हरियाणा में पराली जलाने के खिलाफ युद्ध स्तर पर काम कर रहा कृषि विभाग  

कुरुक्षेत्र (हरियाणा), 21 अक्टूबर . राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के साथ धान कटाई के समय पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी प्रदूषण की समस्या देखने को मिलती है. किसान अक्सर धान कटाई के बाद बचे हुए अवशेषों (पराली) को खेतों में आग लगा देते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है. इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए हरियाणा सरकार का कृषि विभाग युद्ध स्तर पर पराली प्रबंधन का काम कर रहा है.

कुरुक्षेत्र जिले के कृषि विभाग के उपनिदेशक करमचंद ने बताया कि इस साल जिले में करीब तीन लाख 20 हजार एकड़ में धान की फसल थी. लेकिन, मात्र 23 एकड़ में अवशेष जलाने के मामले सामने आए हैं, जो पिछले साल की अपेक्षा लगभग 44 फीसदी कम है. पिछले साल 154 मामले सामने आए थे, जबकि इस साल सेटेलाइट से 89 मामले प्राप्त हुए, जिनमें से 57 मामले आग लगने के थे. उन्होंने कहा कि प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए धान के अवशेष जलाने वाले किसानों से जुर्माना भी वसूला गया है. कुल मिलाकर करीब डेढ़ लाख रुपये का जुर्माना वसूला गया है. इसके अलावा कृषि पोर्टल में उन किसानों को रेड एंट्री में भी डाला जा रहा है ताकि उनका रिकॉर्ड कृषि विभाग के पास रहे.

करमचंद ने यह भी बताया कि सरकार पर्यावरण को लेकर इतनी सख्त है कि किसानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की जा रही है. पराली प्रबंधन को लेकर जिले में करीब सात हजार मशीनें उपलब्ध हैं, जो दो तरीकों से पराली का प्रबंधन करती हैं. पहला, खेत के अंदर पराली को खाद के तौर पर इस्तेमाल करना और दूसरा, पराली को खेत से बाहर निकालने का तरीका, जिसमें पराली के बड़े-बड़े बंडल बनाकर प्रबंधन किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि किसानों को पराली प्रबंधन के लिए प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है. यदि किसान मशीनों के द्वारा पराली का प्रबंधन कराते हैं, तो उन्हें प्रति एकड़ एक हजार रुपये दिए जाते हैं. करमचंद ने कहा कि सेटेलाइट के माध्यम से उनकी टीम दिन भर में रिकॉर्ड इकट्ठा करती है और फिर खेतों में जाकर इसकी पुष्टि करती है. कृषि विभाग ने यह सुनिश्चित किया है कि पिछले साल की तुलना में आग लगाने के मामलों में भारी गिरावट आई है. किसान अब पराली का प्रबंधन कर रहे हैं. विभाग ने किसानों को यह संदेश भी दिया है कि वे पराली को खुशहाली के तौर पर देखें, जिससे पर्यावरण को बचाने में मदद मिलेगी.

पीएसके/एकेजे