New Delhi, 5 अगस्त . रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठक में Tuesday को लगभग 67,000 करोड़ रुपए की लागत वाले विभिन्न रक्षा अधिग्रहण प्रस्तावों को मंजूरी प्रदान की गई.
बैठक में एस-400 लॉन्ग रेंज एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम के लिए वार्षिक रखरखाव अनुबंध को भी मंजूरी दी गई है. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक यह निर्णय भारत की तीनों सेनाओं – थल सेना, नौसेना और वायु सेना की परिचालन क्षमताओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से लिया गया है. भारतीय थल सेना के बीएमबी बख्तरबंद वाहनों के लिए थर्मल इमेजर आधारित ड्राइवर नाइट साइट की खरीद को मंजूरी दी गई है. इससे रात्रि के समय वाहनों को चलाने की क्षमता बढ़ेगी और मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री को उच्च गतिशीलता और संचालनिक लाभ मिलेगा.
वहीं, भारतीय नौसेना के लिए भी कई आधुनिक उपकरणों की खरीद की आवश्यकता को मंजूरी दी गई है. नौसेना के लिए कॉम्पैक्ट ऑटोनोमस सरफेस क्राफ्ट, ब्रह्मोस फायर कंट्रोल सिस्टम एवं लॉन्चर्स और बराक-1 प्वाइंट डिफेंस मिसाइल सिस्टम का अपग्रेडेशन को स्वीकृत किया गया है. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक इनमें से कॉम्पैक्ट ऑटोनोमस सरफेस क्राफ्ट पनडुब्बी रोधी अभियानों में खतरे की पहचान, वर्गीकरण एवं निष्क्रिय करने की क्षमता प्रदान करेगा.
भारतीय वायु सेना की बात करें तो इसके लिए पर्वतीय रडार की खरीद और सक्षम-स्पाइडर हथियार प्रणाली के अपग्रेडेशन को मंजूरी प्रदान की गई है. रक्षा मंत्रालय का कहना है कि पर्वतीय रडार सीमावर्ती और दुर्गम क्षेत्रों में वायु निगरानी को बेहतर बनाएंगे, जबकि सक्षम-स्पाइडर प्रणाली को इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम से जोड़ने से वायु रक्षा क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि होगी. तीनों सेनाओं के लिए मीडियम ऑल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट की खरीद को मंजूरी प्रदान की गई है. ये ड्रोन दीर्घ दूरी और लंबे समय तक संचालन करने में सक्षम होंगे. इनमें मल्टीपल पेलोड व हथियार प्रणाली लगी होंगी. इससे 24×7 निगरानी एवं युद्धक क्षमता में बड़ा सुधार होगा.
इनके अतिरिक्त सी-17 और सी-130जे के बेड़े के रखरखाव व एस-400 लॉन्ग रेंज एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम के लिए वार्षिक रखरखाव अनुबंध को भी मंजूरी प्रदान की गई है. रक्षा मंत्रालय का मानना है कि यह निर्णय आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. इससे न केवल सशस्त्र बलों की तैयारियों को बल मिलेगा, बल्कि उभरते खतरों का सामना करने के लिए उनकी रणनीतिक क्षमता भी सुदृढ़ होगी.
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जीसीबी/डीएससी