नई दिल्ली, 6 फरवरी . कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर अपनी नई किताब को लेकर एक बार फिर चर्चा में हैं. उन्होंने कहा कि यह किताब उनकी जिंदगी के उतार-चढ़ाव को दर्शाती है. अय्यर ने बताया कि वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की वजह से राजनीति में आए और इस सफर में उन्हें जीत और हार दोनों का अनुभव हुआ.
यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) पर उन्होंने कहा कि वह इसके खिलाफ हैं. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज को बदलाव के लिए समझाने की जरूरत है, लेकिन जब हिंदू पर्सनल लॉ में बदलाव हुए थे, तब संसद में 90 प्रतिशत हिंदू थे. अब, जब मुस्लिमों के पर्सनल लॉ में बदलाव की बात हो रही है, तब संसद में केवल 4 प्रतिशत मुस्लिम सदस्य हैं. उन्होंने इसे असंतुलित स्थिति बताया और कहा कि यह मुस्लिम समुदाय के साथ अन्याय है. यह विचार लंबे समय से चल रहा है, लेकिन इसे लागू करना इतना आसान नहीं है. उन्होंने कहा कि देश में ऐसी कई नीतियां बनाई जाती हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे सभी कारगर साबित हों. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सरकार चाहे जितना प्रयास कर ले, लेकिन इस तरह की चीजें जबरदस्ती नहीं थोपी जा सकतीं.
अय्यर ने इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी निशाने पर लिया. उन्होंने कहा कि इन दोनों नेताओं की जिम्मेदारी बनती है कि वे बताएं कि मुस्लिमों के खिलाफ हो रही घटनाओं के पीछे असली कारण क्या हैं और दोषियों को सजा क्यों नहीं दी जा रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इन मामलों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है और इसे लेकर कांग्रेस चुप नहीं बैठेगी.
इसके बाद उन्होंने प्रयागराज में महाकुंभ में जाने पर कहा कि वह नास्तिक हैं और उनके पास वह आस्था नहीं है, जो कुंभ जैसे धार्मिक आयोजन में जाने के लिए जरूरी होती है. उन्होंने कहा कि वह कभी कुंभ नहीं गए हैं और भविष्य में जाने का भी कोई इरादा नहीं है.
इसके बाद उन्होंने राजनीति में अपने सफर को लेकर भी कई बातें साझा कीं. उन्होंने कहा कि जब वे दिल्ली में एक पद पर थे, तब कांग्रेस अध्यक्ष ने उनसे कहा था कि यह एक अस्थायी जिम्मेदारी है. उन्हें यह समझाया गया था कि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ाने के कारण जनता में आक्रोश था और वे जल्द ही पद से हट सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद 20 महीनों तक इस पद पर बने रहे.
अय्यर ने खेल संघों की स्थिति पर भी टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि देश के खेल संघों पर राजनेताओं का कब्जा है, जिनमें से कई खेलों से सीधे जुड़े नहीं हैं. उन्होंने कहा कि खेल संगठनों के प्रमुख अक्सर वे लोग होते हैं, जो कभी खिलाड़ी नहीं रहे या जिन्होंने दशकों पहले खेला था, लेकिन अब वे केवल अपने पद का आनंद उठा रहे हैं.
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