बीएचयू के हिंदी विभाग पर एबीवीपी का आरोप, ईडब्ल्यूएस के नाम पर घोटाला, विश्वविद्यालय बना माओवादी मानसिकता की प्रयोगशाला

वाराणसी, 19 अप्रैल . काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में शोध प्रवेश प्रक्रिया को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने आरक्षण के नाम पर घोटाले का आरोप लगाते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन और विभागीय जिम्मेदारों पर तीखा प्रहार किया है.

एबीवीपी का कहना है कि यह मामला सिर्फ विभागीय लापरवाही नहीं, बल्कि गहरी साजिश का हिस्सा है, जिसमें माओवादी मानसिकता वाले शिक्षा विरोधी तत्व सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. हिन्दी विभाग में ईडब्ल्यूएस आरक्षण के नाम पर दो पात्र छात्रों को जानबूझकर प्रवेश से वंचित किया गया. इस घोटाले को लेकर विभाग की ओर से कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई और अब यह मामला विश्वविद्यालय की यूएसीबी समिति के समक्ष लंबित है.

परिषद का आरोप है कि कुछ राजनीतिक दलों और शिक्षा विरोधी ताकतों ने इस मुद्दे को जानबूझकर भ्रमित करने की कोशिश की और परिषद के कार्यकर्ताओं को बदनाम करने का सुनियोजित प्रयास किया. परिषद ने बीएचयू इकाई मंत्री भास्करादित्य त्रिपाठी को बदनाम करने के लिए चलाए जा रहे सोशल मीडिया दुष्प्रचार की कड़ी निंदा की. एबीवीपी ने कहा कि यह हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि छात्र अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े हर छात्र की आवाज को कुचलने की कोशिश है. परिषद ने चेताया कि वह दुष्प्रचार का जवाब आंदोलन से देगी.

एबीवीपी ने विश्वविद्यालय प्रशासन से चार प्रमुख मांगें रखी हैं. इनमें ईडब्ल्यूएस आरक्षण में हुए घोटाले की निष्पक्ष जांच, दोषी शिक्षकों और अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई, ईडब्ल्यूएस से जुड़े नियमों पर भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार तत्काल निर्णय लेना और विश्वविद्यालय परिसर को शिक्षा विरोधी राजनीतिक गतिविधियों से मुक्त कराना शामिल है.

परिषद ने दो टूक कहा है कि यदि प्रशासन समय रहते निर्णायक कार्रवाई नहीं करता, तो छात्र हित में परिषद को संघर्ष का रास्ता अपनाना होगा. काशी प्रांत मंत्री अभय प्रताप सिंह ने कहा, “हिन्दी विभाग में जो कुछ हो रहा है, वह सिर्फ अकादमिक लापरवाही नहीं, बल्कि विचारधारा की लड़ाई है. कुछ लोग विश्वविद्यालय को माओवादी मानसिकता की प्रयोगशाला बनाना चाहते हैं. बीएचयू विद्या का मंदिर है, न कि विचारधारा थोपने का मंच.”

इकाई अध्यक्ष प्रशांत राय ने स्पष्ट कहा, “यह लड़ाई केवल दो छात्रों की नहीं है, यह पूरी शोध प्रक्रिया की शुचिता की लड़ाई है. यदि विश्वविद्यालय दबाव में निर्णय लेता है, तो इसका अर्थ है कि बीएचयू की आत्मा को गिरवी रख दिया गया है. परिषद इसे किसी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी.”

विकेटी/एएस