पोर्ट सूडान, 15 नवंबर . वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी), ने सूडान के उत्तरी दारफुर और दक्षिणी कोर्डोफन राज्यों को खाद्य सहायता के लिए सुरक्षित मार्ग प्रदान करने की अपील है. डब्ल्यूएफपी संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है और दुनिया भर में खाद्य सहायता देता है.
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, डब्ल्यूएफपी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, “कई महीनों में पहली बार डब्ल्यूएफपी के कई खाद्य सहायता काफिले उत्तरी दारफुर के जमजम और दक्षिण कोर्डोफन के कडुगली की तरफ जा रहे थे.” बता दें जमजम में अकाल की पुष्टि हुई है.
बयान में कहा गया है, “हमारे पास भोजन है, हमारे पास ट्रक हैं यह सुनिश्चित करने के लिए हमारे पास कर्मचारी भी हैं कि मदद जरुरतमंदों तक पहुंचे. अब, हमें सभी युद्धरत पक्षों और सशस्त्र समूहों की जरुरत है ताकि यह महत्वपूर्ण भोजन और पोषण सुरक्षित रूप से पहुंचाया जा सके.”
सूडानी सरकार ने बुधवार को देश में युद्ध प्रभावित आबादी को मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए चाड के साथ आद्रे बॉर्डर क्रॉसिंग को तीन महीने के लिए खोलने का फैसला किया.
सरकार ने बुधवार को बाद में कहा कि चल रहे गृहयुद्ध के कारण सूडान में 28.9 मिलियन लोगों को मानवीय सहायता की जरुरत है. इनमें से 16.9 मिलियन लोगों को जीवन रक्षक मानवीय सहायता चाहिए, जिसके लिए अगले दो महीनों में लगभग 840,000 मीट्रिक टन सहायता की आवश्यकता होगी.
सरकार ने फरवरी में आद्रे लैंड बॉर्डर क्रॉसिंग को बंद कर दिया था और अर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ) पर हथियारों के परिवहन के लिए इसका इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.
सूडान की ट्रांजिशनल सॉवरेन काउंसिल ने 15 अगस्त को आद्रे क्रॉसिंग को तीन महीने के लिए दोबारा खोलने का फैसला किया था.
सूडान अप्रैल 2023 के मध्य से सूडानी सशस्त्र बलों (एसएएफ) और आरएसएफ के बीच घातक संघर्ष में उलझा हुआ है.
14 अक्टूबर को आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डाटा प्रोजेक्ट की ओर से जारी स्टेट्स रिपोर्ट के अनुसार, संघर्ष के चलते 24,850 से अधिक मौतें हुई हैं. वहीं अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन ने अनुमान लगाया है कि 29 अक्टूबर तक सूडान के भीतर या बाहर 14 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं.
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, लगभग 25.6 मिलियन लोग – सूडान की आधी से अधिक आबादी – चल रहे संघर्ष के बीच भुखमरी का सामना कर रही है. इनमें से 755,000 से अधिक लोग अकाल जैसी परिस्थितियों में रह रहे हैं.
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