विकास, विश्वास, सादगी : गाजीपुर से जम्मू-कश्मीर तक मनोज सिन्हा की राजनीतिक यात्रा

New Delhi, 30 जून . India की राजनीति में जब हम उन चेहरों की बात करते हैं, जिन्होंने सत्ता की चकाचौंध से दूर रहकर प्रभावशाली नेतृत्व का परिचय दिया है, तो मनोज सिन्हा का नाम स्वतः ही सामने आता है. एक ऐसा नेता जिनकी राजनीति जमीन से जुड़ी रही, जिनका मूल मंत्र रहा, ‘विकास, विश्वास और सादगी’. 1 जुलाई की तारीख केवल एक राजनेता के जन्मदिन की नहीं, बल्कि उस राजनीति की पुनः स्मृति की है, जो अब बहुत कम देखने को मिलती है.

1959 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के छोटे से गांव मोहनपुरा में जन्मे मनोज सिन्हा की शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में हुई. यहां से उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक और एमटेक की पढ़ाई की. लेकिन, यही विश्वविद्यालय उनकी Political यात्रा का भी आरंभ स्थल बना, जब 1982 में मनोज सिन्हा छात्रसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए. मनोज सिन्हा के नेतृत्व के गुणों की झलक तभी मिल गई थी. संगठन की समझ, टीम वर्क में विश्वास और एक स्पष्ट दृष्टिकोण. ये वे गुण थे जिन्होंने उन्हें आगे चलकर भारतीय राजनीति का एक संजीदा चेहरा बना दिया.

साल 1996 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने मनोज सिन्हा को गाजीपुर से उन्हें उम्मीदवार बनाया. यह सीट पार्टी के लिए हमेशा से चुनौतीपूर्ण रही थी, लेकिन मनोज सिन्हा ने पहली ही बार में इतिहास रच दिया. उन्होंने इस सीट से जीत दर्ज की. यही नहीं, 1999 और 2014 में भी उन्होंने जीत दोहराई, जबकि 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

संसद में सिन्हा का प्रदर्शन इतना उत्कृष्ट रहा कि 13वीं Lok Sabha (1999) में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसदों में से एक माना गया और एक प्रमुख पत्रिका ने उन्हें देश के सात सबसे ईमानदार सांसदों में शामिल किया. अपने पूरे सांसद काल में उन्होंने सांसद फंड का 100 फीसदी उपयोग जनता के कल्याण के लिए किया. उनके निजी जीवन में भी यही सादगी झलकती है.

2014 में जब देश ने Narendra Modi के नेतृत्व में एक नई दिशा पकड़ी, तो मनोज सिन्हा को रेल राज्य मंत्री बनाया गया. इसके बाद उन्हें स्वतंत्र प्रभार के साथ संचार मंत्रालय सौंपा गया. उनके कार्यकाल में टेलीकॉम सेक्टर में पारदर्शिता और डिजिटल इंडिया की दिशा में कई ऐतिहासिक कदम उठाए गए.

मनोज सिन्हा की कार्यशैली की एक खास बात रही, कम बोलना, ज्यादा काम करना. यही कारण था कि अफसरशाही हो या कर्मचारी वर्ग, सबके बीच उनकी एक अलग छवि बनी.

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद जब Chief Minister पद को लेकर कयासबाजी चल रही थी, तब मनोज सिन्हा का नाम प्रमुखता से उभरा. पार्टी के भीतर और बाहर उन्हें ‘सीएम मैटेरियल’ माना गया. लेकिन, जब फैसला लिया गया, तब भी उन्होंने एक शब्द नहीं कहा. यह वही Political परिपक्वता थी जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती है. सत्ता के पीछे भागने की नहीं, सेवा के लिए समर्पण की राजनीति.

5 अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, तो पूरी दुनिया की नजरें इस क्षेत्र की स्थिति पर टिकी थी. ऐसे में अगस्त 2020 में जब मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का उपGovernor बनाया गया, तो यह केवल एक प्रशासनिक नियुक्ति नहीं, बल्कि केंद्र Government का एक इशारा था कि संवेदनशील मुद्दों को शांत, स्थिर और समझदारी से संभालने वाले नेता की जरूरत है.

मनोज सिन्हा ने भी इस जिम्मेदारी को पूरी गंभीरता से निभाया. आतंकवाद और अलगाववाद पर सख्त रवैया, विकास परियोजनाओं में तेजी, पर्यटन को बढ़ावा और युवाओं के लिए रोजगार. ये सब इस बात का प्रमाण हैं कि उनके नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर एक नई पहचान गढ़ रहा है.

आज के दौर में जब राजनेताओं की चर्चा अक्सर बयानबाजी और टकराव के लिए होती है, तब मनोज सिन्हा धोती-कुर्ता या पाजामा-कुर्ता पहने एक सादा, लेकिन दृढ़ नेता के रूप में जाने जाते हैं. भारतीय राजनीति में आलोचक होना आम बात है. लेकिन, मनोज सिन्हा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उनके आलोचक बेहद कम हैं, चाहे वो विपक्ष हो, मीडिया या जनता. जम्मू-कश्मीर जैसे प्रदेश में भी जहां हर कदम पर विवादों की आशंका रहती है, वे शांत और स्थिर प्रशासक के रूप में उभरे हैं. उमर अब्दुल्ला की Government बनने के बावजूद उपGovernor और Government के बीच टकराव की खबर न के बराबर सामने आती है. ठीक इसके विपरित जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी की Government थी, तब शायद ही कोई ऐसा दिन होता था, जब Government और उपGovernor के बीच टकराव नहीं होता था.

पीएसके/जीकेटी