नई दिल्ली, 22 अप्रैल . केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि इसरो के स्पैडेक्स मिशन ने सैटेलाइट की दूसरी डॉकिंग सफलतापूर्वक पूरी कर ली है.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उन्हें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि सैटेलाइट की दूसरी डॉकिंग सफलतापूर्वक पूरी हो गई है.
उन्होंने आगे बताया, “जैसा पहले बताया गया था, पीएसएलवी-सी60/स्पैडेक्स मिशन को 30 दिसंबर 2024 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था. इसके बाद सैटेलाइट को पहली बार 16 जनवरी 2025 की सुबह 06:20 बजे सफलतापूर्वक डॉक किया गया और 13 मार्च 2025 की सुबह 09:20 बजे सफलतापूर्वक अनडॉक किया गया.”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आने वाले दो हफ्तों में कुछ नए प्रयोग किए जाने की योजना है.
इस साल जनवरी में स्पैडेक्स मिशन के सैटेलाइट की सफल डॉकिंग के साथ भारत ‘स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी’ में महारत हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया.
डॉकिंग टेक्नोलॉजी को लेकर भारत का नाम अमेरिका, रूस और चीन के बाद आता है. डॉकिंग टेक्नोलॉजी को स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है. इसे ‘भारतीय डॉकिंग सिस्टम’ नाम दिया गया है.
इसमें डॉकिंग मैकेनिज्म के जरिए स्पेसक्राफ्ट को एक-दूसरे से जोड़ा जाता है. इस दौरान दोनों एक-दूसरे से कम्युनिकेशन करते हैं और इसके लिए इंटर सैटेलाइट कम्युनिकेशन लिंक (आईएसएल) का इस्तेमाल किया जाता है. खास बात यह है कि दोनों सैटेलाइट में इनबिल्ट सेंसर्स होते हैं, जो डॉकिंग और अनडॉकिंग के दौरान तमाम अहम जानकारियों को रिकॉर्ड करते हैं और एक-दूसरे के साथ ही जमीन पर कमांड सेंटर में भी ट्रांसफर करते हैं. इससे मिशन के हर सेकंड पर नजर रखी जाती है.
इसके अलावा, इसरो ने दो छोटे स्पेसक्राफ्ट द चेजर एसडीएक्स01 और द टारगेट एसडीएक्स02 के विलय की जानकारी दी. दोनों ही स्पेसक्राफ्ट का वजन करीब 220-220 किलोग्राम है. ये सैटेलाइट स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पेडेक्स) मिशन का हिस्सा थे.
इसरो का मानना है कि ‘स्पैडेक्स मिशन’ ‘ऑर्बिटल डॉकिंग’ में भारत की क्षमता स्थापित करने में मदद करेगा, जो भविष्य के ह्यूमन स्पेसफ्लाइट और सैटेलाइट सर्विसिंग मिशन के लिए एक महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी है.
अंतरिक्ष यात्रा करने वाले देशों की लिस्ट में शामिल होने के अलावा, डॉकिंग टेक्नोलॉजी भारत के अंतरिक्ष मिशनों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिसमें मून मिशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और पृथ्वी से जीएनएसएस के सपोर्ट के बिना चंद्रयान-4 जैसे लूनर मिशन शामिल हैं.
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एसकेटी/एबीएम