नई दिल्ली, 18 सितंबर . 2000 के दशक से आज के क्रिकेट की तुलना की जाए तो यह काफी बदल चुका है. टी20 प्रारूप क्रिकेट पर राज कर रहा है. वनडे थोड़ा नीरस लगने लगा है और टेस्ट मैचों का अंदाज बहुत तेजी से बदल रहा है. खेल हो या खिलाड़ी, वक्त की जरूरत के हिसाब से ढलने के बाद ही समय के साथ खुद को प्रासंगिक बनाए रखते हैं. आकाश चोपड़ा ऐसी ही एक शख्सियत हैं जिन्होंने एक शांत, शर्मीले दाए हाथ के ओपनर से शानदार कॉमेंटेटर, तेज-तर्रार स्पीकर, क्रिकेट विश्लेषक और यू-ट्यूबर तक का सफर तय किया है. आकाश की मौजूदा सफलता की स्थिति यह है कि गूगल पर ‘आकाश चोपड़ा’ टाइप करते हुए सर्च बार में उनके नाम के सामने ‘क्रिकेट कमेंटेटर और यूट्यूबर’ लिखा आता है.
आकाश चोपड़ा आज हिंदी कमेंट्री के पर्याय बन चुके हैं. उनकी कमेंट्री खेल के रोमांच को बढ़ा देती है. उनकी शैली खास और हाजिरजवाब है. एक बड़े ही शांत और फोकस ओपनर के तौर पर साल 2003 में भारतीय टेस्ट टीम में डेब्यू करने वाले आकाश चोपड़ा के क्रिकेट की शुरुआत दिल्ली से हुई थी. 19 सितंबर के दिन, साल 1977 में उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्में आकाश अपने डेब्यू के समय जिस ओपनिंग साथी की ओर देख रहे थे, उसका नाम वीरेंद्र सहवाग था. वह सहवाग जिनका खेल आकाश चोपड़ा से बिल्कुल विपरीत था.
आकाश चोपड़ा एक तकनीकी बल्लेबाज थे, जिनसे आक्रामक बल्लेबाजी की अपेक्षा भी नहीं थी. आकाश ने टेस्ट क्रिकेट में छोटी लेकिन ठोस पारियों को अंजाम देकर अपनी भूमिका अदा की थी. यह भारत का ऑस्ट्रेलिया दौरा था जब आकाश चोपड़ा की उपयोगिता सबको नजर आ रही थी. हालांकि ये बड़ा दिलचस्प मामला था क्योंकि आंकड़े अलग कहानी बयां कर रहे थे.
चोपड़ा 2003-04 की उस बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी की 8 पारियों में एक बार भी 50 रन का आंकड़ा भी पार नहीं कर सके थे. लेकिन उन्होंने विकेट के एक छोर पर खूंटा गाड़ दिया था और ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाजों का बखूबी सामना करते हुए गेंद को पुराना करने का काम किया था. तब क्लासिक टेस्ट ओपनर का काम मुश्किल ओवरसीज टूर पर नई गेंद की चमक को पुराना करना था. हालांकि दौर तेजी से बदल भी रहा था. क्रिकेट एक नई करवट ले रहा था. लेकिन चोपड़ा की शैली ‘ओल्ड इज गोल्ड’ जैसी थी. ऑस्ट्रेलिया के दौरै पर एक छोर संभालने की भूमिका के लिए क्रिकेट एक्सपर्ट्स ने भारत के इस नए ओपनर की जमकर सराहना की थी.
लेकिन भारतीय क्रिकेट में उस वक्त जो तेजी से बदलाव हो रहा था उसमें चोपड़ा के लिए फिट होने बड़ी चुनौती बनती जा रही थी. आकाश चोपड़ा के धीमे खेल से टीम प्रबंधन को इतनी दिक्कत नहीं थी जितनी उनके द्वारा बड़ा स्कोर न करने से थी. जब भारत ने घरेलू सीरीज में ऑस्ट्रेलिया का सामना किया था तब चोपड़ा का प्रदर्शन फीका रहा था. यह प्रदर्शन चोपड़ा पर तब बहुत भारी पड़ा था क्योंकि उस समय युवराज सिंह जैसे मैच विनर का उभार हो रहा था और मोहम्मद कैफ जैसा चपल खिलाड़ी भी टीम में स्थापित होने की ओर बढ़ रहा था.
इस सब चीजों के चलते भारत के 2004 के पाकिस्तान दौरे पर युवराज सिंह की एंट्री हुई और चोपड़ा को हटा दिया गया था. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ नागपुर में, अक्टूबर 2004 में खेला गया मैच उनके करियर का अंतिम टेस्ट साबित हुआ था. आकाश ने अपने 10 मैचों के टेस्ट करियर में 23 की औसत से 437 रन बनाए थे. वनडे खेलने का मौका उनको नहीं मिला था. 162 फर्स्ट क्लास मैचों में उन्होंने 45.35 की औसत के साथ 10839 रन बनाए थे.
6 फरवरी 2015 को आकाश चोपड़ा ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया था. क्रिकेट के बाद वह उन्होंने कमेंट्री में हाथ आजमाए और इस बार वह धीमे, संकोची और चुपचाप दिखने वाले ओपनर नहीं थे. उन्होंने 22 गज की पिच के खेल को अपनी खास नजरों से दुनिया को दिखाया. चाहे हिंदी पर उनकी पकड़ हो या हाजिरजवाबी, कमेंट्री में तुकबंदी हो या कोई भविष्यवाणी, चोपड़ा अपने अंदाज में छा गए. उनकी हिंदी कमेंट्री शैली ने खेल प्रसारण में भी नई जान फूंक दी. बाद में उनकी आवाज क्रिकेट वीडियो गेम्स कमेंट्री में भी सुनाई दी. वह यूट्यूब पर भी बहुत लोकप्रिय हैं जहां उनका ‘क्रिकेट आकाश’ के नाम से चैनल है जिस पर 4.5 मिलियन सबस्क्राइबर हैं. क्रिकेट में सीमित बल्लेबाजी क्षमता दिखाने वाले आकाश आज एक बहुआयामी व्यक्तित्व बन चुके हैं.
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एएस/