महाशिवरात्रि विशेष : एक ऐसा मंदिर जहां शिव के हृदय में बसते हैं विष्णु, महादेव की पूजा में होता है तुलसी दल का इस्तेमाल

नई दिल्ली, 25 फरवरी . वैसे तो सृष्टि के कण-कण में भगवान का वास है. महादेव तो यूं भी हर मन में बसते हैं. भारत में महादेव के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं. द्वादश ज्योतिर्लिंग इनमें से ही हैं. इन 12 मंदिरों में शक्ति शिवलिंग स्थापित है. आपको बता दें कि शिवलिंग की पूजा में कुछ चीजों का प्रयोग वर्जित है. इसमें श्रृंगार के सामान, केतकी के फूल और तुलसी दल शिव की पूजा में इस्तेमाल नहीं होते हैं. लेकिन, इस सबसे अलग देश में एक ऐसा भी शिवलिंग है, जहां शिव के हृदय में भगवान विष्णु बसते हैं. इन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग का राजा भी कहा गया है. तो आइए इस महाशिवरात्रि के मौके पर शिव के इस विशेष मंदिर के बारे में जानते हैं.

ओडिशा के भुवनेश्वर स्थित भगवान लिंगराज के मंदिर की पहचान 12 ज्योतिर्लिंगों के राजा के रूप में होती है, यहां भगवान लिंगराज विराजते हैं. इस मंदिर के प्रांगण में छोटी-बड़ी 150 मंदिरें हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा ययाति प्रथम ने कराया था, यहां विराजे लिंगराज स्वयंभू हैं. यह दुनिया का अकेला मंदिर है, जहां भगवान शिव को बेलपत्र के साथ तुलसी दल भी अर्पित किया जाता है. इसके पीछे की वजह यह है कि इस मंदिर में भगवान शिव और विष्णु एक साथ विराजते हैं.

इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो भक्त यहां आकर भगवान शिव का दर्शन करता है, उसका जीवन सफल हो जाता है. इस मंदिर की एक और खास बात है कि यहां गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है. हालांकि, मंदिर के पास एक ऊंचा चबूतरा बना हुआ है, जिससे दूसरे धर्म के लोग भी मंदिर को देख सकें.

देश भर में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिव और विष्णु की पूजा एक साथ होती है. लाखों की संख्या में भक्त हर साल यहां दर्शन के लिए आते हैं. इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग ग्रेनाइट पत्थर का है. यह मंदिर 150 मीटर वर्गाकार में फैला है और मंदिर में 40 मीटर की ऊंचाई पर कलश लगाया गया है. मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है, जबकि उत्तर और दक्षिण में अन्य छोटे प्रवेश द्वार हैं.

इस मंदिर में एक खास आकर्षण का केंद्र है, मंदिर के दाईं ओर स्थित एक छोटा कुआं. इस कुएं को मरीची कुंड के नाम से जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहां स्नान करने से संतान की प्राप्ति होती है. ऐसा दावा किया जाता है कि इस मंदिर से होकर एक नदी गुजरती है, जिसके पानी से मंदिर का बिंदुसार सरोवर भर जाता है. इस सरोवर को लेकर मान्यता है कि यहां स्नान करने से शारीरिक और मानसिक बीमारियां खत्म हो जाती हैं. मंदिर से होकर गुजरने वाली नदी का पवित्र जल संतों, भक्तों और भिक्षुओं के बीच वितरित किया जाता है.

लिंगराज मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में राजा जाजति केशरी ने करवाया था. एक आंकड़े के अनुसार, यहां हर रोज 6 हजार लोग दर्शन करने आते हैं. हर साल एक बार लिंगराज की मूर्ति को बिंदु सागर झील के केंद्र में स्थित जलमंदिर तक ले जाया जाता है. ऐसा करने के पीछे एक प्राचीन कथा है. इसके अनुसार, यहां माता पार्वती ने लिट्टी और वसा नामक दो राक्षसों का संहार किया था. लिट्टी और वसा नामक दो राक्षसों ने लिंगराज क्षेत्र में अपने अत्याचारों से जनता को आतंकित और त्रस्त कर रखा था. इस युद्ध के बाद जब उन्हें प्यास लगी, तो भगवान शिव ने यहां एक कुएं का निर्माण किया और सभी नदियों को आमंत्रित किया था.

पीएसके/एबीएम