संयुक्त राष्ट्र, 12 नवंबर . संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के स्थाई प्रतिनिधि ने यूएन में बदलावों को लेकर कई बाते कहीं.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि पी. हरीश ने सोमवार को महासभा में कहा कि काउंसिल में सुधार करते समय ‘न्यूनतम सामान्य मानक’ को ध्यान में रखते हुए केवल ‘सतही बदलाव’ नहीं किए जाने चाहिए, जिन्हें एक बड़े सुधार के रूप में प्रस्तुत किया जाए.
उन्होंने कहा, “कंसोलिडेटेड मॉडल के विकास को ‘समानता’ पर आधारित किया जाना चाहिए, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि हम न्यूनतम सामान्य मानक तक पहुंचने की दौड़ में शामिल हो जाएं.”
उन्होंने कहा, “ऐसे न्यूनतम सामान्य मानक की तलाश के दौरान यह पूरी संभावना है कि इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मौजूदा संरचना में केवल सतही बदलाव करने के प्रयास के रूप में पेश किया जाए और उसे एक बड़े सुधार के रूप में बताया जाए.”
काउंसिल सुधारों के लिए जो प्रक्रिया “इंटरगवर्नमेंटल नेगोशिएशंस के नाम से जानी जाती है, वह एक छोटे समूह के देशों द्वारा टेक्स्ट आधारित वार्ताओं का विरोध किए जाने के कारण गतिरोध में फंसी हुई है.
रुक गई वार्ताओं को आगे बढ़ाने के लिए एक सुझाया गया तरीका यह है कि सदस्य देशों से प्राप्त इनपुट के आधार पर परिषद का मॉडल विकसित किया जाए, जिससे एक वार्ता टेक्स्ट को अपनाया जा सके, जिस पर चर्चा जारी रखी जा सके.
हरीश ने आगे कहा, “जबकि हम आईजीएन में वास्तविक ठोस प्रगति चाहते हैं, जिसमें टेक्स्ट-आधारित वार्ता के अग्रदूत के रूप में सुरक्षा परिषद में सुधार के एक नए ‘मॉडल’ के विकास के संबंध में प्रगति शामिल है, हम सावधानी बरतने का आग्रह करते हैं.”
उन्होंने कहा कि यदि इससे केवल मामूली परिवर्तन ही होते हैं, तो “इससे महत्वपूर्ण तत्वों, जैसे स्थायी श्रेणी में विस्तार और एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्रों के कम प्रतिनिधित्व की समस्या को दूर करने जैसे कार्यों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया जा सकता है.”
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पीएसएम/एएस