सतना लोकसभा सीट से विधानसभा के प्रतिद्वंद्वी फिर आमने-सामने

सतना, 21 मार्च . मध्य प्रदेश की सतना लोकसभा सीट पर रोचक मुकाबला होने जा रहा है.अब से चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव के प्रतिद्वंदी एक बार फिर आमने-सामने हैं.

कांग्रेस ने जहां विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं भाजपा ने चार बार से सांसद और अभी हाल ही में विधानसभा चुनाव हारने वाले गणेश सिंह को मैदान में उतारा है.

सतना लोकसभा सीट की स्थिति पर गौर करें तो एक बात साफ हो जाती है कि यहां पिछड़े वर्ग की बहुलता है. इसी बात को ध्यान में रखकर भाजपा ने जहां गणेश सिंह को एक बार फिर मौका दिया है, दूसरी ओर कांग्रेस ने सिद्धार्थ कुशवाहा को मैदान में उतारा है.

गणेश सिंह कुर्मी जाति से आते हैं, वहीं सिद्धार्थ का नाता कुशवाहा जाति से है. इन दोनों ही जातियों के मतदाताओं की संख्या यहां अच्छी खासी है. वहीं इस सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या ज्यादा नहीं है.

इस सीट के इतिहास पर गौर करें तो अब तक 15 लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें कांग्रेस पांच बार जीती है. भाजपा, जिसमें जनसंघ और जनता पार्टी भी शामिल है, नौ बार जीती है. इसके अलावा 1996 में बहुजन समाज पार्टी का उम्मीदवार भी जीता है. इन 15 चुनावों में जहां सात बार पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को जीत मिली, वहीं दो बार अल्पसंख्यक भी चुनाव जीते हैं.

यहां कांग्रेस अंतिम बार 1991 में जीती थी, जब अर्जुन सिंह निर्वाचित हुए थे. गणेश सिंह चार बार से सांसद हैं और पांचवी बार चुनावी मैदान में हैं. सिद्धार्थ कुशवाहा के पिता सुखलाल कुशवाहा सतना से बसपा के सांसद रह चुके हैं. सतना संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें से पांच पर भाजपा का कब्जा है और दो कांग्रेस के पास है.

लगभग चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में सतना विधानसभा सीट पर भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर गणेश सिंह और कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा के बीच मुकाबला हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस के कुशवाहा ने गणेश सिंह को लगभग पांच हजार वोटों के अंतर से मात दी थी. यहां बहुजन समाज पार्टी को 33 हजार से ज्यादा वोट मिले थे.

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां बसपा का भी वोट बैंक है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पिछड़े वर्ग और उच्च जाति के मतदाता लगभग बराबर की स्थिति में है, ऐसे में दोनों उम्मीदवारों के पिछड़े वर्ग के होने के कारण उच्च वर्ग के मतदाताओं की भूमिका निर्णायक हो सकती है.

यह चुनाव गणेश सिंह को विधानसभा चुनाव में सिद्धार्थ के हाथों मिली हार का हिसाब बराबर करने का मौका भी दे रहा है.

एसएनपी/एफजेड