New Delhi, 28 जुलाई . जब आप दिल्ली की हलचल भरी सड़कों पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय या तुर्कमान गेट की ओर बढ़ते हैं, तो नजरें सड़क किनारे लगे साइन बोर्ड पर ठहर जाती हैं. अलग-अलग नाम दर्शाने वाले इन बोर्ड्स का कनेक्शन एक ही शख्सियत से जुड़ता है और वो हैं अरुणा आसफ अली.
भले ही आज की पीढ़ी इस नाम से पूरी तरह वाकिफ न हो, मगर इतिहास के पन्ने पलटें तो अरुणा का सार्वजनिक जीवन जितना उपलब्धियों भरा है, उनकी निजी जिंदगी उतनी ही दिलचस्प है. यह जिंदगी आपको एक ऐसी प्रेम कहानी और साहसी व्यक्तित्व से रूबरू कराती है जिसमें प्रेम की भावनाएं हैं तो साथ ही सामाजिक रूढ़ियों को भी आईना दिखाया गया है.
16 जुलाई 1909 को हरियाणा के कालका में जन्मी अरुणा गांगुली का नाता ब्राह्मण परिवार से था, लेकिन उनके इस सफर में जीवन भर के साथी आसफ अली थे. अरुणा आसफ अली का जीवन एक प्रेरणा है, जिसमें प्यार, साहस और समाज को बदलने की जिद दिखाई देती है. उनका प्रेम विवाह उस दौर में एक क्रांतिकारी कदम था, जब धर्म और उम्र के अंतर को सामाजिक ताने-बाने में आजाद करने की कल्पना करना भी मुश्किल था. वैसे, अरुणा और आसफ का रिश्ता केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के लिए उनकी साझा विचारधारा पर भी टिका था.
आसफ अली के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अरुणा ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया. 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में गोवालिया टैंक मैदान पर झंडा फहराने से लेकर ब्रिटिश शासन को चुनौती देने तक अरुणा ने साबित किया कि प्रेम और क्रांति एक साथ चल सकते हैं.
19 साल की उम्र में अरुणा ने 21 साल बड़े और मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले आसफ अली से प्रेम विवाह किया. यह 1928 का समय था, जब अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक विवाह समाज के लिए बड़े ‘कलंक’ थे. अरुणा ने न केवल अपने दिल की सुनी, बल्कि इस प्रेम को स्वतंत्रता संग्राम के साझा जुनून से जोड़कर एक मिसाल भी कायम की.
बताया जाता है कि जब अरुणा कोलकाता के गोखले मेमोरियल कॉलेज में प्रोफेसर थीं, तो उस दौरान उनकी पहली मुलाकात इलाहाबाद के प्रसिद्ध वकील और कांग्रेस नेता आसफ अली से हुई. आसफ अली स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे और इसी दौरान दोनों के बीच प्रेम पनपा. इस प्रेम को मंजिल मिलने में आसफ का 21 साल बड़े होने और एक मुस्लिम होना बहुत बड़ी बाधाएं थीं—एक ऐसा रिश्ता, जो रूढ़िवादी समाज के लिए अस्वीकार्य था. अरुणा के परिवार, खासकर उनके पिता उपेंद्रनाथ गांगुली भी इस अंतरजातीय और उम्र के अंतर वाले विवाह के सख्त खिलाफ थे. इसके बावजूद अरुणा ने 1928 में अपनी मर्जी से आसफ अली से विवाह किया.
विवाह के बाद अरुणा के जीवन की दिशा बदल गई. आसफ अली के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ाव ने अरुणा को भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रेरित किया. भारत की आजादी की पृष्ठभूमि के इर्द-गिर्द बनी इस प्रेम कहानी की बुनियाद सिर्फ रोमांस पर नहीं टिकी थी. अरुणा आसफ अली की विचारधारा स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और महिलाओं के अधिकारों पर केंद्रित थी. वह समाजवादी विचारों से गहरे रूप से प्रभावित थीं और जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादी नेताओं के साथ मिलकर काम करती थीं.
अरुणा आसफ अली को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें 1964 का लेनिन शांति पुरस्कार, 1991 का जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार, और मरणोपरांत 1997 में भारत रत्न शामिल हैं. उनकी याद में दक्षिण दिल्ली में एक सड़क का नाम ‘अरुणा आसफ अली मार्ग’ रखा गया है. इसके अलावा 1998 में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था.
29 जुलाई 1996, उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. लेकिन, उनकी कहानी आज भी साहस, समर्पण और प्रेम की मिसाल है.
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एफएम/एएस