जोधपुर, 22 अगस्त . Supreme court ने Friday को आदेश दिया कि सभी पकड़े गए आवारा कुत्तों को छोड़ दिया जाए और उनका टीकाकरण किया जाए. इस फैसले से जोधपुर के पशु प्रेमियों में खुशी की लहर दौड़ गई.
पशु प्रेमी जतिन सोलंकी ने समाचार एजेंसी से बात करते हुए कहा कि उनकी लंबे समय की मांग आखिरकार पूरी हो गई. Supreme court ने आवारा कुत्तों के पक्ष में फैसला सुनाया है. अब पूरे भारत में कुत्तों की नसबंदी के अभियान तेजी से शुरू होंगे. साथ ही, इसकी निगरानी को भी अनिवार्य कर दिया गया है. सोलंकी ने कहा कि यह देखकर खुशी हो रही है और उन्हें उम्मीद है कि नीदरलैंड की तरह भारत भी आवारा कुत्तों की समस्या से मुक्त हो सकता है.
सोलंकी ने पहले पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) कार्यक्रम को ठीक से लागू न करने की आलोचना की. उन्होंने कहा कि नगरपालिका अधिकारियों ने इस काम को धीमा कर दिया था. Supreme court के हस्तक्षेप और नए दिशानिर्देशों से अब नीदरलैंड के मॉडल को गंभीरता से अपनाने की जरूरत है.
कुशल अग्रवाल ने कहा कि यह निर्णय एक बड़ी राहत है. कुत्तों के भोजन के लिए निर्धारित स्थान बनाना एक सोची-समझी पहल है. इससे जनता को कोई परेशानी नहीं होगी और एबीसी का प्रभावी ढंग से पालन किया जाएगा. नसबंदी के बाद कुत्तों को छोड़ना एक स्वागत योग्य कदम है.
अंशुमान जोधा ने कहा कि हम इस फैसले से खुश हैं. अगर पशु जन्म नियंत्रण का सख्ती से पालन किया जाए, तो अनावश्यक कष्टों को रोका जा सकेगा. दिशानिर्देश अब स्पष्ट हैं और इन्हें ठीक से लागू किया जाना चाहिए.
बता दें कि Supreme court ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में आवारा कुत्तों को पकड़ने और उनके पूर्ण पुनर्वास के अपने पहले के निर्देशों में संशोधन किया. एक नए आदेश में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने निर्देश दिया कि पकड़े गए आवारा कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद उनके अपने क्षेत्र में ही छोड़ दिया जाना चाहिए, सिवाय उन कुत्तों के जो रेबीज से संक्रमित हैं या आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करते हैं.
इससे पहले, 11 अगस्त को Supreme court ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों के बढ़ते आतंक को लेकर फिक्र जाहिर करते हुए एमसीडी और न्यू दिल्ली म्युनिसिपल काउंसिल (एनडीएमसी) को तुरंत कार्रवाई करते हुए सभी आवारा कुत्तों को पकड़ने और हटाने का निर्देश दिया था. कोर्ट के इस फैसले के बाद समाज के कई वर्गों में आक्रोश फैल गया था.
इसके बाद, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने एक बड़ी तीन-न्यायाधीशों वाली पीठ का गठन किया क्योंकि न्यायमूर्ति पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा पारित आदेश स्पष्ट रूप से सर्वोच्च न्यायालय के 2024 के उस आदेश के विपरीत था जिसमें आवारा पशुओं की हत्या पर रोक लगाई गई थी और सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा को एक संवैधानिक मूल्य के रूप में रेखांकित किया गया था.
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पीएसके/केआर