एआईएमआईएम को राहत: सुप्रीम कोर्ट में मान्यता रद्द करने की याचिका ली गई वापस

New Delhi, 15 जुलाई . असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के लिए राहत भरी खबर सामने आई है. याचिकाकर्ता ने पार्टी की मान्यता रद्द करने की मांग को लेकर दायर याचिका वापस ले ली है. हालांकि, Supreme court ने याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी है कि वह नई याचिका दाखिल कर सकता है.

यह याचिका शिवसेना (तेलंगाना विंग) के अध्यक्ष तिरुपति नरसिम्हा मुरारी की ओर से दाखिल की गई थी. याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन ने Supreme court में दलील दी कि एआईएमआईएम संविधान में निहित सेक्युलरिज्म के सिद्धांत का पालन नहीं करती है. उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी केवल एक विशेष समुदाय के हितों की बात करती है, जो कि भारतीय संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के खिलाफ है.

वकील विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट में कहा कि अगर मैं चुनाव आयोग के पास जाकर कहूं कि मैं वेदों और पुराणों को आधार बनाकर पार्टी बनाना चाहता हूं, तो मेरा रजिस्ट्रेशन नहीं होगा. फिर कैसे एआईएमआईएम को अल्पसंख्यक वर्ग के धार्मिक विचारों पर आधारित पार्टी के तौर पर मान्यता दी गई? उन्होंने आगे कहा कि संविधान में सिर्फ माइनॉरिटी एजुकेशन इंस्टीट्यूशन के गठन का अधिकार दिया गया है, Political पार्टी का नहीं.

याचिका में कहा गया था कि चुनाव आयोग ने एआईएमआईएम को Political दल के रूप में मान्यता देकर संविधान के सेक्युलर ढांचे का उल्लंघन किया है. इस पार्टी का एजेंडा “सांप्रदायिक और एकपक्षीय” है. पार्टी का एकमात्र मकसद सिर्फ मुस्लिम समुदाय के पक्ष में काम करना है. याचिकाकर्ता का दावा था कि यह पार्टी देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के खिलाफ कार्य कर रही है.

याचिकाकर्ता ने याचिका को वापस जरूर ले लिया है, लेकिन कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी है कि वे तथ्यों और कानून के आधार पर भविष्य में नई याचिका दायर कर सकते हैं. फिलहाल याचिका का वापस लिया जाना एआईएमआईएम के लिए एक अंतरिम राहत के रूप में देखा जा रहा है.

पीएसके/केआर