New Delhi, 7 अगस्त . बांग्लादेश में मानवाधिकारों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है, क्योंकि देश कार्यवाहक सरकार के अधीन ‘अराजकता की भूमि’ बन चुका है. यह बात राइट्स एंड रिस्क्स एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) ने Thursday को जारी अपनी रिपोर्ट में कही.
‘आरआरएजी’ के निदेशक सुहास चक्रवर्ती के मुताबिक, अगस्त 2024 से जुलाई 2025 के बीच कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में कम से कम 637 लोगों की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी. इनमें 41 पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं. वहीं, 2023 में शेख हसीना की सरकार के दौरान ऐसी सिर्फ 51 घटनाएं हुईं. चक्रवर्ती ने चेताया है कि आने वाले महीनों में बांग्लादेश में अराजकता और बढ़ सकती है.
रिपोर्ट के मुताबिक, 1,567 मामलों में 5,16,327 लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए, जिनमें 79,491 नामजद और 4,36,836 अज्ञात व्यक्ति शामिल हैं. 878 पत्रकारों को निशाना बनाया गया और 51 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 39 लोगों को साइबर सुरक्षा कानून 2023 के तहत गिरफ्तार किया गया.
इसके अलावा, मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ 2,485 घटनाएं दर्ज की गईं.
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया, “औपचारिक न्याय व्यवस्था को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया है, जिसमें Supreme court और हाईकोर्ट के 21 न्यायाधीशों की बर्खास्तगी और एनएचआरसी के सभी सदस्यों को हटाया जाना शामिल है. मानवाधिकारों के प्रति सरकार की पूर्ण उदासीनता इस तथ्य से स्पष्ट होती है कि 7 नवंबर 2024 को एनएचआरसी के सदस्यों को हटाए जाने के बाद भी मुहम्मद यूनुस ने आयोग को दोबारा सक्रिय नहीं किया.”
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि यूनुस सरकार के अधीन अवामी लीग, उससे संबद्ध संगठन, चटगांव हिल ट्रैक्ट्स (सीएचटी) के मूल निवासियों और हिंदू अल्पसंख्यकों को एकत्र होने और संगठनों के गठन की स्वतंत्रता नहीं है.
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि अक्टूबर 2024 में चटगांव में हिंदू समुदाय की ओर से आयोजित शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अगुवाई करने पर हिंदू पुजारी चिन्मय दास पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया और बाद में हत्या के आरोप भी लगाए गए. वह 25 नवंबर, 2024 से जेल में हैं.
रिपोर्ट में आगे कहा गया, “कार्यवाहक सरकार के तहत किए गए सुधारों का उद्देश्य सत्ता से चिपके रहना और आदिवासी समुदायों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को व्यवस्था से बाहर करना बन गया है. संवैधानिक सुधार आयोग ने मूल निवासियों या धार्मिक अल्पसंख्यकों के किसी भी सदस्य को शामिल नहीं किया. संवैधानिक सुधार आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप ‘धर्मनिरपेक्षता’ को हटाने की सिफारिश की गई, जिससे देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता का समान संरक्षण समाप्त हो गया.”
रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई कि बांग्लादेश में अराजकता आने वाले महीनों में और बढ़ेगी, खासतौर पर आम चुनावों से पहले. इससे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है.
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आरएसजी/डीएससी