आंध्र प्रदेश में चुनाव नजदीक आते ही फिर उछला विशेष राज्य का दर्जा

अमरावती, 15 फरवरी . आंध्र प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा के लिए एक साथ होने वाले चुनाव से कुछ ही सप्ताह पहले राज्य के लिए विशेष श्रेणी के दर्जे (एससीएस) का मुद्दा एक बार फिर राज्य की राजनीति के केंद्र में है.

सत्तारूढ़ युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) 2019 के चुनावों में भारी जीत के बावजूद अपने वादे पूरे करने में विफल रहने के लिए विपक्ष के दबाव में है.

वाईएसआरसीपी द्वारा तत्कालीन सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के खिलाफ एससीएस को एक प्रमुख मुद्दा बनाने के पांच साल बाद वाईएसआरसीपी अब उसी स्थिति में है.

विशेष राज्य का दर्जा 2014 में विभाजन के बाद से ही यहाँ की राजनीति पर हावी रहा है. वास्तव में, इस मुद्दे के कारण कुछ साल पहले गठबंधन सहयोगियों की राहें अलग हो गई थीं.

आंध्र प्रदेश के विभाजन के समय 2014 में केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने संसद में वादा किया था कि आंध्र प्रदेश को एससीएस प्रदान किया जाएगा. भाजपा ने भी 2014 के चुनावों में एससीएस प्रदान करने का वादा किया था.

भाजपा ने तब टीडीपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था और जन सेना नेता और अभिनेता पवन कल्याण ने गठबंधन के लिए प्रचार किया था.

हालाँकि, सत्ता में आने के दो साल बाद, भाजपा ने स्पष्ट कर दिया कि विशेष दर्जा प्रदान नहीं किया जा सकता क्योंकि वह राज्यों को वित्तीय सहायता के बारे में नए सख्त दिशानिर्देशों अवहेलना नहीे कर सकती. इसकी बजाय उसने आंध्र प्रदेश को एक विशेष पैकेज की पेशकश की.

इससे नाराज होकर, पवन कल्याण ने भाजपा से नाता तोड़ लिया और केंद्र द्वारा पेश किए गए “बासी लड्डू” स्वीकार करने के लिए टीडीपी की आलोचना की.

विशेष दर्जा दिलाने में विफलता के लिए वाईएसआरसीपी की ओर से बढ़ते दबाव के बीच टीडीपी ने भी 2018 में भाजपा से नाता तोड़ लिया.

अगले साल 2019 में भारी जीत के साथ सत्ता में आई वाईएसआरसीपी ने राज्य की 25 लोकसभा सीटों में से 22 सीटें भी जीतीं. हालाँकि, भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को संसद में बहुमत प्राप्त है, इसलिए वह दबाव नहीं बना सका.

मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी संसद में प्रमुख विधेयकों को पारित करने के लिए दिए गए समर्थन और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों के लिए एनडीए उम्मीदवारों के समर्थन के बदले केंद्र से आश्वासन लेने में विफल रहने के लिए राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर आ गए.

चूंकि जन सेना ने 2019 के चुनावों में हार के बाद भाजपा के साथ अपना गठबंधन पुनर्जीवित किया और टीडीपी भी एक बार फिर भगवा पार्टी के साथ हाथ मिलाने की कोशिश कर रही है, इसलिए वे वाईएसआरसीपी पर दबाव बनाने में विफल रहे.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2022 में अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के आंध्र प्रदेश चरण के दौरान कहा था कि कांग्रेस पार्टी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा देने के लिए प्रतिबद्ध है.

जैसे-जैसे राज्य चुनाव के करीब आ रहा है, मुद्दा फिर से केंद्र में आ गया है. इसका मुख्य श्रेय जगन मोहन रेड्डी की बहन वाई.एस. शर्मिला को जाता है जिसने पिछले महीने कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद संभालने के तुरंत बाद यह मुद्दा उठाया था.

उन्होंने राज्य को विशेष दर्जा नहीं मिलने के लिए जगन और पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू दोनों को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री दोनों ने राज्य के हितों को गिरवी रख दिया.

शर्मिला ने दावा किया कि वाईएसआरसीपी के 22 सांसद और टीडीपी के तीन सांसद भाजपा के कब्जे में हैं और दोनों पार्टियां केंद्र सरकार के इशारों पर नाच रही हैं.

कांग्रेस नेता ने पूछा कि क्या जगन ने मुख्यमंत्री बनने के बाद इसे हासिल करने के लिए ईमानदारी से लड़ाई लड़ी.

प्रदेश काँग्रेस प्रमुख ने राष्ट्रीय राजधानी में धरना भी दिया और एससीएस की मांग के लिए समर्थन जुटाने के लिए विभिन्न दलों के नेताओं से मुलाकात की.

बढ़ते दबाव के कारण जगन को पिछले सप्ताह इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी थी. उन्होंने विधानसभा में कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को केंद्र में बहुमत नहीं मिलना चाहिए. उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूं कि सत्ता में आने वाली किसी भी पार्टी को समर्थन के लिए वाईएसआरसीपी पर निर्भर रहना पड़े. अगर कोई सरकार हमारे अनुकूल है, तो हम आंध्र प्रदेश के लिए एससीएस पर सौदेबाजी कर सकते हैं.”

पूर्व सीबीआई संयुक्त निदेशक वी. वी. लक्ष्मी नारायण ने हाल ही में एससीएस के लिए लड़ने के एकमात्र एजेंडे के साथ एक राजनीतिक पार्टी बनाई है.

उनका मानना है कि बेरोजगारी अधिक होने का मुख्य कारण राज्य को एससीएस नहीं मिलना है. यह आरोप लगाते हुए कि वाईएसआरसीपी, टीडीपी और जन सेना सभी ने विशेष श्रेणी के दर्जे के मुद्दे को दरकिनार कर दिया है, उन्होंने कहा कि जय भारत नेशनल पार्टी इस मुद्दे को मुख्यधारा की चर्चा में लाएगी.

लक्ष्मी नारायण 2019 चुनाव से ठीक पहले अभिनेता राजनेता पवन कल्याण की जन सेना पार्टी में शामिल हुए थे. उन्होंने जन सेना के टिकट पर विशाखापत्तनम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन असफल रहे.

उन्होंने 2020 में पवन कल्याण के फिल्मों में लौटने के फैसले को अपने पार्टी छोड़ने का कारण बताते हुए जन सेना छोड़ दी.

लक्ष्मी नारायण ने 2018 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी. वह तब महाराष्ट्र में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (योजना और समन्वय) के रूप में कार्यरत थे.

सीबीआई के संयुक्त निदेशक रहते हुए उन्होंने जगन के खिलाफ लगे आय से अधिक संपत्ति के आरोपों की जांच की थी और उन्हें गिरफ्तार किया था.

एकेजे/