नई दिल्ली, 17 मार्च . वक्फ संशोधन बिल को लेकर देश में बड़ा विवाद खड़ा हो रहा है. इस बिल पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के अध्यक्ष जगदम्बिका पाल ने बताया कि जेपीसी में बिल पर गहन विचार-विमर्श किया गया है. विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों द्वारा इस बिल का विरोध शुरू करने पर जगदम्बिका पाल ने कहा कि ऐसा सिर्फ लोगों को गुमराह करने, देश में तुष्टिकरण करने और सियासी तकरार के कारण किया जा रहा है. इस मुद्दे पर जगदम्बिका पाल ने न्यूज एजेंसी से विशेष बातचीत की, जिसमें उन्होंने समिति की प्रक्रिया और बिल की जरूरत पर प्रकाश डाला.
जगदम्बिका पाल ने कहा कि जेपीसी द्वारा वक्फ संशोधन बिल पर चर्चा के लिए कई महत्वपूर्ण हितधारकों को बुलाया गया, जिनमें ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य प्रमुख संगठन शामिल थे. समिति ने विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों, जिनमें असदुद्दीन ओवैसी, कल्याण बनर्जी, ए. राजा आदि भी शामिल थे, के विचारों को सुना और रिकॉर्ड भी किया. समिति ने छह महीने के दौरान कुल 118 घंटों तक 38 बैठकें की. इन बैठकों में देशभर के विभिन्न राज्यों असम, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु आदि के प्रतिनिधियों की राय ली गई.
जगदम्बिका पाल ने कहा कि समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, इस बिल का मुख्य उद्देश्य वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है. वर्तमान में, इन संपत्तियों का सही उपयोग नहीं हो पा रहा था, जिससे गरीब, पसमांदा, अनाथ, विधवाएं और जरूरतमंद लोग लाभान्वित नहीं हो रहे हैं.
बिल के विरोध में कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. जगदम्बिका पाल का कहना है कि अभी यह कानून पारित भी नहीं हुआ है, लेकिन इसके बावजूद कुछ समूह शाहीन बाग जैसी स्थिति बनाने की धमकी दे रहे हैं. उन्होंने इसे एक सोची-समझी रणनीति करार दिया, जिसका उद्देश्य देश में आंदोलन खड़ा करना है.
उन्होंने धारा 370 के हटाने के समय की घटनाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि जब गृह मंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की पहल की थी, तब महबूबा मुफ्ती ने खून की नदियां बहने की चेतावनी दी थी. लेकिन आज जम्मू-कश्मीर की स्थिति कितनी बेहतर है. इसी तरह, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीन तलाक कानून लाया गया था, तब भी मौलाना जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन आज अल्पसंख्यक महिलाएं इस कानून के लिए सरकार की आभारी हैं और खुद को सुरक्षित महसूस कर रही हैं. इसी तरह से जब नया कानून पास होगा तो इसका फायदा गरीब पसमांदा मुस्लिमों को मिलेगा.
जब यह बिल पारित होने के करीब पहुंच चुका है, तब विपक्षी दलों ने इसे लागू न होने देने की बात कही है और लगातार प्रदर्शन जारी रखने की घोषणा की है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जगदम्बिका पाल ने कहा, “भारत में प्रजातंत्र है, जहां कानून बनाने का अधिकार जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों के पास है. सरकार के पास बहुमत था और वह इस बिल को सीधे संसद में पारित करा सकती थी, लेकिन संसदीय कार्य मंत्री अल्पसंख्यक मंत्री किरण रिजिजू ने इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजा ताकि सभी पक्षों की राय ली जा सके और एक संतुलित कानून बनाया जा सके.
उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा हमेशा से स्पष्ट रही है कि आज धरना करने वाले इन मुस्लिम संगठनों सहित सभी हितधारकों की राय ली जाए. लेकिन इसके बावजूद, बैठकों में असदुद्दीन ओवैसी और अन्य विपक्षी नेता जिस तरह से व्यवहार कर रहे थे—बोतलें फेंकना, शोर-शराबा करना—यह दिखाता है कि यह विरोध केवल देश में तुष्टिकरण की राजनीति, सियासी तकरार और जनता को गुमराह करने की कोशिश का हिस्सा है.
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