‘आरोपी अभी दोषमुक्त नहीं’, सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट पर दिशा सालियान के पिता के वकील का जवाब

नई दिल्ली, 23 मार्च . अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में सीबीआई द्वारा हाल ही में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने से नई बहस छिड़ गई. दिशा सालियान के पिता के अधिवक्ता नीलेश सी ओझा ने सीबीआई के कदम पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि क्लोजर रिपोर्ट से आरोपी स्वतः ही दोषमुक्त नहीं हो जाते हैं और आगे की जांच का आदेश अभी भी दिया जा सकता है.

से खास बातचीत में ओझा ने इस बात पर जोर दिया कि राजपूत से जुड़े मामलों में सीबीआई द्वारा दाखिल क्लोजर रिपोर्ट का मतलब यह नहीं है कि आरोपी छूट गए हैं.

उन्होंने कहा कि सबसे पहले, क्लोजर रिपोर्ट पर सीबीआई की ओर से कोई प्रामाणिक बयान नहीं आया है. क्लोजर रिपोर्ट जमा होने के बाद भी इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपी बरी हो गए हैं. हमेशा संभावना रहती है कि अगर अदालत को रिपोर्ट असंतोषजनक लगे या और सबूत सामने आए तो वह रिपोर्ट को खारिज कर सकती है. अदालत आगे की जांच का आदेश दे सकती है, नए आरोप पत्र जारी कर सकती है या यहां तक ​​कि आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी कर सकती है, जैसा कि आरुषि तलवार हत्याकांड जैसे मामलों में देखा गया है.

ओझा ने स्पष्ट किया कि उन्होंने अभी तक क्लोजर रिपोर्ट नहीं देखी है और सीबीआई ने अपने निष्कर्षों के बारे में कोई आधिकारिक या प्रामाणिक बयान नहीं दिया है.

उन्होंने जस्टिस निर्मल यादव जैसे पिछले हाई-प्रोफाइल मामलों के उदाहरण दिए, जहां अदालतों ने क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करने के बाद आगे की जांच के आदेश दिए थे. उन्होंने कहा कि अगर अदालत को जांच अधूरी या असंतोषजनक लगती है तो वह क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार नहीं कर सकती है. ऐसे मामलों में एक नई चार्जशीट दायर की जा सकती है या गिरफ्तारी वारंट भी जारी किए जा सकते हैं.

मामले को लेकर चल रही राजनीतिक बहस को संबोधित करते हुए ओझा ने इस धारणा को दृढ़ता से खारिज कर दिया कि मामले को राजनीतिक प्रेरणा से चलाया जा रहा है.

ओझा ने कहा कि राजनेताओं का अपना एजेंडा हो सकता है, लेकिन यह मामला दिशा सालियान और सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय मांगने का है, न कि राजनीतिक लाभ के लिए. कानूनी प्रक्रिया स्वतंत्र रहनी चाहिए और सच्चाई का पता लगाने पर केंद्रित होनी चाहिए, न कि राजनीतिक गतिशीलता से प्रभावित होनी चाहिए.

उन्होंने न्याय की लड़ाई में दिशा सालियान के पिता द्वारा उठाए गए कानूनी कदमों के बारे में भी विस्तार से बताया. ओझा के अनुसार, दिशा के पिता ने सितंबर 2023 में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी, जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने उसी साल दिसंबर तक एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया.

ओझा ने आगे बताया कि एसआईटी के गठन और दिशा के पिता के मामले को फिर से खोलने के समर्थन में बयानों के बावजूद, अधिकारियों की ओर से कार्रवाई में काफी देरी हुई.

उन्होंने कहा कि जनवरी 2024 में दिशा के पिता द्वारा एक औपचारिक शिकायत दर्ज की गई थी, जिसमें सबूत शामिल थे और आदित्य ठाकरे जैसे व्यक्तियों के खिलाफ सामूहिक बलात्कार और हत्या का मामला दर्ज करने की मांग की गई थी. हालांकि, शिकायत में कई महीनों की देरी हुई और पर्याप्त सबूत जमा करने के बावजूद मामला दर्ज नहीं किया गया.

वकील ने मामले में प्रमुख अनुत्तरित प्रश्नों पर प्रकाश डाला, जिनके बारे में उनका मानना ​​है कि इन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा, “दिशा सालियान के पिता चार महत्वपूर्ण सवालों के जवाब मांग रहे हैं: क्या आदित्य ठाकरे के मोबाइल टावर की लोकेशन घटना से जुड़ी थी? क्या वह उस समय आसपास के इलाके में थे? झूठी पोस्टमार्टम रिपोर्ट क्यों बनाई गई? और गवाहों को कथित तौर पर धमकाया क्यों गया?.”

ओझा ने जोर देकर कहा कि ये अनसुलझे मुद्दे जांच में गंभीर हेरफेर और पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं.

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