महाशिवरात्रि विशेष : यहां मंदिर के शिखर पर त्रिशूल की जगह पंचशूल, दर्शन मात्र से होता है कल्याण

देवघर, 25 फरवरी . झारखंड के देवघर जिले में बाबा बैद्यनाथ धाम स्थित है. इसे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. महाशिवरात्रि के अवसर पर देवघर स्थित बाबाधाम में कई धार्मिक अनुष्ठान संपादित होते हैं, जिसमें शिव विवाह, चतुष्प्रहर पूजा, सिंदूर दान बेहद खास हैं.

देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर की बात करें तो यहां सभी 22 मंदिरों पर पंचशूल स्थापित किया गया है, जिसे महाशिवरात्रि से पहले नीचे उतारकर विधि-विधान से शुद्ध किया जाता है और सभी पंचशूलों को फिर से मंदिरों के शिखरों पर स्थापित कर दिया जाता है. इन पंचशूलों की धार्मिक महिमा बेहद खास मानी जाती है.

बाबा बैद्यनाथ धाम के मंदिरों पर स्थापित पंचशूल रहस्यों से भरा पड़ा है. इसे लेकर कई मान्यताएं भी प्रचलित हैं. खास बात यह है कि पंचशूल लंकापति रावण से भी संबंधित है. बाबा मंदिर के तीर्थ पुरोहितों का मानना है कि मुख्य मंदिर पर स्वर्ण कलश के ऊपर पंचशूल लगा है, यह माता पार्वती के साथ ही अन्य मंदिरों पर भी है.

बाबा बैद्यनाथ शिवलिंग की स्थापना का श्रेय रावण को दिया जाता है. रावण ने सुरक्षा के लिए लंका के चारों द्वारों पर पंचशूल को स्थापित किया था. इससे लंका की सुरक्षा होती थी. रावण को पंचशूल की सुरक्षा भेदना आता था. राम को यह नहीं पता था. लेकिन, विभीषण की मदद से राम लंका विजय करने में सफल हुए थे.

मान्यता है कि बाबा बैद्यनाथ धाम में स्थापित पंचशूल किसी भी प्राकृतिक आपदा में मंदिरों की सुरक्षा करता है. पंचशूल मानव शरीर में मौजूद पांच विकारों, काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या, का नाश करता है. इसे मानव शरीर में मौजूद पंचतत्वों का भी प्रतीक माना गया है. इसके अलावा भी पंचशूल को लेकर कई मान्यताएं हैं.

बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के तीर्थ पुरोहित प्रभाकर शांडिल्य कहते हैं, “देवघर स्थित देवाधिदेव महादेव आत्मालिंग हैं. बाबा बैद्यनाथ धाम महादेव शिव और माता शक्ति दोनों का स्थान है. जब भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को विच्छेद करना शुरू किया था तो देवघर में सती जी का हृदय गिरा था, उसी विशिष्ट स्थल पर भगवान विष्णु जी ने बैद्यनाथ धाम की स्थापना की है. यह शिव-शक्ति का मिलन स्थल है. यहां सभी मंदिरों पर पंचशूल है, जिसमें दो शूल आधार शक्ति का प्रतीक है, शक्ति ने जो उन्हें (महादेव) आधार दिया हुआ है, उसका प्रतीक है और त्रिशूल बाबा का प्रतीक है.”

इसके अलावा भी पंचशूल को लेकर कई अन्य मान्यताओं का वर्णन मिलता है. धार्मिक ग्रंथों में जिक्र है कि बाबा बैद्यनाथ धाम स्थित ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव के साथ माता शक्ति भी विराजमान हैं. यहां पर तंत्र साधना के लिए मां शक्ति की पूजा की जाती है. तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि शिव पुराण में उल्लेख है कि पंचशूल के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं ने अनजाने में जो भी पाप किए हैं, उनका भी नाश हो जाता है. साथ ही समस्त फलों की भी प्राप्ति होती है.

महाशिवरात्रि की बात करें तो इस पावन अवसर पर देवघर में चतुष्प्रहर पूजा होती है. बाबा को सिंदूर अर्पित किया जाता है, जिससे शिव विवाह की परंपरा पूर्ण होती है. बाबा को मोर मुकुट चढ़ता है. यह अविवाहित लोगों के लिए विशेष है, मोर मुकुट चढ़ाने से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं. महाशिवरात्रि पर बाबा का श्रृंगार नहीं होता है, रातभर पूजा होती है और महादेव का विवाह संपन्न होता है. पंचशूल के गठबंधन की भी मान्यता है, ऐसा करने से मनोकामना की पूर्ति होती है.

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