New Delhi, 17 अगस्त . कुछ लोग इतिहास में लिखे जाते हैं और कुछ लोग इतिहास बन जाते हैं. भारतीय सेना के पराक्रमी अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल अर्देशिर बुर्जोरजी तारापोर (एबी तारापोर) उन्हीं में से एक थे. 1965 के भारत-पाक युद्ध में छह दिनों तक लगातार साहस, शौर्य और नेतृत्व का ऐसा प्रदर्शन किया कि दुश्मन ही नहीं, दुनिया भी हैरान रह गई.
18 अगस्त 1923 को Mumbai में जन्मे एबी तारापोर का परिवार वीरता की परंपरा का ध्वजवाहक था. उनके पूर्वज रतनजीबा छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति रहे थे. उनकी सेवाओं के सम्मान में शिवाजी ने उन्हें सौ गांव दिए थे, जिनमें से ‘तारापुर’ मुख्य गांव था और यही उपनाम आगे चलकर एबी तारापोर तक पहुंचा. घर में सब उन्हें प्यार से ‘आदि’ पुकारते थे. बचपन से ही उनमें साहस की झलक दिखती थी. पढ़ाई में औसत होने के बावजूद वे खेलों के मैदान में चमकते सितारे थे.
1942 में उन्होंने 7वीं हैदराबाद इन्फैंट्री से सैन्य जीवन की शुरुआत की. ग्रेनेड प्रशिक्षण के दौरान हुई एक दुर्घटना ने उनकी बहादुरी को और निखारा. जब एक सिपाही से गलती से ग्रेनेड पास ही गिर गया, तो युवा लेफ्टिनेंट आदि ने बिना सोचे-समझे उसे उठाकर दूर फेंक दिया. विस्फोट से वे घायल हो गए, लेकिन उनकी तत्परता देखकर सेना प्रमुख मेजर जनरल ईआई एडरूस ने उन्हें बख्तरबंद रेजिमेंट में भेजने का अनुरोध स्वीकार कर लिया. यही से उनकी असली सैन्य यात्रा की शुरुआत हुई.
आजादी के बाद जब हैदराबाद India में विलय हुआ, तो 1951 में एबी तारापोर को भारतीय सेना की पूना हॉर्स रेजिमेंट में नियुक्ति मिली. धीरे-धीरे वे अपने रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर बने. अपने साथियों के लिए वे सिर्फ अफसर नहीं, बल्कि प्रेरणा थे. वे अनुशासन में कठोर लेकिन दिल से बेहद स्नेही थे.
सितंबर 1965 में India और Pakistan आमने-सामने थे. सियालकोट सेक्टर में फिल्लौरा पर कब्जा करने की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट कर्नल एबी तारापोर को मिली. 7 सितंबर को जब उनकी रेजिमेंट का सामना अमेरिका से मिले Pakistan के अत्याधुनिक पैटन टैंकों से हुआ, तो यह इतिहास के सबसे कठिन क्षणों में से एक था. लेकिन तारापोर के नेतृत्व में भारतीय जवानों ने चमत्कार कर दिखाया. दुश्मन के टैंकों पर इतनी सटीक गोलाबारी हुई कि Pakistan के 60 टैंक ध्वस्त हो गए, जबकि India ने केवल 9 टैंकों की आहुति दी.
गंभीर रूप से घायल होने पर भी एबी तारापोर पीछे नहीं हटे. उन्होंने लगातार छह दिन तक मोर्चे पर रहकर अपने सैनिकों का हौसला बनाए रखा. 16 सितंबर को उनका टैंक दुश्मन की गोलाबारी से आग की लपटों में घिर गया. वे वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन रणभूमि में झुके नहीं.
एबी तारापोर की अंतिम इच्छा थी कि यदि वे रणभूमि में शहीद हों तो उनका अंतिम संस्कार वहीं किया जाए. 17 सितंबर 1965 को जसोरन की धरती ने इस अमर सपूत को अपनी गोद में सदा के लिए समा लिया. दुश्मन सेना ने भी उनके साहस को सलाम किया. India Government ने उन्हें मरणोपरांत देश का सर्वोच्च वीरता सम्मान, परमवीर चक्र प्रदान किया.
Prime Minister Narendra Modi ने जनवरी 2023 में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के 21 द्वीपों का नामकरण 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर करने का निर्णय लिया. इनमें से एक द्वीप आज एबी तारापोर द्वीप के नाम से जाना जाता है. पीएम मोदी ने कहा था कि ये द्वीप देश के उन वीर सपूतों की स्मृति को अमर कर रहे हैं जिन्होंने अपने पराक्रम से India की रक्षा की. ये स्मारक भावी पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करेंगे.
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पीएसके/केआर