नई दिल्ली, 16 सितंबर . द्रविड़ आंदोलन के जनक ई.वी. रामासामी ‘पेरियार’ धारा के विपरीत बहने में माहिर थे. समाज के सेट नियमों को ठेंगा दिखा, प्रचलित धारणाओं को धता-बता आगे बढ़ने में यकीन रखते थे. तार्किक आधार पर हिंदू धर्म की खामियां बताने में गुरेज नहीं किया. फटकारे गए, विरोध हुआ फिर भी जो चाहा उसे कहने से कभी हिचके नहीं. इसी पेरियार ने भविष्य की दुनिया को लेकर सपना संजोया. क्या थी वो संकल्पना? कैसा चाहते थे वह आदर्श समाज?
द्रविड़ मूवमेंट के बड़े चेहरे ‘पेरियार’ का जन्म 17 सितंबर 1879 में हुआ. संपन्न परिवार में जन्मे पेरियार को किसी चीज की कमी नहीं थी. पढ़ाई केवल पांचवीं तक की लेकिन ज्ञान ऐसा कि यूनेस्को ने 1970 में उन्हें “दक्षिणी एशिया का सुकरात” तक कह दिया.
कांग्रेस में रहे लेकिन फिर उसकी खामियां गिनाने से भी परहेज नहीं किया. 1920 में औपचारिक तौर पर कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए. 1920 और 1924 में वह तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के पार्टी अध्यक्ष भी रहे. वहीं 1921 और 1922 में सचिव पद पर रहे. गांधी के सशक्त सहयोगी के तौर पर काम किया लेकिन बहुत जल्दी उन्हें अहसास हो गया कि यह पार्टी और गांधी उत्तर भारतीय आर्य-द्विज मर्दों के वर्चस्व को कायम रखने का टूल है. फिर क्या था राहें जुदा कर ली.
बाद में जस्टिस पार्टी बनाई, जो बाद में जाकर ‘द्रविड़ कड़गम’ हो गई.
पेरियार ने माना कि कांग्रेस ब्राह्मणों और धनी लोगों की पार्टी है. उनकी सोच कुछ अलग ही थी और तमिल पुस्तक इनि वारुम उल्लगम में भविष्य की दुनिया लेख लिखा.
इसमें सुंदर और भेदभाव रहित समाज की संकल्पना थी. लिखा, नए विश्व में किसी को कुछ भी चुराने या हड़पने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी. पवित्र नदियों जैसे कि गंगा के किनारे रहने वाले लोग उसके पानी की चोरी नहीं करेंगे. वे केवल उतना ही पानी लेंगे, जितना उनके लिए आवश्यक है. भविष्य के उपयोग के लिए वे पानी को दूसरों से छिपाकर नहीं रखेंगे…इसी प्रकार किसी को झूठ बोलने, धोखा देने या मक्कारी करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी क्योंकि, उससे उसे कोई प्राप्ति नहीं हो सकेगी. वक्त बिताने के नाम पर जुआ खेलने, शर्त लगाने जैसे दुर्व्यसन समाप्त हो जाएंगे. उनके कारण किसी को आर्थिक बर्बादी नहीं झेलनी पड़ेगी.
इसी लेख में वो महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता का परिचय देते हुए लिखते हैं, ‘‘पैसे की खातिर अथवा मजबूरी में किसी को वेश्यावृत्ति के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा. स्वाभिमानी समाज में कोई भी दूसरे पर शासन नहीं कर पाएगा. कोई किसी से पक्षपात की उम्मीद नहीं करेगा. ऐसे समाज में जीवन और काम-संबंधों को लेकर लोगों का दृष्टिकोण उदार एवं मानवीय होगा…पुरुष सत्तात्मकता मिटेगी. दोनों में कोई भी एक-दूसरे पर बल-प्रयोग नहीं करेगा.आने वाले समाज में कहीं कोई वेश्यावृत्ति नहीं रहेगी. “
ये प्रखर वक्ता, लेखक और चिंतक नास्तिक था और हिंदू विरोधी भी. पेरियार की सोच थी कि हमारे देश में जाति के विनाश का मतलब- भगवान, धर्म, शास्त्र और ब्राह्मणों (ब्राह्मणवाद) का विनाश है. मानते थे कि जाति तभी खत्म हो सकती है, जब ये चारों भी खत्म हो जाएं.
रामायण को लेकर भी विवादित टिप्पणियां की. यहां तक कहा कि रामायण कोई धार्मिक किताब नहीं एक राजनीतिक ग्रंथ है. इस ‘नास्तिक’ चिंतक का निधन 24 दिसंबर 1973 को हुआ.
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केआर/