चिंता से पार्किंसंस बीमारी होने का जोखिम दोगुना, स्टडी में खुलासा

नई दिल्ली, 25 जून . आज की इस मॉडर्न लाइफस्टाइल में भले ही चीजें आसान दिखे, लेकिन चिंता पहले के जमाने से कहीं ज्यादा बढ़ गई है. अगर आप दिमागी रूप से चिंता में हैं, तो आपको कई गंभीर बीमारियां होने का खतरा रहता है. एक नई स्टडी में पता चला है कि चिंता से ग्रस्त लोगों में पार्किंसंस बीमारी के बढ़ने का जोखिम दोगुना हो सकता है.

पार्किंसंस नर्वस सिस्टम और ब्रेन से जुड़ी एक क्रोनिक बीमारी है और वर्तमान में दुनिया भर में लगभग 10 मिलियन लोग इससे पीड़ित हैं.

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के शोधकर्ताओं ने पाया कि पार्किंसंस के डिप्रेशन, नींद में खलल, थकान, हाइपोटेंशन, कंपकंपी, अकड़न, शरीर का बैलेंस बिगड़ना और कब्ज जैसे लक्षण हैं.

यूसीएल के महामारी विज्ञान डॉ. जुआन बाजो अवारेज ने कहा, ”चिंता को पार्किंसंस बीमारी का शुरुआती चरण माना जाता है. हमारी स्टडी से पहले, चिंता से ग्रस्त 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में पार्किंसंस का संभावित जोखिम अज्ञात था.”

डॉ. जुआन ने कहा, “यह देखते हुए कि चिंता और अन्य लक्षण 50 साल की उम्र से ज्यादा लोगों में पार्किंसंस बीमारी को बढ़ा सकते हैं, हम उम्मीद करते हैं कि हम इस स्थिति का पहले ही पता लगा सकेंगे और मरीजों को जरूरी इलाज दिलाने में मदद कर सकेंगे.”

उन्होंने कहा कि अनुमान है कि 2040 तक पार्किंसंस बीमारी 14.2 मिलियन लोगों को प्रभावित करेगी.

109,435 मरीजों पर यह रिसर्च की गई, जिसमें 50 साल की उम्र से ज्यादा लोगों में चिंता बढ़ती गई. उनकी तुलना 878,256 मैचिंग कंट्रोल्स से की गई, जिन्हें चिंता नहीं थी.

ब्रिटिश जर्नल ऑफ जनरल प्रैक्टिस में प्रकाशित शोध के परिणामों से पता चला कि कंट्रोल्स ग्रुप की तुलना में चिंता वाले लोगों में पार्किंसंस बीमारी होने का जोखिम दोगुना है.

पीके/