लखनऊ, 18 जून . 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है. देश-दुनिया में जोर शोर से इसकी तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं. चूंकि योग भारत की थाती है, लिहाजा यहां अधिक उत्साह होना स्वाभाविक है. यही वजह है कि देश में कई जगह योग्य प्रशिक्षकों की देखरेख में साप्ताहिक आयोजन भी शुरू हो चुके हैं. योग दिवस पर देश में एक लाख से अधिक जगहों पर आयोजन होने हैं.
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन और इसमें करीब 175 देशों की भागीदारी इस बात का प्रमाण कि आज पूरी दुनिया योग की महत्ता को स्वीकार और अंगीकार कर रही है. इस स्वीकार्यता के साथ भारतीय मनीषा भी वैश्विक फलक पर प्रतिष्ठित हो रही है. भारत की इस थाती का गौरवशाली इतिहास रहा है. दुनिया के प्राचीनतम ग्रंथ वेद से लेकर उपनिषद, स्मृति, पुराण, रामायण, महाभारत समेत सभी धर्मग्रंथों में योग का उल्लेख है. पर, अमूमन इसका दायरा गुफाओं, कंदराओं और अरण्यों में साधना, सिद्धि और मोक्ष तक ही सीमित था.
महर्षि पतंजलि ने योग की अपनी इस समृद्ध परंपरा को एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक स्वरूप दिया. जबकि गुरु गोरखनाथ ने योग के अंतर्निहित विशेषताओं को जन सामान्य के लिए सुलभ बनाकर इसे लोक कल्याण का जरिया बनाया. गुरु गोरखनाथ और उनके बाद के नाथ योगियों, सिद्धों एवं साधकों ने शरीर को स्वस्थ, मन को स्थिर एवं आत्मा को परमात्मा में प्रतिष्ठित करने वाली इस विधा को लोक तक पहुंचाया. फिर तो योग जाति, धर्म, मजहब, लिंग और भौगोलिक सीमाओं से परे सबके लिए उपयोगी होता गया. आज पूरी दुनिया योग को इसी रूप में स्वीकार भी कर रही है.
उल्लेखनीय है कि हिंदू धर्म, दर्शन, अध्यात्म और साधना से जुड़े संप्रदायों में नाथ पंथ का महत्वपूर्ण स्थान है. वृहत्तर भारत समेत देश के हर क्षेत्र में नाथ योगियों, सिद्धों, उनके मठों और मंदिरों की उपस्थिति इस पंथ की व्यापकता और प्रभाव का सबूत है.
नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति आदिनाथ भगवान शिव से मानी जाती है. आदिनाथ शिव से मिले तत्वज्ञान को मत्स्येंद्रनाथ ने अपने शिष्य गोरक्षनाथ को दिया. माना जाता है की गुरु गोरक्षनाथ शिव के ही अवतार थे. गुरु गोरक्षनाथ का अपने समय में भारतवर्ष समेत एशिया के बड़े भूभाग (तिब्बत, मंगोलिया, कंधार, अफगानिस्तान, श्रीलंका आदि) पर व्यापक प्रभाव था. उन्होंने अपने योग ज्ञान से इन सारी जगहों को कृतार्थ किया.
जॉर्ज गियर्सन के अनुसार गुरु गोरक्षनाथ ने लोकजीवन का परमार्थ स्तर पर उत्तरोत्तर उन्नयन और समृद्धि प्रदान कर निष्पक्ष, आध्यात्मिक क्रांति का बीजारोपण कर योग रूपी कल्पतरु की शीतल छाया में त्रयताप से पीड़ित मानवता को सुरक्षित कर जो महनीयता प्राप्त की, वह उनकी अलौकिक सिद्धि का परिचायक है. गोरक्षनाथ का योगमार्ग शुष्क विचारात्मक नहीं वरन साधना परक है. उनका जोर निर्विकार चिंतन और अंतरंग साधना पर है. इस बाबत उनका कहना है कि ‘ज्ञान सबसे बड़ा गुरु और चित्त सबसे बड़ा चेला है. इन दोनों का योग सिद्ध कर जीव को जगत में पारमार्थिक स्वरूप शिव में प्रतिष्ठित रहना चाहिए. यही श्रेष्ठ पथ है.’
गुरु गोरक्षनाथ द्वारा प्रतिपादित योग का इसलिए भी महत्व है क्योंकि उन्होंने योग को वामाचार से निकालकर इसे सात्विक, सदाचार और सद्विचार के रूप में प्रतिष्ठित किया. अपने समय में उन्होंने और उनके बाद नाथपंथ से जुड़े सिद्ध योगियों ने बताया कि योग गृहस्थ, संत, पुरुष, महिला सबके लिए समान रूप से उपयोगी है. इसमें अद्भुत शक्ति होती है. उम्र और क्षमता के अनुसार इसके थोड़े से अभ्यास से बड़ा लाभ संभव है. मन को शांत और तन को निरोग रखने का इससे आसान, सुलभ और प्रभावी दूसरा कोई तरीका नहीं. योग से ही असंतुलित ऊर्जा को संतुलित किया जा सकता. इस ऊर्जा के पूरी तरह संतुलित होना ही मुक्ति है. इस तरह मुक्ति की चाह रखने वालों के लिए भी इसकी राह योग ही निकालता है.
एलपी टेशीटरी के मुताबिक गोरक्षनाथ जी के योग की खूबी इसकी सर्वजनीनता है. मसलन उनके योग का द्वार सबके लिए खुला है.
ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ के मुताबिक योग साधना सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए हमारे ऋषियों, महर्षियों और महान योगियों द्वारा प्रचारित खास किस्म के रसायन हैं. इनका सेवन हर देश, काल, जाति, लिंग, वर्ण, समुदाय, संप्रदाय और पंथ के लोगों के लिए सुलभ और उपयोगी है. उनके मुताबिक अपनी इस परंपरा और सांस्कृतिक थाती को सुरक्षित एव समृद्ध करते हुए देश और समाज की सेवा लिए गोरक्षपीठ प्रतिबद्ध है.
इसी उद्देश्य से गुरु गोरक्षनाथ ने योग को लोककल्याण से जोड़ा. योग मानवता के कल्याण का जरिया बने. हर कोई इसकी उपयोगिता को जाने. इसके जरिए तन को स्वस्थ, मन को स्थिर करे, इसके लिए गुरु गोरखनाथ ने संस्कृत और लोकभाषा दोनों में साहित्य की रचना की. गोरक्ष कल्प, गोरख संहिता, गोरक्ष शतक, गोरख गीता, गोरक्षशास्त्र, ज्ञानप्रकाश शतक, ज्ञानामृत योग, योग चिंतामणि, योग मार्तंड, योग सिद्धांत पद्धति, अमनस्क योग, श्रीनाथ सूत्र, सिद्ध सिद्धांत पद्धति, हठ योग संहिता जैसी रचनाएं इसका प्रमाण हैं.
–
एसके/एएस