झामुमो की स्थापना के 53 साल : संघर्ष की जमीन से सत्ता के शिखर तक उतरा-चढ़ाव भरा रहा है सफर

रांची, 4 फरवरी . झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना को मंगलवार को 53 साल पूरे हो गए. धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में 4 फरवरी 1972 को आयोजित रैली में अलग झारखंड राज्य के आंदोलन को निर्णायक मुकाम तक पहुंचाने के लिए इस पार्टी की नींव रखी गई थी. तब से अब तक संघर्ष की जमीन से झारखंड निर्माण और सत्ता तक पहुंचने का पार्टी का सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है.

झामुमो ने 53वें स्थापना दिवस पर मंगलवार को उसी गोल्फ ग्राउंड में एक बड़ी रैली आयोजित की. शिबू सोरेन पिछले 34 वर्षों से झामुमो के अध्यक्ष हैं. किसी एक शख्स का किसी राजनीतिक दल में इतने लंबे वक्त तक पार्टी अध्यक्ष बने रहना अपने-आप में एक विरल राजनीतिक घटनाक्रम है. साल 2021 में हुए अधिवेशन में उन्हें लगातार 10वीं बार अध्यक्ष और हेमंत सोरेन को तीसरी बार कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया था.

बढ़ती उम्र के कारण अब शिबू सोरेन बहुत सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह आज भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के पर्याय माने जाते हैं. वह जब तक हैं, पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए किसी और नाम की चर्चा भी नहीं हो सकती. शिबू सोरेन के बाद उनके पुत्र हेमंत सोरेन निर्विवाद रूप से झामुमो के सबसे बड़े नेता हैं. लगभग दस साल से वह संगठन में कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर हैं.

बीते साढ़े तीन दशक में सोरेन परिवार झामुमो के लिए अपरिहार्य बन गया है. उल्लेखनीय है कि 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य के निर्माण से लेकर अब तक राज्य में पांच बार सत्ता की कमान झामुमो के पास आई है और पांचों बार मुख्यमंत्री सोरेन परिवार से ही बना है.

साल 2005, 2008 और 2009 में शिबू सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. वहीं हेमंत सोरेन 2013-14 में पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. जेएमएम की अगुवाई वाली ये चारों सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं. कोई सरकार महज कुछ रोज का मेहमान रही, कोई छह महीने तो कोई 14 महीने तक चली.

पार्टी ने 2019 में सत्ता की राजनीति में तब एक बड़ी लकीर खींची, जब उसने हेमंत सोरेन की अगुवाई में चुनाव लड़कर जीत हासिल की. झामुमो ने राज्य की 81 में से 30 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया और कांग्रेस तथा आरजेडी के साथ मिलकर कुल 47 सीटों के साथ गठबंधन की सरकार बनाई. इसके बाद 2024 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन की अगुवाई में पार्टी ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. पार्टी ने 34 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि उसकी अगुवाई वाले गठबंधन ने 81 में से 56 सीटें हासिल कर लगातार दूसरी बार राज्य की सत्ता में वापसी की.

झामुमो की स्थापना के समय शिबू सोरेन 28 साल के युवा थे. इसके पहले वह जब 12 वर्ष के थे, तब सूदखोरों ने उनके पिता सोबरन मांझी की नृशंस हत्या कर दी थी. इसके बाद उन्होंने महाजनों और शोषण के खिलाफ संघर्ष शुरू किया, जिसने कई बार हिंसक रूप ले लिया.

पुलिस-प्रशासन के लिए चुनौती बने शिबू सोरेन कई बार अंडरग्राउंड रहे. बाद में धनबाद के जिलाधिकारी के.बी. सक्सेना और कांग्रेस नेता ज्ञानरंजन के सहयोग से उन्होंने आत्मसमर्पण किया और दो महीने जेल में रहने के बाद बाहर आए. उन्होंने ‘सोनोत संताल’ संगठन बनाकर आदिवासियों को एकजुट किया, जिसके बाद उन्हें ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि मिली.

साल 1972 में ‘सोनोत संताल’ और विनोद बिहारी महतो की अगुवाई वाले सामाजिक संगठन ‘शिवाजी समाज’ का विलय हुआ और झामुमो की स्थापना हुई. इसमें ट्रेड यूनियन लीडर ए.के. राय की महत्वपूर्ण भूमिका रही. विनोद बिहारी महतो पार्टी के पहले अध्यक्ष और शिबू सोरेन पहले महासचिव बने.

साल 1980 में शिबू सोरेन दुमका से सांसद चुने गए. इसी वर्ष बिहार विधानसभा के लिए हुए चुनाव में पार्टी ने संथाल परगना क्षेत्र की 18 में से नौ सीटें जीतकर पहली बार अपने मजबूत राजनीतिक वजूद का एहसास कराया. साल 1991 में विनोद बिहारी महतो के निधन के बाद शिबू सोरेन पार्टी के अध्यक्ष बने.

झारखंड अलग राज्य आंदोलन को निर्णायक मुकाम तक पहुंचाने का श्रेय बहुत हद तक झामुमो को जाता है. साल 2015 में जमशेदपुर में हुए अधिवेशन में हेमंत सोरेन को पहली बार कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया था, जिसके बाद पार्टी के एक नए दौर की शुरुआत हुई.

एसएनसी/एकेजे