राजकुमार राव की ‘भूल-चूक’ रही फायदेमंद, बताया- ‘भगवान का शुक्र है कि ऐसा नहीं हुआ’

नई दिल्ली, 14 मई . राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता राजकुमार राव इन दिनों अपनी आने वाली फिल्म ‘भूल चूक माफ’ को लेकर चर्चा में हैं. से बात करते हुए एक्टर ने खुलासा किया कि एक समय उन्होंने 11वीं क्लास में साइंस स्ट्रीम से पढ़ाई करने का विचार किया था. यह फैसला उनका खुद का नहीं था, बल्कि परिवार के प्रभाव से प्रेरित था.

से बात करने के दौरान जब उनसे सवाल किया गया कि उनकी अपनी जिंदगी की ऐसी कौन सी ‘भूल-चूक’ हुई है, जो बाद में फायदेमंद रही, इस पर एक्टर ने बताया, ”किसी वजह से मैंने 11वीं क्लास में साइंस लेने का फैसला किया, क्योंकि घर का माहौल ऐसा था. मेरे बड़े भाई और आसपास के लोग साइंस स्टूडेंट्स थे.”

उन्होंने आगे कहा, ”मेरी दिलचस्पी शुरू से ही एक्टिंग में थी. मैं स्टेज परफॉर्मेंस करता था, डांस, मार्शल आर्ट्स करता था. उस वक्त बाकी सब साइंस ले रहे थे, तो मैंने भी सोचा मुझे भी वही करना चाहिए. भगवान का शुक्र है कि ऐसा नहीं हुआ. मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी और उस वक्त बहुत पढ़ाई करने का दबाव था. लेकिन, जब आपकी दिलचस्पी कहीं और होती है, तो ऐसा लगता है कि आप किसी ऐसी चीज में फंस गए हैं, जो आप सच में नहीं चाहते हैं.”

राजकुमार ने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया और यहां से वह क्षितिज थिएटर ग्रुप से जुड़ गए. इसके बाद उन्होंने एक्टिंग के क्षेत्र में करियर शुरू किया.

वहीं, एक्ट्रेस वामिका गब्बी ने से खास बातचीत में अपनी एक ‘गलती’ के बारे में बताया, जिसके लिए वह आभारी हैं. एक्ट्रेस ने बताया कि उन्होंने जिंदगी में एक ‘गलती’ की, जिसे वह अब अपनी सीख मानती हैं और उसके लिए शुक्रगुजार भी हैं.

से बातचीत के दौरान जब वामिका से सवाल पूछा गया कि क्या कोई ऐसी ‘भूल-चूक’ है, जो उन्होंने की है, लेकिन उसका कोई पछतावा नहीं है. इस पर एक्ट्रेस ने जवाब दिया, ‘न कहना.’

दरअसल, पहले वामिका किसी चीज को मना करने में हिचकिचाती थीं. शायद उन्हें लगता था कि ‘न’ कहने से लोग बुरा मानेंगे या रिश्तों पर असर पड़ेगा. लेकिन अब, वह इस बात से खुश हैं कि उन्होंने ‘न’ कहना सीख लिया है और अब जब जरूरत होती है, तो बिना डर के मना कर देती हैं.

वामिका ने कहा, ”उस वक्त ‘न’ कहना एक गलती लगती है. ‘न’ कहना कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे… मैं कहीं कोई गलती तो नहीं कर रही? लेकिन, अब मुझे खुशी है कि मैं बेझिझक होकर ‘न’ कह पा रही हूं, और यह बहुत अच्छी बात है.”

पीके/एबीएम