नई दिल्ली 25 मार्च . केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को राज्यसभा में आपदा प्रबंधन संशोधन विधेयक 2024 सदन के समक्ष रखा. इस विधेयक पर बोलते हुए कांग्रेस के राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने कहा प्रस्तावित संशोधन उन उन प्रयासों की कड़ी है, जो यूपीए सरकार के द्वारा शुरू किए गए थे. 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम को पेश किया गया था और लागू किया गया था. इस अधिनियम का उद्देश्य आपदा प्रबंधन के लिए एक सुदृढ़ ढांचा स्थापित करना था, जो रोकथाम, प्रतिक्रिया, तैयारी और और पुनर्वास पर केंद्रित हो.
उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन संशोधन विधेयक 2024 में कई खामियां हैं. इस विधेयक में संघवाद को कमजोर करने, स्थानीय समुदायों की अपेक्षा करने, जलवायु परिवर्तन अनुकूल और पशु कल्याण सहित व्यापक आपदा जोखिम प्रबंधन की कमी की वजह से इसे आलोचना का भी सामना करना पड़ेगा.
डांगी ने कहा कि इसमें स्थानीय स्वायत्तता की कमी नजर आ रही है. संघवाद को कमजोर करना इस विधेयक में नजर आ रहा है. राज्य सरकारों में स्थानीय निकायों की कीमत पर एक उच्च स्तरीय समिति राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति को सशक्त बनाने पर विधायक का जोर विवाद का एक प्रमुख बिंदु है. शीर्ष से नीचे की ओर का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण आपदा प्रबंधन प्रयासों में देरी का कारण बन सकता है.
डांगी का कहना था कि ऐसे स्थानीय अधिकारियों को हाशिए पर रखा गया है. जो अधिकारी अक्सर सबसे पहले प्रतिक्रिया के बारे में जिक्र और होशियार करते हैं, वे सभी हाशिए पर हैं. स्थानीय स्तर पर जो अधिकारी और स्थानीय लोग जो सूचना दे सकते हैं, वह कोई और नहीं कर सकता. इस विधेयक में जवाबदेही की कमी है. जिलाधिकारी के लिए प्रदर्शन मूल्यांकन उपायों को हटाने से उनकी प्रभावशीलता का आकलन करना कठिन हो जाता है. यह एक नई शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, यूडीएमए का जिक्र करता है. यह अनावश्यक रूप से नौकरशाही परतों का निर्माण करेगा. यह एक बहुत बड़ी खामी इस बिल में है.
वहीं उत्तराखंड से भाजपा सांसद नरेश बंसल ने इस विधेयक पर चर्चा के दौरान कहा कि यहां संघवाद की बात कर रहे हैं, 2013 में जब केदारनाथ में आपदा आई तब सैकड़ो लोग वहां दब गए, लेकिन केंद्र की सरकार ने उपकी कोई सुध नहीं ली. उन्होंने कहा कि बाढ़, भूकंप, चक्रवात, जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाओं के चलते सशक्त आपदा प्रबंधन की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई हो गई है.
बंसल ने कहा कि तब हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. वह तीन दिन वहां उत्तराखंड में रहे, लेकिन केंद्र के इशारे पर उनको मौके पर नहीं जाने दिया गया. गुजरात से जो राहत किट भेजी गई, जिसे मोदी किट के नाम से पुकारा गया, उसमें नमक से लेकर दैनिक जीवन की प्रत्येक वस्तु को बहुत व्यवस्थित तरीके से रखा गया था. नरेंद्र मोदी जब केंद्र में प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने केदारनाथ धाम का पुनरुद्धार और सौंदर्यकरण कराया.
उन्होंने कहा कि ग्लेशियर फटने या दूसरी जो भी आपदाएं आईंं, उसमें केंद्र सरकार के सहयोग से हमने कोई जनहानि नहीं होने दी. उन्होंने कहा कि जब से आपदा मंत्रालय 2015 से बना है, यह गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम कर रहा है. देश के 66 करोड़ लोगों ने देखा है कि कुंभ के समय में भी किस तरह एनडीआरएफ व एसडीआरएफ की कंपनियां विनम्रता से लोगों का सहयोग कर रही थीं.
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जीसीबी/