Mumbai , 3 अगस्त . बॉलीवुड में कई कलाकार अपनी प्रतिभा और मेहनत से चमकते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी अलग सोच और बेमिसाल अंदाज से इतिहास रच देते हैं. किशोर कुमार उन्हीं में से एक थे. उन्होंने न सिर्फ अपने गानों से, बल्कि अपनी मस्ती और अपने बेबाकी से भी सभी का दिल जीता. वो जितने अच्छे गायक थे, उतने ही मजेदार इंसान भी थे. वह जो भी करते, दिल से करते… और अगर कुछ गलत लगता, तो उसे अपने ही अनोखे तरीके से जवाब देते. उनसे जुड़ा एक ऐसा ही एक किस्सा काफी मशहूर है, जब प्रोड्यूसर से हुए टकराव के चलते उन्होंने अपना आधा सिर मुंडवा लिया था और उसी हालत में शूटिंग करने पहुंचे थे.
किशोर कुमार का असली नाम आभास कुमार गांगुली था. उनका जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में हुआ था. उनके पिता का नाम कुंजालाल गांगुली और माता का नाम गौरी देवी था. वे अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. उनके पिता खंडवा के नामी वकील थे. उनके भाई अशोक कुमार उस जमाने के मशहूर अभिनेता थे, और उनकी इच्छा थी कि किशोर कुमार भी अभिनय में अपना दमखम दिखाए. अपने भाई के सपने को पूरा करने के लिए किशोर ने 1946 में ‘शिकारी’ फिल्म में बतौर मुख्य अभिनेता काम किया. इसके बाद 1951 में फणी मजूमदार की फिल्म ‘आंदोलन’ की, लेकिन उनका मन गायकी में अधिक था.
अशोक कुमार ने 22 फिल्में कीं, जिनमें से 16 फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गईं. उन्होंने अपने दिल की आवाज सुनी और गायकी में खुद को झोंक दिया. शुरुआत में उन्हें ज्यादा गाने नहीं मिले, क्योंकि उन्होंने कभी संगीत की औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी. लेकिन एसडी बर्मन ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें ‘मरने की दुआएं क्यों मांगूं’ जैसे गानों से लॉन्च किया. इसके बाद ‘चलती का नाम गाड़ी’ और ‘नौकरी’ जैसी फिल्मों में उन्होंने एक ही साथ अभिनय, गायन और संगीत का जिम्मा निभाया.
किशोर कुमार ने एक से बढ़कर एक रोमांटिक और क्लासिकल गाने दिए. उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि बचपन में किशोर कुमार की आवाज बहुत खराब थी. उनका गला बैठा हुआ था. लेकिन एक घटना की वजह से उनकी आवाज बदल गई. दरअसल, एक बार उनकी मां रसोई में सब्जी काट रही थी. किशोर दा दौड़कर मां के पास जा रहे थे कि इतने में वहां रखे धारदार हंसिए पर उनका पैर कट गया. वे कई दिनों तक इस दर्द में जोर-जोर से रोते रहे. इस तरह घंटों रोने से उनकी वोकल कॉर्ड्स पर असर पड़ा और आवाज अच्छी हो गई. वह अपनी सुरीली आवाज के लिए इसी हादसे को श्रेय देते थे.
1960 के दशक में उन्होंने फिल्मों के निर्देशन और लेखन में भी हाथ आजमाया. 1969 में फिल्म ‘आराधना’ का गाना ‘रूप तेरा मस्ताना’ सुपरहिट हुआ और उसने किशोर कुमार के करियर को ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया. इसके बाद 1970 का दशक पूरी तरह किशोर कुमार के नाम रहा. उन्होंने राजेश खन्ना की लगभग हर फिल्म में अपनी आवाज दी और जब अमिताभ बच्चन आए, तो उनकी भी आवाज बन गए. ‘मेरे नैना सावन भादो’ और ‘प्यार दीवाना होता है’ जैसे गानों ने साबित किया कि वे सिर्फ मस्ती भरे ही नहीं, गहरी संवेदना से भरे गीत भी गा सकते हैं.
उनके नाम यूं तो कई किस्से हैं, लेकिन एक इंटरव्यू के दौरान उनकी पत्नी लीना चंदावरकर ने प्रोड्यूसर से हुए टकराव के चलते आधा सिर मुंडवाने वाला किस्सा बताया था. उन्होंने बताया कि एक बार वे किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे, लेकिन प्रोड्यूसर ने उन्हें आधी पेमेंट ही दी थी. प्रोड्यूसर ने किशोर से कहा था कि फिल्म पूरी होने के बाद आधे पैसे मिलेंगे. इस बात से किशोर कुमार खफा हो गए और उन्होंने इसका जवाब अपने बेबाक अंदाज में दिया. अगले दिन वे सेट पर आधी मूंछ और आधे बाल मुंडवा कर पहुंच गए. जब उनसे इसकी वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि आधे पैसे मिले हैं तो गेटअप भी आधा ही होगा; जब पूरे पैसे मिलेंगे तो गेटअप पूरा हो जाएगा.
किशोर कुमार का स्टाइल बाकियों से अलग था, योडलिंग, ह्यूमर और डायलॉग जैसी गायकी सिर्फ वही कर सकते थे. उन्होंने हर संगीतकार के साथ काम किया, चाहे वो आर.डी. बर्मन हों, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी या बप्पी लहिरी. 1980 के दशक में जब नए गायक आ रहे थे, किशोर कुमार ने तब भी अपनी जगह बरकरार रखी. उन्होंने अपने बेटे अमित कुमार को भी संगीत की दुनिया में लॉन्च किया. उनका आखिरी रिकॉर्ड किया गया गाना ‘गुरु-गुरु’ था, जिसे उन्होंने अपनी मृत्यु से एक दिन पहले गाया था. 13 अक्टूबर 1987 को, 58 साल की उम्र में, दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. लेकिन उनके करियर की चमक आज भी कम नहीं हुई है. आज भी सिंगिग रियलिटी शोज में बच्चे जब उनके गाए गीत गाते हैं तो एहसास होता है कि वाकई किशोर दा जैसे कलाकार कभी मरा नहीं करते, वो अमर होकर खुशियां बिखरते हैं.
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पीके/केआर