‘आज भी जब वह मंजर याद आता है, तो दिल दहल जाता है’, आपातकाल का दंश झेल चुके लोगों ने बयां किया अपना दर्द

लखनऊ, 25 जून . आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के अत्याचारों को झेल चुके उत्तर प्रदेश के कई लोगों ने अपनी पीड़ा साझा की. उन्होंने कहा कि आज भी उन दिनों को याद कर आंखों के सामने वह खौफनाक मंजर आ जाता है, जिसे याद कर दिल दहल जाता है.

आपातकाल के दौरान जेल गए लालचंद्र मौर्या ने समाचार एजेंसी से अपने कड़वे अनुभव साझा किए. उन्होंने बताया कि आपातकाल को 50 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन आज भी लोग उस दर्द से नहीं उबर पाए हैं. उन्होंने कहा कि उनके गुरु बाबा जी को 29 जून 1975 को जिलाधिकारी ने बुलाया था. गुरुदेव खुद गाड़ी चलाकर पुलिसकर्मी के पास गए थे. उन्होंने पुलिसवाले से उनका जुर्म पूछा तो उसने बताया कि उन्हें मीसा के तहत गिरफ्तार किया जा रहा है. उन्हें आगरा जेल में बंद करने के बाद उन्हें यातनाएं दी गईं. इसके बारे में जब भक्तों को पता चला, तो लालचंद्र मौर्या और बाबा जी के दूसरे भक्त उनसे मिलने पहुंचे.

मौर्या ने कहा कि बाबा के करीब पांच हजार से अधिक भक्त उनसे मिलने पहुंचे थे, तो पुलिसकर्मी हैरान हो गए. इसके बाद पुलिस ने दिल्ली फोन करके कहा कि हजारों की संख्या में बाबा के मानने वाले आ गए हैं. अगर समय रहते कोई कदम नहीं उठाया गया, तो बहुत बड़ी दिक्कत हो सकती है. इसके बाद बाबा को बरेली जेल भेज दिया गया था. उन्हें जेल में अकेले बंद कर दिया गया था. लेकिन, जेल में भी उनका प्रचार जारी रहा. बड़ी संख्या में उनके प्रचार में भक्त शामिल होते थे. इन सबको देखकर इंदिरा गांधी परेशान हो गईं. इसके बाद उन्होंने बाबा को बेंगलुरु जेल भेज दिया.

उन्होंने कहा कि बाबा जेल में रहने के बावजूद भी घबराए नहीं, उनका हौसला नहीं डिगा, वह लगातार यही कहते रहे कि हमें जेल को जेल नहीं समझना है, बल्कि यहां पर भी लगातार भजन कीर्तन करते रहना है, ताकि हम अपनी बात को शासन तक पहुंचा सके. वह कहते थे कि अगर हम जेल में भजन करते रहेंगे, तो इनकी पूरी सिंहासन ध्वस्त हो जाएगी. ये लोग हमारे खिलाफ कुछ नहीं कर पाएंगे.

मौर्या ने कहा, “इसके बाद यह आदेश आया कि हम सभी को बाबा जी के साथ जेल जाना होगा, तब हम लोग हजारों की संख्या में जेल परिसर पर पहुंचे और नारे लगाए कि ‘बाबा जी को छोड़ दो, और हमें जेल दो’. जब हम जेल में थे, तो हमें बहुत सताया गया. हमसे कहा गया कि हम तुम लोगों की नसबंदी करा देंगे. वह सर्दी का समय था, हमारे ऊपर बर्फ डाल दिया जाता था. मैं करीब ढाई महीने तक जेल में था.”

उन्होंने कहा कि उन दिनों को याद कर आज भी दिल दलह जाता है. दो लोग सड़क पर बात नहीं कर सकते थे. अखबार पर सेंसरशिप लगा दी गई थी. कई माताओं ने जेल में ही अपने बच्चे को जन्म दिया था. तब की सरकार ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थी.

उस दौर को याद करते हुए मथुरा के प्रह्लाद मिश्रा बताते हैं कि उन दिनों लोगों के साथ क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गई थीं. आपातकाल का विरोध करने वाले लोगों को बहुत यातनाएं दी गई थीं, जिन्हें याद कर आज भी रूह कांप जाती है.

उन्होंने बताया कि जेल में क्रूर से क्रूर जेल अधिकारियों को रखा गया था, ताकि आपातकाल का विरोध करने वाले लोगों को सजा दी जाए. लोगों को बहुत सताया गया था. वह करीब 11 महीने तक जेल में थे. जेल के दौरान किसी के नाखून उखाड़ दिए गए थे, तो किसी को बर्फ की सिल्ली पर बिना वस्त्र के ही लेटा दिया गया था. इसके बाद कई लोग जब जेल से बाहर आए, तो वे मर भी गए. कई लोग तो जेल में यातनाओं के दौरान ही मर गए थे.

पूर्व विधायक सुरेंद्र प्रताप सिंह ने भी आपातकाल के काले दौर को याद किया. उन्होंने कहा कि आज से 50 साल पहले इंदिरा गांधी ने जनाक्रोश से बचने के लिए आपातकाल का ऐलान किया था. इससे पहले उनके खिलाफ देशभर में लोगों का बड़े पैमाने पर आक्रोश देखने को मिला था. उससे पहले जेपी आंदोलन की शुरुआत महंगाई और बेरोजगारी के विरोध में हुई थी. जिसमें देश के हर वर्ग के लोगों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. यह आंदोलन गुजरात से शुरू हुआ, इसके बाद बिहार में आया और इसके बाद यह पूरे देश में फैला. इसी दौरान 12 जून को गुजरात विधानसभा चुनाव का परिणाम आया और उसी दिन राज नारायण सिंह द्वारा इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका पर भी फैसला आया. दोनों ही जगह इंदिरा गांधी की हार हुई थी. गुजरात में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था. दूसरी तरफ, रायबरेली के चुनाव के खिलाफ याचिका स्वीकार कर ली गई थी और बाद में अदालत ने इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने पर छह साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद इंदिरा ने देश के लोगों की आवाज दबाने के लिए आपातकाल की घोषणा की थी. उनके इस फैसले का विरोध करने वाले लोगों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया था और प्रेस की आजादी पर भी पाबंदी लगा दी गई थी. कई पत्रकारों, राजनेताओं और युवाओं को जेल में डाल दिया गया था. लोगों से उनके जीने का अधिकार छीन लिया गया था.

सुरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि मौलिक अधिकारों को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया था. उन्हें भी 21 दिन तक जौनपुर जेल में रखा गया था और इसके बाद दूसरे जेल में भेज दिया गया था. इसके बाद मीसा के तहत भी कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था. लोगों के साथ क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गई थीं. मीसा के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों को अपनी बात कहने का कोई हक नहीं था. बिना कोई कारण बताए लोगों को गिरफ्तार किया गया था. एक तरह से पूरा देश ही जेल बन गया था. कई बड़े पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया था. पूरे देश में 21 महीने तक सन्नाटा रहा. यहां तक कि चुनाव भी स्थगित कर दिए गए थे. संसद की भूमिका भी समाप्त कर दी गई थी. हजारों घर उजाड़ दिए गए थे.

एसएचके/एकेजे