अंबुबाची मेला : जहां रजोधर्म की होती है पूजा, भक्तों को मिलता है दिव्य प्रसाद!

नई दिल्ली, 2 जुलाई . हिन्दू धर्म में देवी उपासना की कई परंपराएं हैं, लेकिन असम में स्थित कामाख्या देवी मंदिर एक ऐसा स्थान है, जो रहस्यों और आध्यात्मिक शक्तियों से भरा हुआ है. मां कामाख्या देवी का मंदिर ना केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि तांत्रिक क्रियाओं और शक्तिपीठों की महिमा का प्रतीक भी है. कहते हैं कि यहां पर माता सती का योनी भाग गिरा था. इसलिए इस मंदिर को कामाख्या मंदिर नाम दिया गया है.

कामाख्या का मतलब होता है, एक मातृ देवी , एक शाक्त तांत्रिक देवी; काम (इच्छा) का अवतार, उन्हें इच्छा की देवी भी माना जाता है. वैसे कामाख्या मंदिर, जिसे कामरूप का कन्या मंदिर या “आनंद का मंदिर” भी कहा जाता है.

‘गुप्त नवरात्रि’ के दौरान मां कामाख्या देवी मंदिर के गर्भ गृह के दरवाजे बंद रहते हैं और यहां ‘अंबुबाची मेला’ लगता है. अंबूबाची शब्द संस्कृत से आया है, जिसमें ‘अंबू’ का अर्थ ‘जल’ और ‘बाची’ का मतलब ‘बहना’ या प्रवाहित होना होता है. इस मेले के दौरान कई भक्त, तांत्रिक और अघोरी साधु दूर-दूर से कामाख्या मंदिर आते हैं. इन तीन दिनों में ब्रह्मपुत्र नदी का जल भी लाल रहता है, मान्यता के अनुसार, देवी के रजोधर्म (माहवारी) का ही प्रभाव है. इसे देवी की विश्राम अवधि माना जाता है. मंदिर के कपाट खुलने पर, भक्तों को अंगोदक (पवित्र जल) और अंगबस्त्र (लाल कपड़ा) प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है, जिसे देवी के रजोधर्म (माहवारी) से जुड़े पवित्र कपड़े का टुकड़ा माना जाता है. इस प्रसाद को शुभ और सुरक्षा प्रदान करने वाला माना जाता है.

मेले के दौरान कामाख्या मंदिर का मुख्य गर्भगृह तीन दिन के लिए बंद रहता है. इस दौरान मंदिर के गर्भगृह में देवी के पिंडी को सफेद कपड़े से ढका जाता है, माता के रजस्वला होने के बाद यह कपड़ा लाल हो जाता है, जो भक्तों को प्रसाद के रूप में दे दिया जाता है. फिर चौथे दिन मां भक्तों को दर्शन के लिए फिर से प्रकट होती हैं, जिसे महाभिषेक कहा जाता है.

योगिनी तंत्र के अनुसार कामाख्या मंदिर में 64 योगिनियों की साधना की जाती है. यह दुनिया का एकमात्र ऐसा धार्मिक उत्सव है जहां देवी के मासिक धर्म (रजस्वला) की पूजा की जाती है. माना जाता है कि इस दौरान देवी कामाख्या अपने रजोधर्म (माहवारी) से गुजरती हैं, जो धरती की उर्वरता का प्रतीक है.

वहीं, यहां प्रसाद के रूप में गर्भगृह से निकला हुआ जल (रजस्वला जल) और लाल कपड़ा (कामाख्या वस्त्र) दिया जाता है. राजस्वला प्रसाद को लेकर यहां के नियम बेहद कड़े हैं. हर किसी को यह प्रसाद नहीं मिलता है. माता का प्रसाद ज्यादातर जरूरतमंद भक्तों, संतानहीन महिलाओं और कुमारी कन्याओं के बीच बांटा जाता है.

मेले के दौरान पर्यटकों और शोधार्थियों को मंदिर के गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं होती, जिससे इस पर्व का रहस्य और भी गहरा रहता है. गुप्त नवरात्रि के पहले दिन ही अंबुबाची व्रत रखा जाता है.

अंबूबाची कोई सामान्य मेला नहीं, बल्कि एक गहन तांत्रिक साधना और शक्ति की आराधना का पर्व है. यह नारी शक्ति, प्रकृति के चक्र और तंत्र की रहस्यमयी परंपराओं का अद्भुत संगम है. कामाख्या देवी की यह लीला शक्ति की आराधना में रहस्य, भक्ति और गहराई तीनों का समावेश है.

एनएस/