भारत में वर्कप्लेस पर यंग प्रोफेशनल्स झेल रहे सबसे ज्यादा तनाव : रिपोर्ट

चेन्नई, 20 मई . वर्कप्लेस में हो रहे बदलावों के बीच भारत में यंग प्रोफेशनल्स तनाव और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों का सामना कर रहे हैं. यह जानकारी मंगलवार को आई एक रिपोर्ट में दी गई.

ग्लोबल टेक्नोलॉजी कंपनी एडीपी की एक रिपोर्ट में ‘इमोशनल लैंडस्केप’ में होते बदलाव पर प्रकाश डाला गया है, जहां स्ट्रेस लेवल में जनरेशनल डिफरेंसेज (पीढ़ियों के बीच का अंतर) तेजी से स्पष्ट हो रहा है.

रिपोर्ट में दिखाया गया है कि सबसे ज्यादा स्ट्रेस लेवल 27 से 39 वर्ष की आयु वाले युवा प्रोफेशनल्स में देखा गया है. 11 प्रतिशत प्रोफेशनल्स ने कहा कि वे हाई स्ट्रेस एक्सपीरियंस करते हैं, जो कि राष्ट्रीय औसत 9 प्रतिशत से भी अधिक है.

केवल 18-26 वर्ष के 51 प्रतिशत वर्कर्स ने बेहतर स्ट्रेस मैनेजमेंट की जानकारी दी.

दूसरी ओर, 55-64 वर्ष की आयु के वृद्ध वर्कर्स ने स्ट्रेस मैनेजमेंट की जानकारी दी, जिसमें 81 प्रतिशत वर्कर्स ने कहा कि वे सप्ताह में एक बार से भी कम समय में तनाव महसूस करते हैं.

काम का अधिक बोझ युवा एम्प्लॉई के लिए मुख्य ट्रिगर के रूप में पाया गया, जहां 18-26 वर्ष की आयु के 16 प्रतिशत लोगों ने हेवी वर्कलोड के कारण तनाव की बात कही.

इसके अलावा, 67 प्रतिशत वर्कर्स ने बताया कि फ्लेक्सिबल वर्किंग अरेंजमेंट के लिए उन्हें जज किया जाता है. 65 प्रतिशत वर्कर्स ने कहा कि काम पर उनकी निगरानी की जा रही है, जिससे दबाव की भावनाएं बढ़ सकती हैं.

एडीपी इंडिया और दक्षिण पूर्व एशिया के मैनेजिंग डायरेक्टर राहुल गोयल ने कहा, “इन निष्कर्षों से पता चलता है कि आज का वर्कफोर्स, विशेष रूप से युवा प्रोफेशनल्स कॉम्प्लेक्स और इमोशनली डिमांडिंग वर्क एनवायरमेंट में काम कर रहे हैं. तनाव का प्रभाव और जज किए जाने या बारीकी से निगरानी किए जाने की भावना संगठनों को अपने कर्मचारियों के लिए अधिक सहायक वातावरण बनाने की जरूरत को दिखाती है.”

भारतीय कर्मचारियों के बीच तनाव का स्तर 2023 में 12 प्रतिशत से 2024 में 9 प्रतिशत तक कम हुआ है, जबकि ऐसे कर्मचारियों का प्रतिशत जो महसूस करते हैं कि वे अपनी नौकरी में सफल हो रहे हैं, 2023 में 22 प्रतिशत से 2024 में 20 प्रतिशत तक कम हुआ है.

गोयल ने कहा, “फ्लेक्सिबिलिटी प्रदान करना समाधान का केवल एक हिस्सा है. जो वास्तव में मायने रखता है, वह विश्वास, सहानुभूति और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा के कल्चर का निर्माण करना है. कर्मचारियों की मेंटल वेल-बीइंग को प्राथमिकता देकर, कंपनियां एक हेल्दीयर, अधिक इंगेज्ड और प्रोडक्टिव वर्कफोर्स को बढ़ावा दे सकती हैं.”

एसकेटी/एबीएम