मुंबई, 18 अप्रैल . कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता अतुल लोंढे ने महाराष्ट्र के प्राइमरी स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने और वक्फ कानून में संशोधनों को लेकर शुक्रवार को केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले को “भाषाई आक्रमण” करार देते हुए इसे बच्चों की शिक्षा और देश की विविधता के लिए हानिकारक बताया. साथ ही, वक्फ कानून में संशोधन को लेकर बोहरा मुस्लिम समुदाय के समर्थन पर सवाल उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर “जुमलेबाजी” का आरोप लगाया.
हिंदी भाषा को लेकर चल रहे विवाद पर लोंढे ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार का यह फैसला शिक्षा के लिए घातक है. उन्होंने शिक्षा विशेषज्ञों का हवाला देते हुए कहा कि पहली से पांचवीं कक्षा तक अगर भाषा को लेकर भ्रम पैदा हुआ, तो बच्चा न अपनी मातृभाषा सीख पाएगा और न ही कोई दूसरी भाषा. हम किस तरह के विद्यार्थी बना रहे हैं, यह सरकार को गंभीरता से सोचना होगा. सरकार से इस फैसले को तत्काल वापस लेना चाहिए.
लोंढे ने तर्क दिया कि जब संस्कृत और अन्य भाषाएं वैकल्पिक हैं, तो हिंदी को भी वैकल्पिक रखा जा सकता है. हिंदी केवल भारत में प्रचलित है. वैश्विक स्तर पर इसकी स्वीकार्यता सीमित है. सरकार ‘हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान’ के एजेंडे पर काम कर रही है, जो देश की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के खिलाफ है. हिंदी को अनिवार्य करना फासीवादी संस्कृति थोपने जैसा है. क्या उत्तर प्रदेश में मराठी को अनिवार्य किया जाना चाहिए? अगर नहीं, तो हिंदी क्यों थोपी जा रही है?
उन्होंने जोर देकर कहा कि भाषा नीति को लेकर सरकार को सभी हितधारकों से विचार-विमर्श करना चाहिए और क्षेत्रीय भाषाओं को कमजोर करने वाली नीतियों से बचना चाहिए. लोंढे ने चेतावनी दी कि भाषा के नाम पर थोपी गई एकरूपता देश की संघीय संरचना को नुकसान पहुंचा सकती है. मेरा मानना है कि इन मुद्दों पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए.
वक्फ कानून में संशोधन को लेकर बोहरा मुस्लिम समुदाय द्वारा सरकार को समर्थन दिए जाने पर लोंढे ने तंज कसा. उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी कितने दिन जुमलेबाजी करते रहेंगे और इस पद की गरिमा को गिराते रहेंगे? बोहरा समुदाय का वक्फ संशोधन बिल से क्या लेना-देना? क्या उनका वक्फ कानून से कोई सीधा संबंध है? सरकार अल्पसंख्यक समुदायों के बीच भ्रम पैदा कर रही है और वक्फ के नाम पर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रही है. देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. वक्फ कानून को लेकर सरकार को पारदर्शी तरीके से सभी समुदायों के साथ संवाद करना चाहिए, न कि चुनिंदा समर्थन को बढ़ावा देना चाहिए.”
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एकेएस/एकेजे