राम मंदिर आंदोलन : गोरक्षपीठ के साथ गोरखपुर के कई लोगों की भी रही अहम भूमिका

Lucknow, 3 अगस्त . यह ऐतिहासिक तथ्य है कि राम मंदिर आंदोलन में गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ (जिसके वर्तमान पीठाधीश्वर Chief Minister योगी आदित्यनाथ हैं) की एक सदी से अधिक समय तक केंद्रीय भूमिका रही है. गोरखपुर और अयोध्या स्थित राम मंदिर के बीच इत्तेफाक कुछ और भी रिश्ता है. इस आंदोलन के दौरान तमाम निर्णायक निर्णय लेने वाले लोग भी गोरखपुर के ही थे.

मसलन, ताला खोलने का जजमेंट देने वाले जज केएम पांडेय और Chief Minister बीर बहादुर सिंह भी गोरखपुर के ही थे. जिस गीता प्रेस ने अपने धार्मिक साहित्य से देश-दुनिया में भगवान श्रीराम के उदात्त चरित्र को पहुंचाया, वह संस्था भी गोरखपुर की ही थी.

उल्लेखनीय है कि एक फरवरी 1986 को वर्षों से बंद राममंदिर का ताला खोलने का आदेश देने वाले फैजाबाद के जनपद न्यायाधीश कृष्ण मोहन पांडेय गोरखपुर के ही थे. उनकी अदालत ने दो दिन की सुनवाई के दौरान ही यह फैसला दे दिया था. इसके पहले 28 जनवरी को वहां के मुंसफ मजिस्ट्रेट हरिशंकर दुबे के कोर्ट में ताला खुलने की यह अपील खारिज हो चुकी थी. केएम पांडेय के फैसले पर महज 40 मिनट के भीतर ही अमल भी हो गया. संयोग से उस समय उत्तर प्रदेश के Chief Minister रहे स्वर्गीय बीर बहादुर सिंह भी गोरखपुर के ही थे. उनकी कभी अकेले में Lucknow में बीर बहादुर से इस बाबत मुलाकात भी हुई थी. तब उन्होंने राजीव गांधी के फार्मूले पर मंदिर निर्माण के लिए ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ को सहमत कराने की कोशिश भी की, पर अवैद्यनाथ ने साफ शब्दों में मना कर दिया.

धार्मिक और सत्साहित्य के जरिए न्यूनतम दाम पर घर की जरूरत के अनुसार अलग-अलग साइज में रामायण की प्रतियां सुलभ करने वाले गोरखपुर स्थित गीता प्रेस के हनुमान प्रसाद पोद्दार (भाईजी) की पर्दे के पीछे से अहम भूमिका थी. 23 और 24 दिसंबर 1949 को जब वहां रामलला का प्रकटीकरण हुआ तो बाकी इंतजाम उनका ही था. वह हनुमान जी के परम भक्त थे. एक ही शहर का होने के नाते उनके तबके गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत दिग्विजय ने से बहुत अच्छे संबंध थे. वह हिंदू महासभा में भी सक्रिय थे. उस समय कल्याण पत्रिका का अयोध्या और राम पर केंद्रित रामांक निकालकर उन्होंने इस आंदोलन को गति दी.

रही गोरखपुर स्थित गोरक्ष पीठ की बात, तो उसका तो अयोध्या और राम मंदिर से रिश्ता तीन पीढ़ियों (करीब 100 साल) पुराना है. वह भी मंदिर आंदोलन की केंद्रीय भूमिका का रूप है.

अयोध्या और राममंदिर से रहा है गोरक्षपीठ के तीन पीढ़ियों का नाता. यह नाता करीब 100 साल पुराना है. इस दौरान राममंदिर को लेकर होने वाले हर आंदोलन में तबके पीठाधीश्वरों की केंद्रीय भूमिका रही है. गोरखपुर स्थित इस पीठ के मौजूदा पीठाधीश्वर उत्तर प्रदेश के Chief Minister योगी आदित्यनाथ हैं. उनके दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ और पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ ने जिस अयोध्या और वहां जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का सपना देखा था. जिस सपने के लिए संघर्ष किया था वह Supreme court के फैसले 5 अगस्त 2020 को Prime Minister Narendra Modi द्वारा भूमि पूजन और बाद में उनके ही द्वारा 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ साकार हुआ. स्वाभाविक है कि दोनों सुअवसरों पर बतौर Chief Minister योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे. 5 जून 2025 को राम दरबार की स्थापना के समय तो योगी ही प्रमुख भूमिका में मौजूद थे.

यूं तो श्रीराम जन्मभूमि स्थित मंदिर पर फिर से रामलला आंदोलन विराजमान हो, इस बाबत छिटपुट संघर्ष की शुरुआत इसको गिराए जाने के बाद से ही शुरू हो गया था. मुगल काल से लेकर ब्रिटिश काल के गुलामी के दौर और आजाद India का करीब 500 साल का कालखंड इसका प्रमाण है. इन सारे संघर्षों और इसके लिए खुद को बलिदान देने वालों के दस्तावेजी सबूत भी हैं. लेकिन आजादी के बाद इसे पहली बार रणनीतिक रूप से संगठित स्वरूप और एक व्यापक आधार देने का श्रेय गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर Chief Minister योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु ब्रह्मलीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ को जाता है.

1935 में गोरक्ष पीठाधीश्वर बनने के बाद से ही उन्होंने इस बाबत प्रयास शुरू कर दिया था. इस क्रम में उन्होंने अयोध्या के अलग अलग मठों के साधु संतों को एकजुट करने के साथ ही जातीय विभेद से परे हिंदुओ को समान भाव व सम्मान के साथ जोड़ा. 22/23 दिसंबर 1949 को प्रभु श्रीरामलला के विग्रह के प्रकटीकरण के नौ दिन पूर्व ही महंत दिग्विजयनाथ के नेतृत्व में अखंड रामायण के पाठ का आयोजन शुरू हो चुका था. श्रीरामलला के प्राकट्य पर महंत जी खुद वहां मौजूद थे. प्रभु श्रीराम के विग्रह के प्रकटीकरण के बाद मामला अदालत पहुंचा. इसके चलते विवादित स्थल पर ताला भले जड़ दिया गया पर पहली बार वहां पुजारियों को दैनिक पूजा की अनुमति भी मिल गई.

श्रीरामलला के प्रकटीकरण के बाद मंदिर आंदोलन को एक नई दिशा देने वाले महंत दिग्विजयनाथ 1969 में महासमाधि लेने तक श्रीराम जन्मभूमि के उद्धार के लिए अनवरत प्रयास करते रहे. ये आजादी के बाद के दिन थे. कांग्रेस की आंधी चल रही थी. खुद को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने की होड़ मची थी. तब हिंदू और हिंदुत्व की बात करने का मतलब देश विरोधी होना था. इस होड़ में कई लोग तो करोड़ों के आराध्य प्रभु श्रीराम के वजूद को ही नकार रहे थे. ऐसी विषम परिस्थितियों में भी पूरी निर्भीकता से दिग्विजय नाथ सदन से लेकर संसद और सड़क तक हिंदू, हिंदुत्व और राम मंदिर की मुखर आवाज बन गए.

जिस मंदिर आंदोलन को महंत दिग्विजयनाथ ने एक ठोस बुनियाद और व्यापक आधार दिया उसे उनके ब्रह्मलीन होने के बाद उनके शिष्य एवं उत्तराधिकारी महंत अवेद्यनाथ की अगुआई में नई ऊंचाई मिली. अस्सी के दशक के शुरूआत के साथ श्रीराम जन्मभूमि को लेकर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ ने जो बीज बोया था वह अंकुरित हो चुका था. इसे बढ़ाने में सबसे बड़ी बाधा अलग अलग पंथ और संप्रदाय के संत समाज की मत भिन्नता थी. इन सबको संत समाज का वही एक कर सकता था जो सबको स्वीकार्य हो. यह सर्व स्वीकार्यता बनी तबके गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ के पक्ष में. इसी सर्वसम्मति का परिणाम था कि 21 जुलाई 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में जब श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ तो महंत अवेद्यनाथ समवेत स्वर से इसके अध्यक्ष चुने गए और उनके नेतृत्व में देश में ऐसे जन आंदोलन का उदय हुआ जिसने देश का सामाजिक-Political समीकरण बदल दिया.

आजादी के बाद का सबसे बड़ा और प्रभावी आंदोलन था. श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के गठन के बाद 7 अक्टूबर 1984 को अयोध्या के सरयू तट से धर्मयात्रा निकाली गई जो 14 अक्टूबर 1984 को Lucknow पहुंची. यहां के बेगम हजरत महल पार्क में ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ जिसमें लाखों लोग शामिल हुए. महंत अवैद्यनाथ की अध्यक्षता में हुए इस सम्मेलन से तत्कालीन Government हिल गई. तबके Chief Minister नारायण दत्त तिवारी से महंत जी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की और मांग पत्र सौंपा.

धर्माचार्यों के आह्वान पर 22 सितंबर 1989 को दिल्ली के बोट क्लब पर विराट हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया गया. महंत जी की अध्यक्षता में हुए इस सम्मेलन में जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए 9 नवंबर 1989 को शिलान्यास का ऐलान कर दिया गया. बोट क्लब की इस रैली से पूर्व 20 सितंबर 1989 को India Government के तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह ने महंत जी से बातचीत का आग्रह किया था, लेकिन महंत जी ने रैली के बाद ही बातचीत संभव होने की बात कही. 25 सितंबर को मुलाकात हुई तो बूटा सिंह ने शिलान्यास कार्यक्रम स्थगित करने का निवेदन किया. मगर महंत जी निर्णय पर अडिग रहे. इसके बाद Lucknow में बूटा सिंह, तत्कालीन Chief Minister नारायण दत्त तिवारी ने महंत जी, महंत नृत्यगोपाल दास, अशोक सिंघल, दाऊ दयाल खन्ना के साथ बैठक कर आग्रह किया. पर, महंत जी ने दो टूक कहा कि यह राष्ट्रीय सम्मान एवं हिंदू समाज की आस्था का सवाल है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता.

इसके बाद देशभर में शिलान्यास समारोह के लिए श्रीराम शिला पूजन का अभियान प्रारंभ हो गया. महंत अवेद्यनाथ की अगुवाई में देशभर के गांव-गांव से श्रीराम शिला पूजन कर अयोध्या के लिए चल पड़ी. खुद महंत जी दर्जनों कार्यक्रमों में शामिल हुए. शिलान्यास समारोह की तैयारियों से घबराई Government ने एक बार फिर महंत जी को 8 नवंबर को गोरखपुर विशेष विमान भेजकर बातचीत के लिए Lucknow आमंत्रित किया. वार्ता के बाद महंत जी को अयोध्या पहुंचाया गया. उनके अयोध्या पहुंचने पर शिलान्यास का कार्य तेजी से अंजाम की ओर आगे बढ़ा. शुभ मुहूर्त में गर्भगृह के बाहर निर्धारित स्थान पर भूमि पूजन और हवन के बाद महंत जी ने सांकेतिक रूप से नींव खोदकर दलित कामेश्वर प्रसाद चौपाल से पहली शिला रखवाकर एक नए भविष्य की शुरुआत की.

गर्भगृह के बाहर शिलान्यास के बाद मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा का दौर प्रारंभ हुआ. महंत अवेद्यनाथ की अगुवाई में हिंदू समाज तन, मन और, धन से कारसेवा के लिए समर्पित होने लगा. 30 अक्टूबर 1990 और 2 नवंबर 1990 को कारसेवा के दौरान तत्कालीन Government के आदेश पर Police फायरिंग में कई रामभक्त बलिदान हो गए. पर, दमनात्मक कार्रवाई के बावजूद महंत अवैद्यनाथ के नेतृत्व में आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने का संकल्प लिया गया. नारा दिया गया, “बच्चा-बच्चा राम का.”

1984 में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के गठन के बाद से आंदोलन के निर्णायक होने तक महंत अवेद्यनाथ ने हर Government को शांतिपूर्ण समाधान का मौका दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, और पीवी नरसिम्हा राव से समय-समय पर उनकी वार्ता भी हुई. Governmentें कोरे आश्वासन से आगे नहीं बढ़ती थीं और महंत जी जन्मभूमि को मुक्त कराने के संकल्प पर अडिग रहे.

तत्कालीन मानीराम विधानसभा क्षेत्र से लगातार पांच बार, 1962 से लेकर 1977 तक के चुनाव में विधायक चुने गए महंत अवैद्यनाथ 1969 में अपने गुरु महंत दिग्विजयनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद रिक्त हुए गोरखपुर Lok Sabha क्षेत्र के उपचुनाव में सांसद चुने गए. 1980 में मीनाक्षीपुरम में धर्मांतरण की घटना के बाद उन्होंने राजनीति की बजाय खुद को सामाजिक समरसता के अभियान में समर्पित कर दिया. सितंबर 1989 में महंत अवेद्यनाथ के नेतृत्व में दिल्ली में हुए विराट हिंदू सम्मेलन के दौरान जब मंदिर शिलान्यास की तारीख घोषित कर दी गई तो तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह ने उन्हें यह कहकर चुनौती दे दी कि अपनी बात रखनी है तो संसद में आइए. इस चुनौती को को स्वीकार कर महंत अवेद्यनाथ ने दोबारा राजनीति में प्रवेश करने का निर्णय लिया. फिर तो वह ताउम्र सड़क से लेकर संसद तक अयोध्या में दिव्य और भव्य मंदिर की आवाज बने रहे. उनका एकमात्र सपना भी यही था, उनके जीते जी ऐसा हो. आज वह भले ब्रह्मलीन हो चुके हैं, पर अपने सुयोग्य शिष्य की देख रेख अयोध्या में उनके सपनों और संकल्पना के अनुसार उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ की देखरेख में जो भव्य मंदिर पूरा होने को है और जिस तरह अयोध्या का कायाकल्प हो रहा है उसे देख कर योगी के पूज्य गुरुदेव एवं दादा गुरु की आत्मा जरूर खुश हो रही होगी.

बतौर उत्तराधिकारी महंत अवेद्यनाथ के साथ दो दशक से लंबा समय गुजारने वाले उत्तर प्रदेश के मौजूदा Chief Minister योगी आदित्यनाथ पर भी इस पूरे परिवेश की छाप पड़ी. बतौर सांसद उन्होंने अपने गुरु के सपने को स्वर्णिम आभा दी. Chief Minister होने के बावजूद अपनी पद की गरिमा का पूरा ख्याल रखते हुए कभी राम और रामनगरी से दूरी नहीं बनाई. बतौर Chief Minister योगी आदित्यनाथ 2017 के बाद से 100 बार से अधिक अयोध्या गए. गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी और पीठ के पीठाधीश्वर रहने के दौरान की उनकी अयोध्या की यात्रा को जोड़ दें तो यह संख्या और हो जाएगी. अयोध्या से पीठ का यह रिश्ता दो तरफा है. राम मंदिर आंदोलन जब चरम पर था, तो अयोध्या के बाद गोरखपुर की गोरक्षपीठ इसके दूसरे केंद्र जैसा था. मंदिर आंदोलन से जुड़े हर अहम किरदार का यहां आना-जाना था. अमूमन रात्रि विश्राम करते थे और योगी के गुरु ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ से आंदोलन की रणनीति पर चर्चा भी. उनके ब्रह्मलीन होने के बाद योगी ने गुरु के सपनों को अपना बना लिया. नतीजा सबके सामने है.

बतौर Chief Minister योगी आदित्यनाथ जितनी बार गए, अयोध्या को कुछ न कुछ सौगात देकर आए. उनकी मंशा अयोध्या को दुनिया का सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थल बनाने की है. इसके अनुरूप ही अयोध्या के कायाकल्प का काम जारी है. योगी Government की मंशा है कि अयोध्या उतनी ही भव्य दिखे जितनी त्रेता युग में थी. इसकी कल्पना गोस्वामी तुलसीदास ने कुछ इस तरह की है, ‘अवधपुरी अति रुचिर बनाई. देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई.’ अयोध्या के इस स्वरूप की एक झलक दीपोत्सव के दौरान दिखती भी है. कायाकल्प के बाद यह स्वरूप स्थायी हो जाएगा. तब भगवान श्रीराम की अयोध्या कुछ वैसी ही होगी जिसका वर्णन उन्होंने खुद कभी इस तरह किया था. ‘अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ, यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ, जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि. उत्तर दिसि बह सरजू पाजू पावनि.’

एसके/एएस