विश्लेषकों की राय, बढ़ते वैश्विक जोखिमोंं के कारण दरों में कटौती में देरी कर सकता है आरबीआई

नई दिल्ली, 15 अप्रैल . विश्लेषकों की राय है कि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी समेत बढ़ते वैश्विक जोखिमों के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) नीतिगत दरों में कटौती में देरी कर सकता है.

कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने कहा, “हम मौजूदा वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में दरों में आधा फीसदी की कटौती की अपनी अपील पर कायम हैं. इसके बावजूद हमें लगता है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों, अमेरिकी फेडरल रिजर्व के दरों में कटौती के चक्र में देरी और ऊंची खाद्य मुद्रास्फीति के कारण आरबीआई की दरों में कटौती में और देरी हो सकती है.”

ब्रोकरेज कंपनी ने कहा, “निकट भविष्य में बढ़ती महंगाई के कारण खाद्य महंगाई में तेजी, भू-राजनैतिक जोखिमों और ओपेक प्लस देशों के आपूर्ति में कटौती करने से कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और गैर-ऊर्जा वस्तुओं की ऊंची कीमतों के कारण वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में औसत खुदरा महंगाई के पांच प्रतिशत से ऊपर रहने का जोखिम है. जैसा कि आरबीआई गवर्नर ने भी कहा है, ये जोखिम मुद्रास्फीति कम करने के अंतिम पड़ाव पर चुनौती बन सकते हैं.”

जैसा कि अपेक्षित था, मार्च में ओवरऑल मुद्रास्फीति घटकर 4.85 प्रतिशत पर आ गई जबकि कोर मुद्रास्फीति मामूली रूप से घटकर 3.3 प्रतिशत पर रही. ब्रोकरेज ने कहा, ”हम ओवरऑल मुद्रास्फीति में केवल धीरे-धीरे नरमी की उम्मीद करते हैं.”

मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज ने एक रिपोर्ट में कहा है कि मुद्रास्फीति और आईआईपी डेटा उम्मीदों के अनुरूप थे, जिसका मौद्रिक राजकोषीय नीति पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा.

ब्रोकरेज कंपनी ने कहा, “हमें उम्मीद है कि अगले साल खुदरा महंगाई दर औसतन 4.5 प्रतिशत रहेगी. हमारे विचार में, दर में कटौती केवल वित्त वर्ष 2024-25 के अंत में हो सकती है.”

एकेजे/