वाराणसी, 13 जुलाई . धार्मिक नगरी काशी में गंगा नदी इन दिनों उफान पर है. गंगा का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है और वर्तमान में यह 66.6 मीटर पर बह रही है. बढ़ते जलस्तर के कारण काशी के 84 घाटों का आपसी संपर्क टूट चुका है. घाट किनारे स्थित कई प्राचीन मंदिर जलमग्न हैं, जिससे घाटों पर बैठने वाले पुरोहितों और नाविकों की आजीविका पर संकट मंडराने लगा है.
प्रशासन ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए घाटों पर सभी छोटी-बड़ी नावों के संचालन पर रोक लगा दी है. पूजा-पाठ करने वाले ब्राह्मणों की चौकियों को भी पानी से बचाने के लिए ऊंचाई पर रखा गया है.
सावन का पवित्र महीना आमतौर पर लाखों श्रद्धालुओं को काशी की ओर आकर्षित करता है, लेकिन इस बार गंगा के रौद्र रूप के कारण घाट छोटे पड़ गए हैं और धार्मिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं. श्रद्धालुओं की सुरक्षा को देखते हुए प्रशासन ने गहरे पानी में स्नान करने से मना किया है.
गंगा का यह उफान सैकड़ों परिवारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा कर रहा है. सबसे अधिक चिंता उन परिवारों को है, जिनकी आजीविका सीधे घाटों से जुड़ी है. सावन में ब्राह्मण वर्ग जहां सुबह से रात तक पूजा-पाठ कर आमदनी अर्जित करते थे, वहीं अब उनकी रोजी-रोटी ठप हो गई है. नाविकों को भी अपनी नौकाएं किनारे लगाने को मजबूर होना पड़ा है.
एक पुरोहित ने समाचार एजेंसी को बताया कि गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण उन्हें अपना स्थान छोड़ना पड़ा है. करीब 17 दिन में 10 बार उन्हें अपनी जगह बदलनी पड़ी है. लगभग सभी आरती स्थल जलमग्न हो चुके हैं. उन्होंने आगे बताया कि गंगा का जलस्तर बढ़ने से यहां श्रद्धालुओं की भीड़ भी कम है, लेकिन कुछ कांवड़िए यहां आते हैं.
एक अन्य पुरोहित ने कहा, “गंगा का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे उनकी रोजी-रोटी की चिंता भी बढ़ रही है. अधिक पानी आएगा तो लगभग पूरी आमदनी खत्म हो जाएगी. इससे परिवार पर भी संकट आएगा.”
एक नाविक ने बताया, “नाव से गंगा भ्रमण पूरी तरह से बंद है. लगभग हर साल यही स्थिति होती है. गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण उन्हें करीब 3 महीने तक घर पर ही रहना पड़ता है.” उन्होंने कहा कि पानी बढ़ने से उन्हें अपनी नावों को सुरक्षित रखना होता है.
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डीसीएच/