महाशिवरात्रि विशेष : ‘श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि’, यूं ही नहीं ज्योतिर्लिंगों में देवघर सर्वश्रेष्ठ है…

देवघर, 25 फरवरी . ‘देघरे बिराजे गौरा साथ, बाबा भोलानाथ’, पूजनीय भवप्रीतानंद रचित इस झूमर में बाबा बैद्यनाथ की महिमा का बखान है. झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम, जिसे कामनालिंग और हृदयापीठ भी कहा जाता है, एक जागृत स्थल है. बाबा बैद्यनाथ की महिमा अपने आप में अनोखी है, बाबा भोले की भक्ति के रूप अलग-अलग हैं, सबका आशीर्वाद ‘तथास्तु’ के रूप में पूर्ण होता है. बाबा बैद्यनाथ से आप कुछ भी मांग लीजिए, बाबा उसे पूरा करते हैं. कहते हैं, ‘कर्ता करे न कर सके, शिव करे सो होय, तीन लोक नौ खंड में, शिव से बड़ा न कोय.’ यह देवघर स्थित कामनालिंग के भक्तों से बढ़कर कोई नहीं जानता है.

देवघर में महाशिवरात्रि पर धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत कई भव्य आयोजन होते हैं, जिसके केंद्र-बिंदु शिव होते हैं, जो साकार भी हैं और निराकार भी. महाशिवरात्रि पर भगवान भोले की चतुष्प्रहर पूजा होती है, यह अपने आप में अनूठी परंपरा है, जो अन्यत्र नहीं होती है. देवघर शिव और शक्ति दोनों का स्थान है, यहां पर माता सती का हृदय गिरा था और उसके ऊपर बाबा शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं. इसी कारण इसे आत्मालिंग और कामनालिंग भी कहा जाता है. बाबा बैद्यनाथ धाम का उल्लेख करते हुए द्वादश ज्योतिर्लिंग स्रोतम में लिखा गया है, ‘पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसंतं गिरिजासमेतम्. सुरासुराराधितपादपद्यं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि.’

देवघर एक शहर भर नहीं है, यह एक संस्कार है और ‘जेकर नाथ भोलेनाथ, उ अनाथ कैसे होई’ को जीते लोग भी हैं. हर आयोजन, पर्व-त्योहार, सफलता-विफलता, सबकुछ बाबा को समर्पित करने वाले देवघर के लोग महाशिवरात्रि के आगमन से फूले नहीं समाते हैं. महाशिवरात्रि पर देवघर में कई विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठानों और परंपराओं का आयोजन होता है, जिसे देखकर आप भगवान शिव की भक्ति में डूब जाएंगे. देवघर में महाशिवरात्रि पर पूरे शहर को सजाया जाता है. शिव बारात में बच्चे, बूढ़े, युवा से लेकर महिलाएं और खुद देवता भी शामिल होते हैं. शहरवासी से लेकर दूरदराज के लोग भी शिव बारात में शामिल होकर खुद को भाग्यशाली मानते हैं.

बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के तीर्थ पुरोहित प्रभाकर शांडिल्य भगवान भोले की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं, ”देवघर स्थित देवाधिदेव महादेव आत्मालिंग हैं. बाबा बैद्यनाथ धाम महादेव शिव और माता शक्ति दोनों का स्थान है. जब भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को विच्छेद करना शुरू किया था तो देवघर में सती जी का हृदय गिरा था, उसी विशिष्ट स्थल पर भगवान विष्णु जी ने बाबा बैद्यनाथ की स्थापना की है. यह शिव-शक्ति का मिलन स्थल है. यही कारण है कि यहां सभी मंदिरों पर पंचशूल है, जिसमें दो शूल आधार शक्ति का प्रतीक है, शक्ति ने जो उनको (महादेव) आधार दिया हुआ है, उसका प्रतीक है और त्रिशूल बाबा का प्रतीक है.”

बाबा बैद्यनाथ के कामनालिंग की मान्यता पर प्रभाकर शांडिल्य ने बताया, ”बाबा हमेशा ध्यानस्थ रहते हैं, वो हमेशा जागृत नहीं रहते हैं. लेकिन, सती हमेशा जागृत रहती हैं और जब बाबा ध्यान से लौटते हैं तो माता उनको बताती हैं कि ये आए थे और ऐसी मनोकामना की थी. यही कारण है कि देवघर का सबसे ज्यादा महत्व है. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में बाबा बैद्यनाथ ही एकमात्र हैं, जहां शिव-पार्वती का गठबंधन होता है. यह सभी मनोकामना को पूरा करता है. बाबा को जलाभिषेक प्रिय है, लेकिन, माता को श्रृंगार और गठबंधन पसंद है. ‘यत्र यत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी महेश्वर:.’ आप पृथ्वी के किसी कोने से प्रार्थना करते हैं तो बाबा बैद्यनाथ उसे स्वीकार करते हैं.”

उन्होंने महाशिवरात्रि पर होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों को लेकर बताया, ”देवघर में चतुष्प्रहर पूजा होती है. बाबा को सिंदूर अर्पित किया जाता है, जिससे शिव विवाह की परंपरा पूर्ण होती है. बाबा को मोर मुकुट चढ़ता है. यह अविवाहित लोगों के लिए विशेष है, मोर मुकुट चढ़ाने से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं. महाशिवरात्रि पर बाबा का श्रृंगार नहीं होता है, रातभर पूजा होती है, महादेव का विवाह संपन्न होता है. महाशिवरात्रि से पहले पंचशूल खुलता है और इसे महाशिवरात्रि पर मंदिरों के शिखर पर फिर से स्थापित किया जाता है. इसके साथ ही प्रधान पंडा पहला गठबंधन करते हैं और फिर श्रद्धालुओं को इसका हिस्सा बनने का अवसर मिलता है.”

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