच्चन’ की हिंदी पर गजब पकड़ थी. कहा जाता है कि श्यामा की मौत और तेजी से शादी को उन्होंने हमेशा कविता में जगह दी. उन्होंने लिखा था, ”बीता अवसर क्या आएगा, मन जीवनभर पछताएगा, मरना तो होगा ही मुझको, जब मरना था तब मर न सका, मैं जीवन में कुछ न कर सका.”
उनकी रचनाओं ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’ और ‘दशद्वार से सोपान तक’ में शानदार लेखनी है. हरिवंश राय ‘बच्चन’ को सबसे बड़ी प्रसिद्धि 1935 में मिली, जब ‘मधुशाला’ आई. उन्हें 1966 में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया. उन्हें 1968 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड और 1976 में पद्म भूषण से नवाजा गया. उन्होंने 18 जनवरी 2003 को Mumbai में आखिरी सांस ली. उनके पुत्र अमिताभ बच्चन Bollywood के महानायक हैं.
अपने निधन से पहले तक हरिवंश राय ‘बच्चन’ कविताओं के माध्यम से युवाओं को संदेश देते रहे और प्रेम कविता की नई पद्धति विकसित की. कहा जाता है कि खुद महात्मा गांधी ने उनसे पूछा था कि वो ‘मधुशाला’ के जरिए लोगों को शराबी बनाने पर क्यों तुले हैं? जब महात्मा गांधी ने ‘मधुशाला’ पढ़ी तो उनका डर खत्म हो गया.
यहां तक कि हताश युवाओं को संदेश देने के लिए हरिवंशराय ने एक कविता में लिखा था, ”जीवन में एक सितारा था, माना वह बेहद प्यारा था, वह डूब गया तो डूब गया, अंबर के आनन को देखो, कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे, जो छूट गए फिर कहां मिले, पर बोलो टूटे तारों पर, कब अंबर शोक मनाता है, जो बीत गई सो बात गई.”
‘मधुशाला’, ‘मधुबाला’ और ‘मधुकलश’ के जरिए हरिवंश राय ‘बच्चन’ ने समाज में एक नई चेतना फैलाई थी. ‘मधुशाला’ में समाज को गहरा संदेश दिया गया था. ‘मधुशाला’ की कुछ पंक्तियां हैं, ”मुसलमान औ’ हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला, एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला, दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मंदिर में जाते, बैर बढ़ाते मस्जिद मंदिर, मेल कराती मधुशाला.”
उन्होंने ‘इस पार, उस पार’ कविता में जिंदगी की हकीकत का जिक्र करते हुए लिखा था, ”मैं आज चला तुम आओगी, कल, परसों, सब संगीसाथी, दुनिया रोती-धोती रहती, जिसको जाना है, जाता है. मेरा तो होता मन डगमग, तट पर ही के हलकोरों से. जब मैं एकाकी पहुंचूंगा, मंझधार न जाने क्या होगा. इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा.”
–
एबीएम/वीसी