New Delhi, 31 जुलाई . तेलंगाना में बीआरएस के 10 विधायकों की अयोग्यता मामले पर Supreme court ने विधानसभा अध्यक्ष को तीन महीने में फैसला लेने का निर्देश दिया है. इन 10 बीआरएस विधायकों ने कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन की थी, लेकिन तेलंगाना विधानसभा के अध्यक्ष ने इनकी अयोग्यता पर लंबे समय तक कोई फैसला नहीं लिया.
Supreme court ने Thursday को मामले में सुनवाई करते हुए तेलंगाना विधानसभा के अध्यक्ष को निर्देश दिया कि वह 10 बीआरएस के विधायकों की अयोग्यता पर तीन महीने में फैसला लें.
इस बीच, ‘दल-बदल’ पर Supreme court ने एक अहम टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा, “ये मुद्दा देशभर में बहस का विषय रहा है और यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया, तो यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर सकता है.”
Supreme court ने संसद में दिए गए कई नेताओं के भाषणों का हवाला दिया. कोर्ट ने राजेश पायलट और देवेंद्रनाथ मुंशी जैसे सांसदों के भाषणों का जिक्र करते हुए कहा कि विधायक या सांसद की अयोग्यता तय करने का अधिकार स्पीकर को इसलिए दिया गया, ताकि अदालतों में समय बर्बाद न हो और मामला जल्दी सुलझे.
सुनवाई के दौरान कोर्ट के समक्ष यह दलील दी गई कि अनुच्छेद 136 और 226 व 227 के तहत स्पीकर के निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा की सीमाएं बहुत संकीर्ण हैं. यह भी कहा गया कि चूंकि यह मुद्दा Supreme court की एक बड़ी पीठ के समक्ष लंबित है, इसलिए मौजूदा सुनवाई नहीं होनी चाहिए. Supreme court ने अपनी टिप्पणी में इन दलीलों का उल्लेख किया.
इसके बाद Supreme court ने Thursday को तेलंगाना हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश को रद्द किया और निर्देश दिया कि कथित तौर पर सत्तारूढ़ कांग्रेस में शामिल होने वाले 10 बीआरएस विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही “यथाशीघ्र और तीन महीने के भीतर” तय की जाए.
बीआरएस नेता केटी रामाराव, पाडी कौशिक रेड्डी और केपी विवेकानंद ने ये याचिकाएं दायर की थीं, जिनमें तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
–
डीसीएच/