सावन विशेष: 800 साल पुराने इस मंदिर में ऐरावत ने की थी महादेव की पूजा, सीढ़ियों को छूने पर निकलते हैं मधुर स्वर

कुंभकोणम, 25 जुलाई . भोलेनाथ को समर्पित सावन का माह चल रहा है. शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. भोलेनाथ का हर एक मंदिर भक्ति और चमत्कार की गाथा समेटे हुए है. ऐसा ही एक मंदिर तमिलनाडु, कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है, जिसका नाम ऐरावतेश्वर मंदिर है.

इंद्र के हाथी ऐरावत से जुड़ा यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, कला और वास्तुकला का एक खजाना है. 12वीं शताब्दी में चोल राजा राजराजा द्वितीय ने इस शिव मंदिर का निर्माण कराया था. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसका नाम इंद्र के सफेद हाथी ‘ऐरावत’ के नाम पर पड़ा. पौराणिक कथा के अनुसार ऐरावत ने यहां महादेव की पूजा की थी.

पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्र का सफेद हाथी ऐरावत, ऋषि दुर्वासा के शाप से रंग खो चुका था. उसने मंदिर के पवित्र जल में स्नान कर और शिव की पूजा कर अपना रंग वापस पाया. इसी तरह मृत्यु के देवता यम, जो एक शाप से पीड़ित थे, उन्होंने भी यहां स्नान और पूजा कर वरदान प्राप्त किया. इसीलिए मंदिर में यम की छवि भी अंकित है.

यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल ये शिवालय चोल वंश के बनाए मंदिरों की त्रिमूर्ति का हिस्सा है, जिसमें तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर और गंगईकोंडा चोलपुरम का गंगईकोंडा चोलेश्वरम मंदिर भी शामिल हैं.

ऐरावतेश्वर मंदिर की सबसे रोमांचक विशेषता इसकी संगीतमय सीढ़ियां हैं. मंदिर के प्रवेश द्वार पर बनी सात सीढ़ियां सात संगीतमय स्वरों “सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि” का प्रतिनिधित्व करती हैं. इन पर हल्का सा पैर रखने पर संगीत की मधुर धुनें गूंजती हैं, जो 800 साल पुरानी वास्तुकला के वैज्ञानिक चमत्कार को दिखाती है. वैज्ञानिक आज भी इस रहस्य को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं. मंदिर की दीवारों और छतों पर उकेरी गई नक्काशी, रथ के आकार का मंडपम, और यम, सप्तमाताओं, गणेश, और अन्य वैदिक-पौराणिक देवताओं की मूर्तियां इसे कला का उत्कृष्ट नमूना बनाती हैं.

तमिलनाडु पर्यटन विभाग के अनुसार, यह मंदिर चोल वंश की सांस्कृतिक समृद्धि को दिखाता है. 24 मीटर ऊंचा विमान (शिखर) और घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ के आकार का मंडपम इसकी भव्यता को बढ़ाते हैं. मंदिर की नक्काशी पुराणों की कहानियां बयां करती हैं, जो आश्चर्य में डालती हैं.

साल भर इस मंदिर में भक्त आते हैं और महादेव की पूजा करते हैं. सावन और महाशिवरात्रि में विशेष रूप से भक्त जुटते हैं. इसके अलावा, कार्तिक पूर्णिमा, थिरुकार्तिकै, और मंदिर का वार्षिक उत्सव (महोत्सव) भीड़ के प्रमुख अवसर हैं.

कुंभकोणम पहुंचना आसान है. तिरुचिरापल्ली हवाई अड्डा 91 किमी दूर है, और कुंभकोणम रेलवे स्टेशन चेन्नई, मदुरै, और तिरुचिरापल्ली से जुड़ा है. सड़क मार्ग से भी बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं.

एमटी/केआर