New Delhi, 22 जून . दुनियाभर में पेड़-पौधों की कई ऐसी प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनका आयुर्वेद में एक अहम स्थान है. इन्हीं में से एक है गुग्गुल, जिसे आयुर्वेद में ‘गुग्गुलु’ भी कहते है. इसे संस्कृत में ‘गुग्गुलु’, ‘महिषाक्ष’ और ‘पद्मा’ जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसके सेवन से अनेकों लाभ मिलतेे हैं.
आयुर्वेद के अनुसार, यह कोमीफोरा मुकुल नामक पौधे से प्राप्त होता है. इसका उपयोग वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को संतुलित करने के लिए किया जाता है. लेकिन, यह विशेष रूप से वात दोष को शांत करने के लिए उपयोगी है.
चरक और सुश्रुत संहिता में गुग्गुलु का उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार, इसका इस्तेमाल कई रोगों के उपचार में किया जाता है. चरक संहिता में गुग्गुलु को मोटापे को कम करने में कारगर बताया गया है. वहीं सुश्रुत संहिता में इसका उल्लेख सर्जरी के संदर्भ में है,जहां इसे विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार में उपयोगी बताया गया है.
सुश्रुत संहिता में गुग्गुलु का उपयोग 1120 बीमारियों और 700 से अधिक औषधीय पौधों के साथ कई समस्याओं में किया जाता है. चरक संहिता में इसके बारे में कहा गया है, “गुग्गुलुं वातरक्तघ्नं मेहशोथहरं शुभं.” जिसका अर्थ है गुग्गुल गठिया और मूत्रविकारों को दूर करने में श्रेष्ठ है.
इसमें विटामिन, एंटीऑक्सिडेंट, क्रोमियम जैसे कई तत्व पाए जाते हैं. इसी वजह से इस औषधि का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है. यह कान से आने वाली दुर्गंध को भी कम करने में यह सहायक है. इतना ही नहीं, इसे खट्टी डकार, पेट के रोग, एनीमिया, बवासीर और जोड़ों के दर्द में राहत देता है.
गुग्गुल में वात को संतुलित करने का गुण होता है, जो जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करने में मदद करता है, जैसे कि ऑस्टियोआर्थराइटिस. यह गुग्गुल पाचन में सुधार करने के साथ कब्ज, एसिडिटी जैसी समस्याओं से भी राहत दिलाता है. कांचनार गुग्गुल ग्रंथि रोगों, विशेषकर थायरॉइड व पीसीओडी जैसी स्थितियों में अत्यधिक लाभकारी मानी गई है.
आयुर्वेद में ‘गुग्गुल’ को शरीर से जुड़े कई इलाज के लिए रामबाण इलाज माना गया है. ‘गुग्गुल’ गोंद की तरह होता है, जिसकी तासीर गर्म और कड़वी होती है. ये अल्सर, बदहजमी, पथरी, मुंहासे, बवासीर के साथ ही खांसी, आंख संबंधी समस्याओं को भी दूर करने में सहायक है.
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एनएस/केआर