सनातन धर्म पुरानी और रूढ़िगत परंपराओं को देता है मान्यता : जितेंद्र आव्हाड

ठाणे, 3 अगस्त . एनसीपी (एससीपी) नेता जितेंद्र आव्हाड ने सनातन धर्म को लेकर अपने हालिया बयान से एक बार फिर राजनीतिक बहस को हवा दे दी है. जितेंद्र आव्हाड ने से बातचीत में कहा कि सनातन धर्म पुरानी और रूढ़िगत परंपराओं को मानता है, जो जाति व्यवस्था और ऊंच-नीच की मानसिकता को बढ़ावा देती है, जबकि हिंदू धर्म बदलाव और समानता की बात करता है.

उन्होंने कहा कि किसके प्रमाण पत्र पर ‘सनातन धर्म’ लिखा है? हमारे प्रमाण पत्र पर ‘हिंदू धर्म’ लिखा है. ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में ‘सनातन’ का अर्थ है, परंपरानिष्ठ या रूढ़िगत यानी जो पुराने सोच-विचारों को मानता है और उन्हें आगे बढ़ाता है. अगर हम पुरानी परंपराओं की बात करें, तो भारत में क्या था? जाति व्यवस्था थी, ऊंच-नीच का भेदभाव था, छुआछूत थी, मंदिरों में प्रवेश वर्जित था. क्या हम ऐसी परंपराओं को आगे बढ़ाना चाहते हैं? नहीं, हम ऐसा नहीं चाहते.

उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि भगवान बुद्ध, चार्वाक, ज्ञानेश्वर महाराज, तुकाराम महाराज और अन्य संतों को सताने वाले सनातनी विचारधारा के लोग थे.

उन्होंने सवाल उठाया, “शिवाजी महाराज को क्षत्रिय मानने से इनकार करने वाले कौन थे? उनका राज्याभिषेक रोकने वाले कौन थे? वे सनातनी थे, जो जाति व्यवस्था को मानते थे. क्या हम ऐसी परंपराओं को स्वीकार करेंगे? नहीं.”

आव्हाड ने जोर देकर कहा कि हिंदू धर्म बदलाव को स्वीकार करता है, जबकि सनातन धर्म पुरानी रूढ़ियों को बनाए रखने की वकालत करता है.

उन्होंने कहा, “जो बदलाव चाहता है, वह हिंदू है. जो बदलाव नहीं चाहता, वह सनातनी है. हमने देखा है कि पांच हजार साल तक भारत में जाति व्यवस्था ने निचली जातियों को पढ़ने-लिखने और सम्मानजनक जीवन जीने से वंचित रखा. आज भी अगर हम मनुस्मृति को मानें, तो चतुर वर्ण व्यवस्था लागू होगी और हमारी महिलाओं को घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा. वर्ण व्यवस्था आज भी कायम रहती. लगभग सभी हिंदुओं ने कहा कि संविधान हमारा अधिकार है, न कि मनुस्मृति. संविधान ने हमें बदलाव का रास्ता दिखाया.”

उन्होंने आगे कहा कि अगर हम मनुस्मृति को मानते, तो आज भी वर्ण व्यवस्था चल रही होती. सबको बोलने का अधिकार है, ये अधिकार संविधान ने दिया है, मनुस्मृति ने नहीं. मेरे खिलाफ जो चाहो कहो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं बोलना बंद कर दूंगा.”

आव्हाड ने आगे कहा कि सनातन धर्म को हाल के वर्षों में राजनीतिक लाभ के लिए उभारा जा रहा है. अचानक दो साल में सनातन धर्म की बात क्यों शुरू हुई? प्रमाण पत्रों पर ‘हिंदू धर्म’ लिखा है, ‘सनातन धर्म’ नहीं. यह सब राजनीतिक फायदे के लिए हो रहा है. मैं 30 साल से यही बात कह रहा हूं. मेरे विधानसभा क्षेत्र में 50 प्रतिशत हिंदू हैं. मुझे किसी से हिंदू होने का प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं है. यह मेरी विचारधारा है और मैं इसे मरते दम तक बनाए रखूंगा.

उन्होंने डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें स्कूल के बाहर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ी थी, क्योंकि सनातनी परंपराओं ने निचली जातियों को शिक्षा से वंचित रखा था. मैं सामाजिक बात कर रहा हूं, राजनीतिक नहीं. सनातन धर्म की आड़ में रूढ़ियों को बढ़ावा देना गलत है. हमारी बेटियां स्कूल जाएंगी, पढ़ेंगी, और सम्मान के साथ जिएंगी. हम ऊंच-नीच की व्यवस्था को स्वीकार नहीं करेंगे.

आव्हाड ने भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के मुद्दे पर भी टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “जब तक आतंकवाद जैसे मुद्दे हल नहीं होते, तब तक क्रिकेट जैसे खेलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. यह फैसला देशवासियों को लेना है, न कि किसी बाहरी ताकत को. ट्रंप तय करेंगे कि हमें पाकिस्तान के साथ खेलना है या नहीं, किसी में इसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं है क्योंकि सरकार केवल ट्रंप की सुनती है.”

एकेएस/एबीएम