नई दिल्ली, 12 दिसंबर . एक शोध में यह बात सामने आई है कि आंत की कोशिकाओं को लक्षित करने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का विकास डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याओं के उपचार में नए रास्ते खोल सकता है.
इन आंत-लक्षित दवाओं के उपयोग से रोगियों और उनके बच्चों में कॉग्निटिव, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और पाचन तंत्र संबंधी और व्यवहार संबंधी दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी वैगेलोस में क्लिनिकल न्यूरोबायोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर मार्क एन्सॉर्ग ने कहा, “सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाने वाली और कई रोगियों की मदद करने वाली प्रोजैक और जोलॉफ्ट जैसी अवसादरोधी दवाएं कभी-कभी ऐसे दुष्प्रभाव पैदा कर सकती हैं जिन्हें रोगी बर्दाश्त नहीं कर सकते.”
एन्सॉर्ग ने कहा कि गैस्ट्रोएंटरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि ये दवाएं केवल आंतों की कोशिकाओं पर ही काम करें तो कई तरह की समस्याओं से बचा जा सकता है.
इसके अलावा टीम ने कहा कि यह गर्भवती महिलाओं की भी मदद कर सकता है. इससे उसके बच्चे पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा.
डिप्रेशन और एंग्जायटी के लिए 30 से अधिक वर्षों से प्रथम-पंक्ति के औषधीय उपचार के रूप में उपयोग किए जाने वाले एंटीडिप्रेसेंट, जो सेरोटोनिन को बढ़ाते हैं, प्लेसेंटा को पार करने और बाद में बचपन में मूड, संज्ञानात्मक और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल से संबंधित समस्याओं को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं.
सेरोटोनिन बढ़ाने वाले एंटीडिप्रेसेंट 30 से अधिक वर्षों से चिंता और अवसाद के लिए पहली पंक्ति के औषधीय उपचार के रूप में जाने जाते हैं.
एन्सॉर्ग ने कहा, दूसरी ओर गर्भावस्था के दौरान अगर डिप्रेशन का इलाज समय से न किया जाए तो यह होने वाले बच्चे के लिए जोखिम पैदा कर सकता है.”
टीम ने कहा, ”उल्लेखनीय रूप से सेरोटोनिन मस्तिष्क के बाहर भी मुख्य रूप से आंतों की कोशिकाओं में बनता है. वास्तव में हमारे शरीर का 90 प्रतिशत सेरोटोनिन आंत में होता है.”
इस शोध से यह संभावना बढ़ जाती है कि आंत में सेरोटोनिन सिग्नलिंग में वृद्धि आंत-मस्तिष्क संचार और अंततः मनोदशा को प्रभावित कर सकती है.
उन्होंने पाया कि आंतों में सेरोटोनिन बढ़ने से चूहों में चिंता और अवसाद ग्रस्त व्यवहार कम हो जाता है.
एंसोर्गे ने कहा, “ये परिणाम बताते हैं कि सेरोटोनिन सिग्नलिंग सीधे आंत में काम करके चिकित्सीय प्रभाव पैदा करते हैं.”
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एमकेएस/एएस