नई दिल्ली, 6 मार्च . भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी के रमजान के महीने में रोजा न रखने के फैसले पर एक नया विवाद खड़ा हो गया है. इस मुद्दे पर मुस्लिम मौलवियों और विद्वानों के बीच मतभेद पैदा हो गया है, कुछ लोग उनके काम की निंदा कर रहे हैं, जबकि अन्य इस्लामी सिद्धांतों के आधार पर उनके प्रति नरम रुख अपना रहे हैं.
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था. जिसमें मोहम्मद शमी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत के सेमीफाइनल मैच के दौरान पानी पीते नजर आए थे.
मुस्लिम धर्मगुरु इब्राहिम चौधरी ने भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी द्वारा रोजा न रखने पर कहा कि क्रिकेटर द्वारा रमजान के दौरान रोजा न रखने की खबरें हैं.
यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है कि इस्लाम में रोजा, नमाज, दान (जकात) और तीर्थयात्रा (हज) अल्लाह द्वारा निर्धारित दायित्व है और प्रत्येक मुसलमान के लिए इन्हें पूरा करना आवश्यक है. यदि कोई मुसलमान वयस्क होने के बाद इनमें से किसी से भी इनकार करता है या जानबूझकर उपेक्षा करता है, तो वह निश्चित रूप से पापी है और एक मुसलमान के रूप में उसकी स्थिति संदेह में हो सकती है, चाहे वह मोहम्मद शमी हों या कोई अन्य मुसलमान.
वहीं, मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना कारी इसहाक गोरा ने शमी का बचाव किया है. गोरा ने कहा कि क्रिकेटर मोहम्मद शमी मैदान पर जूस पीते देखे गए. इसके बाद से कुछ लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि उन्होंने बहुत बड़ा पाप किया है. ऐसे लोगों को मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि हर किसी की अपनी परिस्थितियां होती हैं.
गोरा ने कहा, “यदि कोई व्यक्ति किसी मजबूरी के कारण उपवास करने में असमर्थ है, जैसे कि किसी पेशेवर खिलाड़ी के मामले में, तो इस्लाम उपवास तोड़ने की अनुमति देता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका कारण शरीयत के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत होना चाहिए.”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उपवास तोड़ने का निर्णय बाहरी लोगों द्वारा जल्दबाजी में नहीं लिया जाना चाहिए.
गोरा ने कहा, “यह मसला अल्लाह और शमी के बीच का है. इस मामले में किसी को भी न्यायाधीश की भूमिका निभाने की जरूरत नहीं है.”
शमी के मामले पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा, “ऐसे लोग जो अपनी परिस्थितियों के कारण रोजा नहीं रख पाते, इसका मतलब यह नहीं है कि उनका विश्वास खत्म हो गया है. उनके पास भक्ति या सेवा के अन्य रूप हो सकते हैं, जैसे राष्ट्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता. यह भी पूजा का एक रूप है.”
उन्होंने स्वीकार किया कि देशभक्ति, अपने कार्य के प्रति समर्पण और देश के लिए आत्म-बलिदान को भक्ति के कार्य के रूप में देखा जा सकता है, जो ईश्वर की दृष्टि में समान रूप से मूल्यवान है.
उन्होंने कहा, “राष्ट्र की प्रगति में योगदान देना, देश की भलाई के लिए अपना समय और प्रयास समर्पित करना, किसी पूजा से कम नहीं है. हमें इन प्रयासों का सम्मान करना चाहिए, जैसे हम धार्मिक अनुष्ठान करने वालों का सम्मान करते हैं.”
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