कृत्रिम मिठास का याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता पर पड़ता है असर: अध्ययन

New Delhi, 13 सितम्बर एक अध्ययन में दावा किया गया है कि कृत्रिम मिठास या कम या बिना कैलोरी वाले मिठास वाले पदार्थों का लंबे समय तक उपयोग, जो मुख्य रूप से मधुमेह रोगियों द्वारा उपयोग किया जाता है, संज्ञानात्मक गिरावट का कारण बन सकता है.

ब्राजील के साओ पाउलो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 12,000 ऐसे मरीजों का विश्लेषण किया जो एस्पार्टेम, सैकरीन, जाइलिटोल, एरिथ्रिटोल, सोर्बिटोल, टैगैटोज और एसेसल्फेम जैसे सामान्य कृत्रिम स्वीटनर का इस्तेमाल करते हैं.

न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित परिणामों में पाया गया कि जिन लोगों ने ज्यादा मात्रा में चीनी का सेवन किया, उनकी सोच और याददाश्त में करीब 62 प्रतिशत गिरावट आई, जबकि कम मात्रा में चीनी का सेवन करने वालों में ऐसा नहीं देखा गया.

एम्स में न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. मंजरी त्रिपाठी ने को बताया, “हम जानते हैं कि चीनी और चीनी के विकल्प मधुमेह और घातक बीमारियों के जोखिम को बढ़ाते हैं. ये मस्तिष्क की संवहनी कोशिकाओं की शिथिलता से भी जुड़े हैं.” उन्होंने इसके इस्तेमाल को सीमित करने की सलाह दी.

अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों ने कृत्रिम मिठास का सामान्य मात्रा में सेवन किया, उनकी याददाश्त और सोचने की क्षमता में 35 प्रतिशत की तेजी से गिरावट आई, और मौखिक प्रवाह में 110 प्रतिशत की तेजी से गिरावट आई.

अधिक सेवन करने वाले समूह में, याददाश्त और सोचने की क्षमता में 62 प्रतिशत की तेजी से गिरावट आई, और मौखिक प्रवाह में 173 प्रतिशत की गति से गिरावट आई.

शहर के एक अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग की उपाध्यक्ष डॉ. अंशु रोहतगी ने कहा कि मधुमेह रोगियों में सबसे आम तौर पर देखा जाने वाला यह प्रभाव चिंता का विषय है.

रोहतगी ने बताया कि इन विकल्पों के लगातार संपर्क में रहने से मस्तिष्क अधिक संवेदनशील हो सकता है.

रोहतगी ने को बताया, “ये कृत्रिम मिठास तंत्रिका-सूजन पैदा कर सकती हैं, और यह संज्ञानात्मक गिरावट (कोग्नेटिव डिक्लाइन) का एक कारण हो सकता है. दूसरा कारण यह हो सकता है कि यह आंत के माइक्रोबायोम को बदल रही हो.”

चेन्नई स्थित मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) द्वारा 2024 में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि कॉफी और चाय जैसे दैनिक पेय पदार्थों में टेबल शुगर (सुक्रोज) की जगह थोड़ी मात्रा में प्राकृतिक और कृत्रिम गैर-पोषक स्वीटनर (एनएनएस) जैसे सुक्रालोज का इस्तेमाल करने से ग्लूकोज या एचबीए1सी के स्तर जैसे ग्लाइसेमिक मार्करों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ सकता है.

डायबिटीज थेरेपी पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों ने सुक्रालोज को पेलेट (टिकिया), तरल या पाउडर के रूप में इस्तेमाल किया, उनके शरीर के वजन (बीडब्ल्यू), कमर की परिधि (डब्ल्यूसी) और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) में भी थोड़ा सुधार हुआ.

2023 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने स्वास्थ्य सेवा हितधारकों और आम जनता के बीच एनएनएस के उपयोग को लेकर चिंता जताई.

केआर/