पुणे, 31 जुलाई . 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में आरोपी रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय को विश्वास है कि उन्हें बरी कर दिया जाएगा. इस मामले में विशेष एनआईए कोर्ट Thursday को फैसला सुना सकती है.
उपाध्याय ने दावा किया है कि जांच में खामियां थीं और गलत तरीके से फंसाया गया. रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय ने Thursday को से बातचीत में अपनी पीड़ा साझा की. उन्होंने बताया कि उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, आर्थिक रूप से बर्बाद और सामाजिक रूप से बहिष्कृत किया गया. मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया, और नौ साल जेल में बिताने के दौरान उनके परिवार को भारी कष्ट झेलना पड़ा.
जेल में रहते हुए भी उन्होंने सात जेलरों और दो इंस्पेक्टरों को निलंबित करवाया. उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनके बच्चों को धमकाया गया था. उपाध्याय ने इन अनुभवों को साझा करते हुए जांच की खामियों और गलत तरीके से फंसाए जाने का आरोप लगाया.
रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय ने कहा, “उन पुलिसकर्मियों पर शर्मिंदगी महसूस होती है, जिन्होंने साजिश रचकर मुझे फंसाया और देशभक्तों को आतंकवादी घोषित करने की कोशिश की. मैं 2002 से 16 प्रमुख धर्मों का अध्ययन करता था, ताकि यह समझ आए कि सभी लोग एक साथ मिलकर राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकते हैं. 2008 मालेगांव विस्फोट मामले में और अन्य आरोपियों को साजिश के तहत फंसाया गया.”
उन्होंने दावा किया कि 17 वर्षों में भगवान का न्याय दिखा और उन्हें विश्वास है कि कोर्ट भी उन्हें बरी करेगा.
उपाध्याय के अनुसार, ट्रायल पूरा हो चुका है, और अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ पुख्ता सबूत पेश नहीं कर पाया. गवाहों ने क्रॉस-एक्जामिनेशन में बयान बदले. उन्होंने कहा कि एनआईए ने चार-पांच साल बाद सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की, जिसमें कुछ लोगों को मुकदमे से बरी किया गया, और एटीएस की मूल चार्जशीट पर सवाल उठाए गए. उन्होंने बताया कि पुलिस ने उन पर मकोका और यूएपीए जैसे सख्त कानून लगाए, लेकिन नौ साल की कानूनी लड़ाई के बाद इन्हें हटा लिया गया, क्योंकि उनका कोई सीधा कनेक्शन साबित नहीं हुआ. उपाध्याय ने खुद को राष्ट्रप्रेमी और धार्मिक बताते हुए कहा कि यह केस शुरू से ही ध्वस्त हो जाना चाहिए था. उन्होंने न्यायपालिका पर भरोसा जताते हुए कहा,” भले ही गति धीमी हो, और लेकिन यकीन है मेरे हक में ही फैसला आएगा.”
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डीकेएम/केआर